सत्ताधारी भाजपा को 15 सीटों पर समेटने वाली कांग्रेस के लिए 'संजीवनी' बने भूपेश बघेल!

सत्ताधारी भाजपा को 15 सीटों पर समेटने वाली कांग्रेस के लिए 'संजीवनी' बने भूपेश बघेल!

रायपुर

छत्तीसगढ़ में चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा कि राहुल गांधी ने मुझे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बहुमत दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी थी, वो मैंने कर दिखाया. मतगणना के दौरान कांग्रेस को मिली बंपर बढ़त के बीच बघेल की ये पहली प्रतिक्रिया सामने आई थी. हालांकि उन्होंने पहली बार ये बात नहीं कही है, वे लगातार महीनों से यही कहते रहे हैं कि राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी को बहुमत दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी है, जिसे वे पूरा करके रहेंगे.

दरअसल साल 2014 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने के बाद भूपेश बघेल ने संघर्ष का रास्ता चुना और उस पर लगातार आगे बढ़ते चले गए. उन्होंने सरकार को निशाने पर लिया, तो वे भी सरकार के निशाने पर लगातार बने रहे. बघेल सरकार पर जब भी तीखे हमले करते थे, तो उतना तीखा पलटवार उन्हें झेलना भी पड़ता था. हालांकि इससे बघेल विचलित हुए बिना अपना काम करते रहे.


मुद्दों पर सरकार को घेरा

ऐसा नहीं है कि बघेल सड़कों पर नहीं आए. जब भी मौका मिला, तो सड़कों पर भी उतरे. उन्होंने भाजपा की प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनने के बाद पहली लड़ाई फर्जी राशन कार्ड के मुद्दे को लेकर लड़ा. किसानों की धान खरीदी की सीमा तय करने के खिलाफ, बोनस की मांग जैसे मामलों पर भी जब वे सड़क पर उतरे, तो उन्हें सफलता मिली. नसबंदी कांड, आंख फोड़वा कांड, भूमि अधिग्रहण जैसे मामलों को लेकर उन्होंने पद यात्राएं की, तो साथ ही चुनाव से पहले भी उन्होंने प्रदेश के कई हिस्सों में पद यात्रा की, साथ ही संगठन को मजबूत बनाने के लिए संकल्प शिविर और प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कराया.

मीडिया का सहारा
भूपेश बघेल ने सड़क और सदन की लड़ाई लड़ने के साथ मीडिया का भी जमकर सहारा लिया. वे रोज प्रेस कांफ्रेंस करते और सरकार के खिलाफ हर बार नया तथ्य लेकर सामने आते. इसे लेकर सरकार ने उनकी जमकर खिल्ली उड़ाई और यहां तक कहा कि प्रेस कांफ्रेस करके कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता. कभी सड़क पर भी उतरें.


निकाय चुनावों से सफलता
नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में जिस तरह की रणनीति भूपेश बघेल ने बनाई और कार्यकर्ताओं को तवज्जो देकर जो नतीजे हासिल किए, उससे वे कार्यकर्ताओं में ये विश्वास जगाने में कामयाब हुए कि कांग्रेस छ्तीसगढ़ में चुनाव जीत सकती है, बशर्ते उन्हें एक होना पड़ेगा.

सरकार के निशाने पर रहे भूपेश
बघेल जैसे जैसे सरकार के खिलाफ हमलावर होते गए, वैसे वैसे सरकार ने उन्हें घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बघेल ने सरकार के इस हथियार को उनके खिलाफ बखूबी इस्तेमाल किया. खासतौर पर जब उनकी मां और पत्नी के खिलाफ ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज किया गया और फर्जी सेक्स सीडी कांड में उनकी गिरफ्तारी हुई तो उन्होंने राजनीतिक कौशल का परिचय देते हुए पूरी पार्टी को अपने पीछे खड़े होने पर मजबूर करके सरकार के साथ ही अपने विरोधियों को अपनी ताकत का एहसास करा दिया. बघेल के साथ ही इसका फायदा कांग्रेस को मिला. हुआ ये कि बघेल की छवि खराब करने की कोशिशें जितनी तेज हुई, उतना ही उन्हें फायदा मिलता चला गया.


भूपेश के लिए टर्निंग प्वाइंट
अंतागढ़ उपचुनाव भी बघेल के राजनीतिक जीवन में बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. कांग्रेस उम्मीदवार को मैदान छुड़ाने की योजना ये सोचकर बनाई गई थी, कि इससे बघेल का कॅरियर खत्म हो जाएगा, लेकिन उन्होंने इसे पैने हथियार की तरह इस्तेमाल किया. इसके पीछे रची गई कथित साजिश के खुलासे के साथ छत्तीसगढ़ में एक नए राजनीतिक दल का जन्म हुआ. अमित जोगी को पार्टी से निकालने का साहस बघेल ही कर पाए, तो उनके पिता अजीत जोगी को पार्टी छोड़ना पड़ा और उन्होंने नई क्षेत्रीय पार्टी बना ली. पार्टी के विभाजन का हवाला देकर भाजपा ये दावा करती रही, कि इससे कांग्रेस कमजोर हो गई है, लेकिन बघेल इसे गलत साबित करने के लिए जुटे रहे. वे लगातार भाजपा और जेसीसीजे को ए और बी टीम बताते रहे. नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस इस मामले में अपनी रणनीति में कामयाब रही.

इस नतीजे की कल्पना नहीं!
छत्तीसगढ़ चुनाव में जो नतीजे आए हैं, सच कहें तो इसकी कल्पना शायद कांग्रेस के दिग्गजों को भी नहीं थी. छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार किसी एक दल को 90 में से 68 सीटें जीती हैं. खैर, अब कांग्रेस के सामने सरकार गठित करने और उसे चलाने की चुनौती होगी. देखना ये होगा कि इसे कांग्रेस कैसे हैंडल करती है.