भाजपा के सामने ग्वालियर का गढ़ बचाने की चुनौती

भाजपा के सामने ग्वालियर का गढ़ बचाने की चुनौती

ग्वालियर
मध्यप्रदेश में एक समय कांग्रेस का अभेद किला माना जाने वाला ग्वालियर पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ बन कर उभरा है, जिसे विधानसभा चुनाव में भी सुरक्षित रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी। भाजपा ने वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर जिले की छह विधानसभा सीटों में से चार ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और ग्वालियर दक्षिण पर जीत का परचम लहराकर अपनी मजबूत पैठ बना ली है। वहीं भितरवार और डबरा (सुरक्षित) पर कांग्रेस का कब्ज़ा रहा। ऐसे में भाजपा के सामने वर्ष 2018 के चुनाव में इन चार सीटों को बचाने के साथ ही भितरवार और डबरा पर भी कब्जा करने की चुनौती होगी। 

प्रदेश में वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर पूर्व और ग्वालियर दक्षिण पर भाजपा का, जबकि ग्वालियर ग्रामीण पर बसपा और ग्वालियर सीट पर कांग्रेस का कब्जा था। भितरवार सीट पर भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इस वर्ष डबरा सीट अस्तित्व में नहीं थी और ग्वालियर ग्रामीण को मुरार विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। परिसीमन के बाद जहां डबरा सीट अस्तित्व में आई, वहीं मुरार का नाम ग्वालियर ग्रामीण हो गया। ग्वालियर ग्रामीण में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में नहीं, बल्कि त्रिकोणीय होता आया है, क्योंकि इस सीट के चुनावी अखाड़े में बसपा भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। वर्ष 2008 के चुनाव में यह सीट बसपा के पाले में गई, जबकि वर्ष 2013 में यहां भाजपा की जीत हुई।