धर्मांतरण के बाद अब नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ, हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा संविधान के साथ धोखाधड़ी 

धर्मांतरण के बाद अब नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ, हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा संविधान के साथ धोखाधड़ी 

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण के बाद आरक्षण का लाभ लेने वालों के खिलाप बडा फैसला सुनाया है। पफैसले में कहा है कि धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति का दर्जा बनाए रखना संविधान के साथ धोखाधड़ी है। कोर्ट ने प्रदेश के सभी प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिया कि ईसाई धर्म अपना चुके व्यक्ति अनुसूचित जाति की श्रेणी के लाभ न ले सकें।

प्रमुख सचिव को कार्रवाई करने के निर्देश

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को आदेश दिया कि अल्पसंख्यक और अनुसूचित जाति के दर्जे के बीच अंतर को कड़ाई से लागू किया जाए। साथ ही राज्य के सभी जिलाधिकारियों को इस तरह के मामलों की पहचान कर चार महीने के भीतर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं।

जितेंद्र साहनी की याचिका खारिज

जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि ने यह आदेश जितेंद्र साहनी की याचिका खारिज करते हुए दिया। साहनी पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने और समाज में वैमनस्य फैलाने का आरोप है।
उनकी ओर से दावा किया गया था कि वे अपनी जमीन पर यीशु मसीह के उपदेशों का प्रचार करने के लिए प्रशासन से अनुमति मांग रहे थे और उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने हलफनामे में अपना धर्म हिंदू लिखा है, जबकि वह ईसाई धर्म अपना चुका है। धर्मांतरण से पहले वह SC समुदाय से था, लेकिन बदलने के बाद भी उसी दर्जे का लाभ ले रहा था।

37 साल पुराने मामले पर यूपी के डीजीपी से भी जवाब मांगा

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अलग मामले में यूपी के डीजीपी से भी जवाब मांगा है। आरोप है कि 37 साल पहले ललितपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने एक सत्र न्यायाधीश को धमकाया था कि यदि उन्होंने पुलिस से वायरलेस संदेश मांगा या SP को गवाह के रूप में बुलाया, तो उन्हें खींचकर थाने ले जाया जाएगा।

जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की पीठ ने कहा कि इतना समय बीत जाने के बाद भी ऐसे गंभीर आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया कि वह व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर उस पुलिस अधिकारी की वर्तमान स्थिति और उस पर हुई कार्रवाई का विवरण प्रस्तुत करें।
पीठ ने टिप्पणी की कि तत्कालीन SP बीके भोला ने न्यायाधीश के साथ "गुंडे जैसा व्यवहार" किया था। हालांकि उस समय न्यायाधीश ने दया दिखाते हुए आपराधिक अवमानना की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाई थी।