पूर्व सीजेआई बोले, अगर लोग सरकार से डरने लगें तो यह लोकतंत्र नहीं तानाशाही है
नई दिल्ली
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने एक कार्यक्रम में कहा कि अगर लोग सरकार से डरने लगे तो समझ जाना चाहिए कि ये लोकतंत्र नहीं तानाशाही है। इसके साथ ही उन्होंने कहा, हम एक सभ्य समाज में रहते हैं और सभ्यता को आगे बढ़ते रहना चाहिए। न्याय, समानता और स्वतंत्रता एक कानून के तहत चलने वाली सोसाइटी का महत्वपूर्ण अंग है। इसके साथ-साथ ही सामजिक बदलाव भी होते हैं। लेकिन न्याय का काम भी समाज में भाईचारा बनाए रखना है।
जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, एक बेहतर समाज सिविल लिबर्टी के बिना संभव नहीं है। मैं हमेशा युवाओं से कहता हूं कि उन्हें संविधान पढ़ना चाहिए और उसी के मुताबिक, जीवन जीने की कोशिश भी करनी चाहिए। वहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बोलते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा, विचारों का आजादी से आदान-प्रदान करना बेहद जरूरी है। ये सबसे बेहतर उपहार भी है। जेफरसन ने कहा था, जब सरकार लोगों से डरती है, तो ये आजादी है, लेकिन जब जनता सरकार से डरे तो ये तानाशाही है। जब भी आप जबरदस्ती अपने मन का न्याय पाने की कोशिश करते हैं तो असल में उसका मतलब बर्बाद कर देता है।
जस्टिस मिश्रा ने महात्मा गांधी का हवाला देते हुए कहा, गांधी जी ने कहा था कि अमेरिका ने भी अपनी आजादी हिंसा से प्राप्त की थी। लेकिन भारत ने अहिंसा के जरिए अंग्रेजों को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया था। उन्होंने कहा कि भारत कई तरह की अलग-अलग सोच वाला देश है। स्वतंत्रता अपने आप में ही सबकुछ है। कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वो मूल अधिकारों और मानव अधिकारों का हितैषी हो।
पूर्व सीजेआई ने आगे कहा, बोलने की आजादी लोकतंत्र के लिए बेहत जरूरी है और आईटी एक्ट 66ए पास करने के दौरान कोर्ट ने इस बात का पूरा ख्याल रखा था। सृजनशीलता खत्म होना मौत की तरह ही है। और आजादी के बिना यही होगा। उन्होंने कहा, लोकतंत्र में जाति, रंग या लिंग के आधार पर भेदभाव करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। चुनने की आजादी भी इसमें शामिल है और हरियाणा खाप पंचायतों वाले केस में कोर्ट ने यह साबित भी किया था। आंबेडकर ने संविधान सभा में दिए एक भाषण में कहा था, हम स्वतंत्रता के लिए क्यों अड़े हुए हैं क्योंकि इसके बिना हमारे समाज में समानता आना नामुकिन है। स्वतंत्रता तो जरूरी है लेकिन इसके साथ विचारों में अलगाव होने का भी सम्मान किया जाना चाहिए, अगर हम दूसरे विचारों को आगे आने से रोकते है, तो धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता का भी अर्थ खोते जाते हैं।
ट्रांसजेंडर्स को अगल से पहचान देने वाले मामले पर दीपक मिश्रा ने कहा कि कोर्ट ने कहा था कि लिंग के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता, इसलिए ही तीसरे लिंग का ऑप्शन अस्तित्व में आया। एलजीबीटीक्यू वाले मामले में भी इंसान के मूल अधिकारों को ध्यान में रखकर फैसला लिया गया था।
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