किसान कानून वापसी: बदल जाएगा उप्र का सियासी समीकरण

किसान कानून वापसी: बदल जाएगा उप्र का सियासी समीकरण

लखनऊ,  अचानक पीएम ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर विरोधी पार्टियों में खलबली मचा दिया है। पार्टियां कुछ भी कह रही हैं, लेकिन इस एक निर्णय से मोदी ने सबको चारो खाने चित तो कर ही दिया है। 

उप्र के साथ साथ पंजाब में होगा भाजपा को फायदा

मोदी के तीन कृषि कानून वापसी के ऐलान के बाद माना जा रहा है कि इसका असर वेस्ट यूपी की सियासत पर पड़ेगा। जानकारों का कहना है कि वेस्ट यूपी की सियासत अब बदलेगी। बीजेपी कानून वापसी के अपने मास्टर स्ट्रोक से फिर से 2017 दोहराने की कोशिश करेंगी। वही दूसरी तरफ पंजाब में भी भाजपा को अच्छा लाभ मिल सकता है।

पश्चिमी उप्र में बदल जायेगा समीकरण

भाजपा के लिए up बहुत महत्वपूर्ण है। जहां लगभग 135 सीट किसान आंदोलन से प्रभावित हो रही हैं। पिछले चुनाव में 109 सीट भाजपा को मिली थी। ऐसे में किसानों की नाराजगी भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरता दिख रहा था। 

इतना ही नहीं हर सीट पर नाराजगी का 'फीडबैक' बीजेपी हाईकमान को मिल रहा था। जिस्र दखते हुए भाजपा को ये निर्णय लेने के मजबूर होना पड़ा।

इस पूरे आंदोलन ने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को जरूर किसानों का महायोद्धा के तौर पर पेश किया है। किसान उनमें उनके पिता पिता महेंद्र सिंह टिकैत की छवि देखने लगे हैं। दरअसल, एक वक्त खत्म होते किसान आंदोलन को टिकैत के आंसुओं ने खड़ा कर दिया था और आज कामयाबी भी मिल गई।

कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन का समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी से गठबंधन कर फायदा उठाने की रणनीति बनाई थी। सपा और आरएलडी को उम्‍मीद थी कि जाट, मुस्लिम, यादव समेत कुछ अन्य बिरादरियों के वोट का फायदा मिल सकता है,  लेकिन कानून वापसी के बाद अब सियासी समीकरण बदल सकते है। वेस्ट यूपी में बीजेपी एक बार फिर से पहले की तरह ही आक्रामक रुख अख्तियार कर सकी हैं। माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने कृषि कानून वापसी का ऐलान कर सत्ता की राह में बाधा बन रहे किसान आंदोलन के पत्थर को एक तरह से हटा दिया है।

विपक्षी राजनीति को भी बड़ा झटका

जाटलैंड नाम से मशहूर वेस्‍ट यूपी में कानून वापसी के तीर से विपक्षी राजनीति को भी बड़ा झटका लगा है। दरअसल, बीजेपी के लिए वेस्ट यूपी सियासत के तौर पर उपजाऊ साबित होता रहा है। मोदी युग के शुरू होने के बाद 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में वेस्ट यूपी में कमल को बड़ी जीत मिली।

2017 में वेस्ट यूपी में 109 सीटों पर बीजेपी जीती, जबकि 2012 के चुनाव में सिर्फ 38 सीटें जीती थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें बीजेपी जीती जबकि 2014 में 23 सांसद यहां से जिताए थे। ध्रुवीकरण से फायदा उठाने वाली बीजेपी के लिए तीन कृषि कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलन से हालात काफी बदल गए थे। 2022 में चुनाव में किसान आंदोलन वेस्ट का बड़ा मुद्दा बनता जा रहा था। विपक्षी दलों बीएसपी, आरएलडी, सपा और कांग्रेस सक्रिय रहीं। चौधरी चरण सिंह के जमाने की जाट-मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए लगातार महापंचायत भी हुई।

मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद 2013 से मुस्लिम जाटों का बिखरा ताना-बाना किसान आंदोलन से एकजुट हुआ था। खुद राकेश टिकैत बार-बार जाति धर्म भूलकर किसान बनकर आंदोलन में जुटने की हर बार अपील करते रहे। किसान आंदोलन से सियासी तौर पर वेस्ट यूपी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल भी मजबूत देखी जाने लगी है। 2013 से सियासी रसातल में पहुंची आरएलडी के साथ फिलहाल वेस्ट यूपी की हर जिले का किसान खासकर चौधरी जयंत सिंह का सजातीय जाट एकजुट हो रहा था। बीजेपी इसको खुद के लिए परेशानी मान रही थी। जाट समुदाय का रुख 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में कमल के साथ रहा था।