अमर हैं जगजीत के गीत, होंठों  को हमेशा छूते रहेंगे'

अमर हैं जगजीत के गीत, होंठों  को हमेशा छूते रहेंगे'

विश्वदीप नाग
ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह की ज़िंदगी पर लिखी गई यह उत्कृष्ट किताब मेरे जैसे करोड़ों संगीत प्रेमियों को स्मृतियों के उन गलियारों में ले जाती है, जब लगभग चार दशक पहले उन्होंने पहली बार जगजीत सिंह की जादुई आवाज़ सुनी थी। बात 1981 की है। उस वक़्त हम भी तरुणाई से निकल कर युवा अवस्था की दहलीज़ पर क़दम रख रहे थे। यही वह उम्र होती है, जब युवा इश्क़ की ख़ुशबू को पहली बार महसूस करता है। हम सब जानते हैं कि युवा फ़िल्म संगीत में अपनी अभिव्यक्ति का प्रतिबिंब देखता है। एक दिन रेडियो पर जब हमने 'प्रेमगीत' फ़िल्म का गीत ' होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो' सुना तो मानो हमारे दिलों पर किसी ने जादू  कर दिया हो। जगजीत सिंह की रूहानी आवाज़ ने मेरे जैसे करोड़ों युवाओं को उनका दीवाना बना दिया। पचपन की उम्र पार करने के बावजूद हम पर उनकी आवाज़ का जादू न केवल ज्यों का त्यों है, बल्कि उसकी ताज़गी लगातार बढ़ती जा रही है। लगता ही नहीं है कि वे आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके गीत अमर हैं , होंठों  को हमेशा छूते रहेंगे।

चार दशक पहले न तो मीडिया का इतना व्यापक प्रसार था और न ही इंटरनेट हुआ करता था। लिहाज़ा, प्रशंसकों को अपने चहेते कलाकारों के बारे ज़्यादा जानने के माध्यम नहीं मिलते थे। चंद फ़िल्मी पत्रिकाएँ इस कमी को पूरा नहीं कर पाती थीं। वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की इस कृति ने ग़ज़ल के जादूगर की जीवन यात्रा को जीवंत तरीक़े से हमारे सामने प्रस्तुत करके इस कमी को पूरा कर दिया है। किताब के माध्यम से पता चलता है कि वे शानदार गायक होने के साथ-साथ संवेदनशील इंसान भी थे। वे लोगों की मदद करने लिए हमेशा तैयार रहते थे।

कुल 14 अध्यायों में विभक्त इस किताब में शानदार चित्रण है कि कैसे राजस्थान के श्रीगंगानगर की गलियों से एक राजस्थानी सिख बच्चे का सफ़र शुरू होता है। उसकी साँसों से सरगम फूटती है। उसके शबद और कीर्तन, सुनने वालों को रूहानियत से भरे अलग लोक में ले जाते हैं। जब वह पक्की रागदारी में गुरबानी का संदेश श्रद्धालुओं तक पहुँचाता, तो वे बालक  जगमोहन के चेहरे पर एक तेज देखते। उसके पिता के  गुरुजी ने कहा, “यह लड़का पूरे जग को जीतेगा। इसका नाम बदल दो।'' ऐसे मिला हमारे ग़ज़ल सम्राट को जगजीत नाम।  अपने संकल्प, समर्पण और संगीत साधना के बल पर जगजीत ने गुरुजी की भविष्यवाणी को सच साबित कर दिखाया।

किताब में 'सपनों को लगे पंख', 'मायानगरी में मुक़द्दर', 'ज़िंदगी में चित्रा' और 'जोड़ी शिखर पर' आदि शीर्षकों से प्रस्तुत अध्यायों में जगजीत की ज़िंदगी के सफ़र की वो समूची दास्तान शामिल है, जिसे शायद ही कोई जानता हो। उनके बचपन के दोस्तों से  बातचीत लाजवाब है। पता चलता है कि हमारे जगजीत भी कितने शरारती थे। लेखक ने वे घटनाएँ पेश की हैं, जो पाठक  पहली बार जानेंगे। किताब में  अनेक अनकहे क़िस्से हैं, जो परिवार के सदस्यों, दोस्तों, सहयोगी कलाकारों और उनसे जुड़े अनगिनत शुभचिंतकों ने सुनाए हैं। कुछ प्रसंग स्वयं जगजीत सिंह ने भी साझा किए हैं।
किताब की भूमिका जगजीत सिंह के छोटे भाई करतार सिंह ने लिखी है। राजेश बादल राज्यसभा टीवी के लिए जगजीत सिंह पर एक -एक घंटे की पाँच फ़िल्में बना चुके हैं, जिन्हें दर्शकों ने काफ़ी पसंद किया था। किताब के हर पेज पर उनके गहन शोध की झलक मिलती है। दुर्लभ और यादगार तस्वीरें किताब को जगजीत के सफ़रनामे का प्रामाणिक दस्तावेज़ बना देती हैं। लेखन और संपादन दोनों तारीफ़ के क़ाबिल है। यह एक ऐसी किताब है, जिसे हर संगीत प्रेमी अपने संकलन में संजो कर रखना चाहेगा। ख़ास बात यह है कि इस बेजोड़ कलाकार की जीवन गाथा पहली बार हिंदी में प्रकाशित हुई है। 

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
लेखक : राजेश बादल
पृष्ठ  : 242

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