देश के 32 फीसदी बुजुर्ग सरकार से नाराज, कई सरकारी सुविधाएं बंद 

देश के 32 फीसदी बुजुर्ग सरकार से नाराज, कई सरकारी सुविधाएं बंद 

विदेशों में बुजुर्गों को 24 घंटे केयर, मुफ्त इलाज-पेंशन... हमारे यहां सब दरकिनार

नई दिल्ली/भोपाल। इस साल मप्र, छग, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होना है। वहीं 2024 में लोकसभा चुनाव होगा। इसको लेकर राजनीतिक पार्टियों और सरकारों ने तैयारियां शुरू कर दी है। मतदाताओं को लुभाने के लिए घोषणा पर घोषणा की जा रही है। केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार सबका फोकस युवा और महिला मतदाताओं पर है। इसलिए इनको आकर्षित करने की घोषणाएं और योजनाएं लॉन्च की जा रही है। लेकिन इस दौरान बुजुर्गों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इससे देश के 32 फीसदी बुजुर्ग सरकार से नाराज हैं।

9 साल के दौरान बुजुर्गों को मिलने वाली कई सरकारी सुविधाएं बंद 
जानकारों का कहना है की सरकार भले ही युवाओं और महिलाओं को खुश कर रही है, लेकिन देश के असली मतदाता तो बुजुर्ग ही हैं। चुनाव कोई भी हो, बुजुर्ग अधिक से अधिक संख्या में मतदान करने पहुंचते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि पिछले 9 साल के दौरान जहां सरकार ने युवाओं और महिलाओं पर योजनाएं न्यौछावर की हैं, वहीं बुजुर्गों को मिलने वाली कई सरकारी सुविधाएं बंद कर दी हैं। खासकर रेल सेवा में सीनियर सिटीजन को मिलने वाली रियायत बंद कर दी गई है। ऐसे में देश की कुल आबादी के 32 फीसदी बुजुर्ग सरकार से नाराज हैं।  

भारत के बुजुर्ग राम भरोसे 
हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन भारत के बुजुर्ग राम भरोसे हैं। इनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है पर ऐसे बुजुर्ग मुफलिसी में जीवन गुजारने को मजबूर हैं जो सरकारी नौकरी में नहीं थे या जिन्हें पेंशन नहीं मिलती। सरकार घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी करती है, लेकिन उनका लाभ बुजुर्गों को नहीं मिलता है। बड़ा सवाल ये है कि क्या बुजुर्गों को सरकारी स्कीम की मदद मिल रही है, और अगर मिल रही है तो उनकी सभी जरूरतें इस मदद से पूरी हो रही हैं? क्योंकि आंकड़े सोचने पर मजबूर करते हैं। साल 2011 के जनगणना के अनुसार देश में 10.38 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं। पिछले 50 वर्षों में भारत की जनसंख्या लगभग 3 गुनी हो गई है, लेकिन बुजुर्गों की संख्या 4 गुना से भी ज्यादा हो गई है। दरअसल पिछले एक दशक में भारत में वयोवृद्ध लोगों की आबादी 39.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। आगे आने वाले दशकों में इसके 45-50 फीसदी की दर से बढऩे की उम्मीद है। यही नहीं, दुनिया के अधिकतर देशों में बुजुर्गों की संख्या दोगुनी होने में 100 से ज्यादा वर्ष लग गए, लेकिन भारत में इनकी आबादी केवल 20 वर्षों में ही दोगुनी हो गई। लेकिन लगता है सरकार को इन आंकड़ों की जानकारी ही नहीं है। अगर वाकई सरकार संवेदनशील और सतर्क होती तो इन बुजुर्गों के लिए भी चुनावी योजनाएं जरूर शुरू करती।

94 प्रतिशत श्रमिक गैर-संगठित क्षेत्र में
आंकड़ों के मुताबिक भारत करीब 94 प्रतिशत श्रमिक गैर-संगठित क्षेत्र में काम करते हैं, इनमें अधिकतर को पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। विभिन्न मंत्रालयों और अन्य सरकारी एजेंसियों के कई सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम हैं। लेकिन सामाजिक सुरक्षा के राज्य-स्तरीय कार्यक्रमों से न जुड़े होने के कारण गैर-संगठित क्षेत्र के श्रमिकों और उनके आश्रितों को बीमारी, अधिक उम्र, दुर्घटनाओं या मृत्यु के कारण बेहद गरीबी का सामना करना पड़ता है। अब आपको हकीकत से वाकिफ कराते हैं, वैसे तो केंद्र सरकार 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को आर्थिक मदद के तौर (वृद्धा पेंशन) देती है। इसका भी भुगतान नियमित नहीं  होता है।

जापान के अलावा फिनलैंड सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी वाले देशों में से
वल्र्ड हैपीनेस इंडेक्स में नंबर-1 पर आने वाला देश फिनलैंड भले ही एक छोटा देश है लेकिन अपने यहां बुजुर्गों के लिए जैसी सुविधाएं वहां विकसित की जा चुकी है उससे हमारे शहरों और स्थानीय प्रशासन के लिए काफी कुछ सीखने लायक है। जापान के अलावा फिनलैंड सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी वाले देशों में से है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और सोशल सिक्योरिटी सिस्टम के कारण यहां लोगों की लाइफ एक्सपेटेंसी 84 साल है। फिनलैंड में 60 साल से अधिक उम्र का हर शख्स ओल्ड एज पेंशन का हकदार होता है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में वहां के स्थानीय प्रशासन की ओर से बुजुर्ग लोगों के लिए ओल्ड एज पेंशन की 1888 यूरो की हर महीने व्यवस्था है जो कि भारतीय रुपये में एक लाख 65 हजार रुपये बनता है वो भी हर महीने। इसके अलावा सिटी प्रशासन की ओर से बुजुर्गों को फिजिकली और सोशली एक्टिव रखने के लिए भी कई तरह के कदम उठाए जाते हैं।

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