पुत्र प्रप्ति के लिए करें आज का व्रत, जानें पूजा का मुहूर्त और पूजन विधि

पुत्र प्रप्ति के लिए करें आज का व्रत, जानें पूजा का मुहूर्त और पूजन विधि

पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत आज यानी 17 जनवरी को किया जा रहा है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति और इसके प्रभाव से संतान की रक्षा होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जिन्हें संतान होने में बाधाएं आती हैं उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को अवश्य रखना चाहिए, जिससे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सके।


संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी पूजन विधि
इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए। इस दिन बाल गोपाल की पूजा का विशेष महत्व है। पूरे दिन उपवास रहकर शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार किया जाता है। इस दिन दीप दान करना अच्छा माना जाता है।

पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व यानी दशमी के दिन एक ही वक्त वह भी सात्विक भोजन करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य के नियम का पालन करना चाहिए।

सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल और पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

व्रती को उपवास रहना चाहिए और शाम को दीपदान के बाद फलाहार किया जा सकता है।

व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।

संतान की इच्छा के लिए पति-पत्नी को सुबह के वक्त संयुक्त रूप से भगवान श्री कृष्ण की उपासना करनी चाहिए।

संतान गोपाल मंत्र का जाप करें और इसके बाद प्रसाद ग्रहण कर गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराना और दक्षिणा देना चाहिए।


पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त
18 जनवरी को पारण (व्रत तोड़ने का) समय : 07:18 से 09:23
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय : 20:22
एकादशी तिथि प्रारम्भ : 17/जनवरी/2019 को 00:03 बजे
एकादशी तिथि समाप्त : 17/जनवरी/2019 को 22:34 बजे  

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में भद्रावती नगर में राजा सुकेतुमान का शासन था। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। वर्षों बीत जाने के बावजूद संतान नहीं होने के कारण पति-पत्नी दुःखी और चिंतित रहते थे। इसी चिंता में एक दिन राजा सुकेतुमान अपने घोडे़ पर सवार होकर वन की ओर चल दिए। घने वन में पहुंचने पर उन्हें प्यास लगी तो पानी की तलाश में वे एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी हैं और वहां ऋषि-मुनी वेदपाठ कर रहे हैं। पानी पीने के बाद राजा अाश्रम में पहुंचे और ऋषियों को प्रणाम किया। राजा ने ऋषियों से वहां जुटने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे सरोवर के निकट स्नान के लिए आए हैं। उन्होंने बताया कि आज से पांचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है। जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है, उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। इसके बाद राजा अपने राज्य पहुंचे और पुत्रदा एकादशी का व्रत शुरू किया और द्वादशी को पारण किया। व्रत के प्रभाव से कुछ समय के बाद रानी गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। अगर किसी को संतान प्राप्ति में बाधा होती है तो उन्हें इस व्रत को करना चाहिए। व्रत के महात्म्य को सुनने वाले को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।