प्रदीप पांडेय
शहड़ोल। शहड़ोल लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीट बनती जा रही है ... इस आदिवासी सीट पर आमनें - सामनें दलबदलू नेता मैदान में है। वहीं मौजूदा भाजपा सांसद ज्ञान सिंह दोनों ही पार्टियों का समीकरण बिगाड़ते नजर आ रहे हैं ।
शहड़ोल लोकसभा सीट का चुनाव भाजपा के लिये सिरदर्द बनता जा रहा है। पार्टी नें इस बार मौजूदा सांसद ज्ञान सिंह कि टिकट काटकर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई हिमाद्री को मैदान में उतार दिया है । जिसके बाद ज्ञान सिंह बगावत पर उतर आये हैं और पार्टी से इस कदर नाराज है कि निर्दलीय लड़नें का ऐलान कर चुके हैं ।
वहीं ज्ञान सिंह का यह भी कहना है कि यदि भाजपा हिमाद्री कि जगह किसी और को उम्मीदवार बनाती तो उन्हें कोई शिकायत नहीं थी, उनके इस बयान से 2016 के उप चुनाव के कुछ पहलू सामने निकल आ रहे हैं जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि हिमाद्री और ज्ञान सिंह कि दूरियां इस वजह से कम नहीं हो पा रही है।
तत्कालीन भाजपा सांसद दलपत सिंह परस्ते कि ब्रेन हेमरेज से मृत्यु के बाद खाली हुई शहडोल सीट पर 2016 में उपचुनाव हुये और भाजपा नें प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री रहे ज्ञान सिंह को मैदान में उतारा था । ज्ञान सिंह इस चुनाव में उतरनें को तैयार नहीं थे फिर भी पार्टी नें उन्हे राजी किया और वह चुनाव मैदान में उतर गये उनका मुकाबला कांग्रेस के दिवंगत दिग्गज नेता रहे
दलबीर सिंह की पुत्री हिमाद्री सिंह से था । नोटबंदी का दौर था और पूरे देश कि नजर इस सीट के चुनाव नतीजों पर थी माना यह जा रहा था कि भाजपा के लिये इस बार इस सीट को जीतना मुश्किल हो सकता है। लेकिन ज्ञान सिंह नें हिमाद्री दलबीर सिंह लगभग 58 हजार वोटों से पराजित कर जिले में अपनी पकड़ को पार्टी के सामनें साबित कर दिया।
लेकिन इस उपचुनाव में ज्ञान सिंह प्रचार के दौरान मंच से *दिल को देखो चेहरा ना देखो* कहकर जनता से वोट मांगा और तंज भी कसा जिसे लेकर हिमाद्री नें मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा और *शिवराज अंकल* संबोधित कर बेटी और भांजी के लिये एक बुजुर्ग नेता द्वारा इस तरह कि भाषा के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई और लिखा कि इससे प्रदेश में आपकी भांजियों के हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है, हिमाद्री का यह पत्र ना सिर्फ सोशल मीडिया में जमकर वायरल हुआ बल्कि पूरे चुनाव की सुर्खियां बना रहा। लेकिन परिणाम हिमाद्री के पक्ष में ना रहे और उन्हे हार का सामना करना पड़ा।
2019 में कांग्रेस कि हिमाद्री सिंह भाजपा कि हो गई और जिस नेता से पराजित हुई उसका ही पत्ता काट चुनावी मैदान में है। कहीं ना कहीं ज्ञान सिंह को भी यह बात रास नहीं आ रही कि जिसे दो साल पहले चुनावी मंच से जमकर कोसा उसके साथ मंच कैसे साझा करें साथ ही पार्टी नें एक ऐसा उम्मीदवार मैदान में उतारा है जो अपनें घर व गढ़ कहे जानें वाले क्षेत्र से पति नरेन्द्र मरावी को हाल हि में हुये विधानसभा चुनाव में जितानें में नाकामयाब रही वह यह चुनाव कैसे जीत पायेगी, दूसरी तरफ कोई बड़ा नेता भी अब तक ज्ञान सिंह के दर्द को बांटनें नहीं आया । ज्ञान सिंह वैसे तो निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं और अपनें समर्थकों के साथ राशुमारी कर रहे है, लेकिन मन ही मन इस बात की आश भी लगाये बैठे हैं कि अंतिम समय तक पार्टी उनकी सुध लेगी।
कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का है, विधानसभा चुनाव में टिकट ना मिलनें से नाराज जिले की जयसिंहनगर सीट से तत्कालीन भाजपा विधायक प्रमिला सिंह को दलबदलू और अवसरवादी नेता जनता मान रही है । ऐसे में यदि ज्ञान सिंह गोगंपा और बसपा से समर्थन कर मैदान में उतरनें का फैसला लेते हैं तो दोनों ही दलों के लिये बड़ी मुसीबत बन हो सकती है और यह चुनाव दिलचस्प हो सकता है।