हाथरस केस : हाईकोर्ट का यूपी सरकार से सवाल-एसपी को निलंबित किया तो डीएम को क्यों नहीं?

लखनऊ
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि हाथरस के एसपी को निलम्बित किया गया तो डीएम को वहां क्यों बनाए रखा गया है। हाथरस कांड पर हाईकोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई का आदेश मंगलवार देर शाम आ गया। न्यायालय ने कहा कि हम राज्य सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह इस संबंध में एक निष्पक्ष निर्णय लेगी। न्यायालय ने कोर्ट में मौजूद अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी से पूछा कि वर्तमान परिस्थितियों में जबकि अंतिम संस्कार के मामले में डीएम की एक भूमिका थी, ऐसे में क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना उचित है। इस पर अपर मुख्य सचिव ने भरोसा दिलाया कि सरकार मामले के इस पहलू को भी देखेगी और इस पर निर्णय लेगी। पीड़िता के परिवार, अपर मुख्य सचिव, डीजीपी, एडीजी कानून व्यवस्था तथा हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार को विस्तारपूर्वक सुनने के बाद न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि तथ्यों से प्रतीत होता है कि मृतका का चेहरा दिखाने के परिवार के अनुरोध पर प्रशासन ने स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया होगा। हालांकि तथ्य यही है कि बार-बार के अनुरोध के बावजूद उनमें से किसी को भी चेहरा नहीं दिखाया गया। न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार का उल्लंघन किया गया। पीड़ित परिवार, वहां मौजूद लोगों और रिश्तेदारों की भावनाओं को भी आहत किया गया।
लिहाजा हमारे समक्ष महत्वपूर्ण मुद्दा है कि आधी रात में जल्दबाजी से अंतिम संस्कार करके, परिवार को मृतका का चेहरा न दिखाकर और आवश्यक धार्मिक क्रियाकलाप की अनुमति न देकर क्या संविधान में प्रदत्त जीवन के अधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है। यदि ऐसा है तो यह तय करना होगा कि इसका कौन जिम्मेदार है और पीड़िता के परिवार की क्षतिपूर्ति कैसे की जा सकती है। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की है कि आजादी के बाद शासन और प्रशासन का सिद्धांत 'सेवा' और 'सुरक्षा' होना चाहिए, न कि 'राज' और 'नियंत्रण' जैसा कि आजादी के पहले था। जिला स्तरीय अधिकारियों को ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार की ओर से समुचित प्रक्रिया व दिशानिर्देश मिलना चाहिए। भविष्य में ऐसा विवाद न उत्पन्न हो, इस बावत भी न्यायालय विचार करेगा। न्यायालय ने अपने आदेश में अपर मुख्य सचिव के इस बयान को भी दर्ज किया कि सरकार जिला स्तरीय अधिकारियों के लिए ऐसी परिस्थितियों में अंतिम संस्कार को लेकर दिशानिर्देश जारी करेगी। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने सख्ती से यह भी आदेश दिया है कि जो अधिकारी इस मामले की विवेचना से नहीं जुड़े हैं, वे अपराध के बारे में अथवा साक्ष्य संकलन के बारे में बयान न दें क्योंकि यह भ्रम पैदा कर सकता है। न्यायालय व जांच एजेंसियां इस मामले को देख रही हैं लिहाजा गैर जिम्मेदराना बयानबाजी से परहेज किया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने की मंशा रखते हुए हम मीडिया व राजनीतिक दलों से भी अनुरोध करते हैं कि वे ऐसा कोई विचार न व्यक्त करें जिससे सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचे व पीड़िता के परिवार व अभियुक्तों के अधिकारों का उल्लंघन हो। न्यायालय ने कहा कि जिस प्रकार अभियुक्तों को ट्रायल पूर्ण होने से पहले दोषी नहीं ठहराना चाहिए, उसी प्रकार किसी को पीड़िता के चरित्र हनन में भी संलिप्त नहीं होना चाहिए।
मुआवजे की रकम बैंक में जमा करें
न्यायालय ने कहा कि सरकार ने पीड़िता के परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा की है लेकिन सम्भवतः वह उन्हें स्वीकार नहीं है क्योंकि परिवार के एक सदस्य ने कहा कि मुआवजा अब किसी काम का नहीं। फिर भी हम मुआवजे का प्रस्ताव परिवार को जल्द से जल्द दिया जाए और यदि वे लेने से इनकार करते हैं तो उसे जिलाधिकारी किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में ब्याज मिलने वाले खाते में जमा कर दें, जिसके उपयोग के बारे में हम आगे निर्देश दे सकते हैं।