मनरेगा अब ‘जी राम जी’, लोकसभा में ध्वनिमत से बिल पास, विपक्ष ने विरोध में नारेबाजी की  

मनरेगा अब ‘जी राम जी’, लोकसभा में ध्वनिमत से बिल पास, विपक्ष ने विरोध में नारेबाजी की  

नई दिल्ली। आज गुरुवार को लोकसभा में विपक्ष के भारी विरोध के बीच ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी ‘वीबी- जी राम जी’ बिल ध्वनिमत से पास हो गया। बिल के विरोध में विपक्ष ने बिल के कागज़ फाड़कर फेंक दिए, शोर शराबे और हंगामें के बाद सदन की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई।

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा पहले तो नरेगा नाम था

लोक सभा में जवाब देते हुए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘मनरेगा का नाम पहले पहले महात्मा गांधी के नाम पर नहीं रखा गया। वो तो पहले नरेगा थी। बाद में जब 2009 के चुनाव आए तब चुनाव और वोट के कारण महात्मा गांधी याद आए। तब उसमें जोड़ा गया महात्मा गांधी।’

बापू हमारी प्रेरणा और श्रद्धा हैं: शिवराज सिंह

शिवराज सिंह चौहान ने आगे कहा, हम किसी से भेदभाव नहीं करते, बापू हमारी प्रेरणा और श्रद्धा हैं। पूरा देश हमारे लिए एक है। देश हमारे लिए केवल जमीन का टुकड़ा नहीं है। हमारे विचार संकीर्ण और संकुचित नहीं है। वहीं, कांग्रेस के सांसद केजी वेणुगोपाल ने स्पीकर से कहा कि इस बिल को किसी स्थायी समिति या संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाए। हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष ने यह कहते हुए अनुरोध अस्वीकार कर दिया कि इस विधेयक पर 14 घंटे से अधिक समय तक बहस हो चुकी है। इस दौरान विपक्ष के नारेबाजी शुरू करने पर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बहस जारी रखने की मांग की। बता दें कि पहले बुधवार को लोकसभा में इस बिल पर 14 घंटे चर्चा हुई। कार्यवाही देर रात 1:35 बजे तक चली। इसमें 98 सांसदों ने हिस्सा लिया।

विपक्ष ने स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की

विपक्ष ने मांग की कि प्रस्तावित कानून को स्थायी समिति के पास भेजा जाए। यह बिल 20 साल पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की जगह लेगा। गुरुवार को भी संसद परिसर में विपक्षी सांसदों ने मनरेगा का नाम बदलने पर विरोध प्रदर्शन किया है। इस दौरान कई बड़े नेता भी मौजूद रहे।

मालूम हो कि मनरेगा और केंद्र सरकार के नए अधिनियम में नाम के अलावा भी कई बदलाव किए गए हैं और विपक्षी दल सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।

प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि यह विषय मनरेगा में बदलाव करने या उसका नाम बदलने का नहीं है। उनका कहना है कि हमारे द्वारा जिस काम करने के अधिकार को दिया गया था उसे छीना जा रहा है।

मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘ये मुद्दा बहुत बड़ा है और गरीब लोगों के लिए, ख़ासकर जो पिछड़े, दलित वर्ग के लोग काम करते थे, उनके बहुत बड़ी मुश्किल है।’

उन्होंने कहा, ‘इसके ख़िलाफ़ हम लड़ेंगे, सड़क पर उतरेंगे और सभी जिलों और राज्यों में इसके ख़िलाफ़ आंदोलन होगा। यह नाम का प्रश्न नहीं है बल्कि यह अधिकारों के बारे में है।

ऐतिहासिक योजना को दफन करने की योजना: योगेंद्र यादव

योगेंद्र यादव ने कहा कि मोदी सरकार ने मनरेगा जैसी ऐतिहासिक योजना को दफन करने का मन बना लिया है। औपचारिक तौर पर ‘संशोधन’ का ढोंग है, 100 की जगह 125 दिन लिख देने का झांसा है- जबकि हक़ीक़त यह है कि रोज़गार की गारंटी को ही ख़त्म किया जा रहा है। ‘विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका गारंटी मिशन’ अब हर हाथ को काम के अधिकार की बजाय, चुनिंदा लाभार्थियों को दिहाड़ी के दान की योजना बनाता है।

वक्ताओं ने कहा कि नया विधेयक केंद्र को यह तय करने का अधिकार देता है कि किन क्षेत्रों में काम मिलेगा, प्रत्येक राज्य को कितनी धनराशि मिलेगी, और साल में दो महीने तक काम रोकने की अनुमति देता है।

उन्होंने राज्यों पर अधिक लागत का बोझ डालने, स्थानीय नियोजन को ऊपर से नीचे तक केंद्रीय नियंत्रण से बदलने और प्रौद्योगिकी आधारित निगरानी के विस्तार पर भी आपत्ति जताई।

द्रेज ने कहा कि मनरेगा ‘जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाया गया कानून’ है, जो वर्षों के संघर्ष के बाद हासिल हुआ है। उन्होंने चेतावनी दी कि नया विधेयक इसे ‘रद्द’ कर देता है और केंद्र को व्यापक शक्तियां सौंप देता है। उन्होंने एक ऐसे प्रावधान की ओर इशारा किया जो केंद्र को यह तय करने की अनुमति देता है कि योजना चलेगी या नहीं। उन्होंने बताया कि मनरेगा को 20 साल पहले पहली बार लागू करते समय इसी तरह की शक्तियों का विरोध किया गया था और उन्हें हटा दिया गया था।

वहीं, अर्थशास्त्री जयति घोष ने कहा कि यह विधेयक नागरिकों के अधिकारों से हटकर राज्य-नियंत्रित कल्याण की ओर एक बदलाव का प्रतीक है। उन्होंने कहा, ‘मैं इस नए बदले हुए विधेयक के दो पहलुओं पर प्रकाश डालना चाहती हूं… जो मुझे लगता है कि भारतीय विधायी इतिहास में भी शायद पहली बार है।’ उन्होंने तर्क दिया कि अधिकार-आधारित कानूनों का उद्देश्य ‘नागरिकों के अधिकारों और राज्य की जिम्मेदारियों’ को मान्यता देना था, लेकिन अब ऐसे अधिकार ‘राज्य की ओर से एक उपहार’ में तब्दील हो रहे हैं।

गौरतलब है कि मनरेगा संघर्ष मोर्चा के नेतृत्व में नागरिक समाज संगठन, कुछ साल पहले हुए किसानों के आंदोलन की तर्ज पर 19 दिसंबर से राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं, जिसमें नए विकसित भारत-जी राम जी विधेयक को रद्द करने की मांग की जाएगी।