आसाराम-नारायण साईं के खिलाफ रेप केस, चश्मदीदों की हुई गवाही

गांधीनगर
अपने एक भक्त की नाबालिग बेटी से रेप के जुर्म में जोधपुर सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम की मुसीबतें अभी और बढ़नी तय लग रही हैं. आसाराम के बेटे नारायण साईं की भी आगे की राह मुश्किल ही नजर आ रही है. सूरत की दो बहनों द्वारा आसाराम और नारायण साईं के खिलाफ रेप केस में शनिवार को गांधीनगर की कोर्ट में प्रत्यक्षदर्शियों ने गवाही दी. बता दें कि इस मामले में नारायण साईं भी न्यायिक हिरासत में जेल में बंद है. सूरत की पीड़िता बहनों में से बड़ी लड़की ने आसाराम पर 1997 से 2006 के बीच अहमदाबाद के मोटेरा स्थित आश्रम में कई बार रेप करने का आरोप लगाया है, वहीं छोटी लड़की ने यही आरोप नारायण साईं पर लगाए हैं.

जोधपुर की जेल में बंद आसाराम ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गांधीनगर की अदालत में हुई इस सुनवाई में हिस्सा लिया. हालांकि सुनवाई के बाद आसाराम के वकील आरसी कोडेकर ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि चूंकि निचली अदालत की कार्यवाही बंद कमरे हुई है, इसलिए कानूनी तौर पर हम कोई जानकारी नहीं दे सकते. अगली सुनवाई 14 मई को होगी. आसाराम और नारायण साईं के खिलाफ चल रहे इस मामले में अब तक दो दर्जन प्रत्यक्षदर्शियों ने अदालत में अपने बयान दर्ज करा दिए हैं और अन्य को अभी बयान दर्ज कराने हैं. सुरक्षा कारणों के कारण अदालत की कार्यवाही कैमरे में कैद की गई.

बता दें कि आसाराम और उसके बेटे के जेल में बंद होने के बावजूद अब तक 9 गवाहों पर जानलेवा हमले हो चुका है, जिसमें आसाराम के अनुयायियों ने 3 गवाहों की हत्या कर दी है. आसाराम के खिलाफ मार्च 2016 में दुष्कर्म के आरोप तय किए गए और बाद में इसे सूरत से गांधीनगर स्थानांतरित कर दिया गया. आरोप पत्र में आसाराम की पत्नी लक्ष्मी और उनकी बेटी भारती का नाम भी शामिल किया गया है. इस कथित अपराध को अंजाम देने में मदद करने के लिए चार अन्य महिलाओं का नाम भी शामिल किया गया है.

जोधपुर की एक विशेष अदालत ने इसी साल 25 अप्रैल को आसाराम को 2013 में राजस्थान के अपने आश्रम में एक नाबालिग से दुष्कर्म करने के मामले में भी दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल में आसाराम की जमानत याचिका खरिज कर दी थी और कमजोर जांच करने के लिए गुजरात पुलिस को भी इस मामले में लताड़ लगाई थी. न्यायालय ने कहा कि मामले के साक्ष्यों को पांच सप्ताह के भीतर ही रिकॉर्ड किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी कई बार आसाराम की जमानत याचिका खारिज कर चुकी है.