मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में दो तिहाई से ज्यादा सांसदों ने नहीं दिखाई रुचि

मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में दो तिहाई से ज्यादा सांसदों ने नहीं दिखाई रुचि

गांवों के प्रति सांसद फिक्रमंद नहीं

चौथे चरण में मप्र के 40 सांसदों में से केवल 7 ने गोद लिए गांव

अब तक सिर्फ 1,753 ग्राम पंचायत ही आदर्श ग्राम के लिए चयनित हुए

वर्तमान में 790 सांसदों में से केवल 252 ने ही गांवों को लिया है गोद

2014 में अच्छे दिन का सपना दिखाकर सत्ता पाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के गांवों के विकास के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की थी। उनको उम्मीद थी कि सांसद अपने क्षेत्र में विकास के लिए इस योजना को न केवल हाथों-हाथ लेंगे, बल्कि विकास की नई बयार भी बहेगी। लेकिन सांसदों की निष्क्रियता से यह योजना चौथे चरण में ही चरमरा गई है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय रिपोर्ट के अनुसार सांसद गांवों के प्रति फिक्रमंद नजर नहीं आ रहे हैं। भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने के कुछ महीनों के भीतर ही सांसद आदर्श ग्राम योजना का ऐलान किया था। इसके तहत करीब 2500 गांवों की कायापलट करने का लक्ष्य रखा गया था। योजना के तहत 2014 से 2019 के बीच चरणबद्ध तरीके से सांसदों को तीन गांव गोद लेने थे और 2019 से 2024 के बीच पांच गांव गोद लेने की बात कही गई है। लेकिन अपने क्षेत्र में विकास के बड़े-बड़े वादे करने वाले सांसदों ने इसमें कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई। इसका परिणाम यह हुआ है कि चौथे चरण में ही योजना फुस्स होने लगी है। इस बार अभी तक दो तिहाई से ज्यादा सांसद पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में दिलचस्पी नहीं दिखा पाए हैं। इसका खुलासा केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से हुआ है। सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारंभ 11 अक्तूबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य एक आदर्श भारतीय गांव के बारे में महात्मा गांधी की व्यापक कल्पना को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ध्यान में रखते हुए एक यथार्थ रूप देना था। योजना के अंतर्गत, प्रत्येक सांसद एक ग्राम पंचायत को गोद लेता है और सामाजिक विकास को महत्व देते हुए इसकी समग्र प्रगति की राह दिखाता है जो इंफ्रास्ट्रक्चर के बराबर हो। सांसद आदर्श ग्राम योजना के लिए अलग से कोई आवंटन नहीं किया जाता है और सांसदों को सांसद निधि के कोष से ही इसका विकास करना होता है। शायद यही वहज है कि सांसद गांवों के विकास में रूचि नहीं ले रहे हैं। बड़े राज्यों में मप्र फीसड्डी: मप्र में लोकसभा के 29 और राज्यसभा के 11 सांसद हैं। इनमें से लोकसभा के 28 और राज्यसभा के 8 सांसद भाजपा के हैं। यानी 40 में से 36 सांसद भाजपा के हैं, लेकिन इनमें से मात्र 7 सांसदों ने ही आदर्श ग्राम योजना के चौथे चरण में गांवों को गोद लिया है।  इस कारण मप्र बड़े राज्यों में फीसड्डी साबित हुआ है। मप्र के सांसदों ने चार चरणों में कुल 80 गांवों को गोद लिया है। इनमें सबसे कम चौथे चरण में अब तक मात्र 7 गांवों को गोद लिया है। जबकि चौथे चरण में उत्तर प्रदेश के 52, तमिलनाडु के 36, महाराष्ट्र के 32, गुजरात के 28, राजस्थान के 20, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के सांसदों ने 9-9 गांवों को गोद लिया है। सात माह में महज सात ने चुना गांव: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में शामिल सांसद आदर्श ग्राम योजना में मध्य प्रदेश के सांसदों की रुचि नहीं दिखाई दे रही है। यही कारण है कि सात माह के कार्यकाल में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद राकेश सिंह सात सांसदों को छोड़कर प्रदेश के शेष सांसद अपने ही संसदीय क्षेत्र में एक ऐसा गांव तलाश नहीं कर पाए हैं, जिसे तमाम सुविधाएं पहुंचाकर आदर्श बनाया जा सके। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कार्यकाल में देशभर के सांसदों से अपने संसदीय क्षेत्र में एक गांव चुनने और उन्हें तकनीकी, सांस्कृतिक रूप से आदर्श बनाने के निर्देश दिए थे। इस बार प्रधानमंत्री ने प्रत्येक सांसद को पांच गांव गोद लेकर अपने कार्यकाल में उन्हें आदर्श ग्राम में बदलने को कहा है। यह निर्देश मई 2019 में दिए गए थे, लेकिन प्रदेश में इन निर्देशों का असर देखने को नहीं मिल रहा है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तक अभी सात सांसदों का प्रस्ताव पहुंचा है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने जबलपुर के ग्राम घाना को आदर्श ग्राम बनाने के लिए चुना है। इनके अलाव सागर के सांसद राज बहादुर सिंह ने नरयावली विधानसभा क्षेत्र व सागर जनपद के तहत आने वाली पंचायत बदौना को, इंदौर सांसद शंकर लालवानी में तिल्लौर खुर्द, राज्य सभा सांसद व पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सीहोर जिले के बुदनी विकासखंड के ग्राम पंचायत डोबी का चयन किया है। वहीं राज्य सभा सांसद अजय प्रताप सिंह ेने सिंगरौली के पोड़ी नौगाई गांव को गोद लिया है। अब तक सिर्फ 1,753 गांव चयनित: साल 2014 में लॉन्च सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत अब तक सिर्फ 1,753 ग्राम पंचायत ही आदर्श ग्राम के लिए चयनित हुए हैं। 2019 के बाद से सभी सांसदों को 5 गांवों को गोद लेकर उन्हें आदर्श ग्राम बनाना है। सांसद ग्राम योजना भारत की पहली ऐसी योजना है जिसमें सांसदों को एक साल के लिए अपने लोकसभा क्षेत्र के किसी एक गांव को गोद लेकर वहां की बुनियादी सुविधाओं समेत खेती, रोजगार, पशुपालन आदि क्षेत्रों के विकास कार्य में जोर देना है। साल 2014 से 2019 के बीच चार पड़ावों में सांसदों द्वारा अपने लोकसभा क्षेत्र में किसी भी एक गांव को गोद लेने की संख्या तेजी से घटी है। आदर्श ग्राम योजना- पहला चरण: केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना के पहले चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से 500 सांसदों ने अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को गोद लिया। वहीं राज्य सभा के कुल 254 सदस्यों में से 203 सदस्यों ने योजना के मुताबिक अपने लिए एक-एक गांव का चयन किया है। लोकसभा और राज्य सभा मिलाकर जहां देश में कुल 796 सांसद थे, वहीं 93 सांसदों ने अपने लिए गांव का चयन नहीं किया। यानी पहले चरण में देशभर में महज 703 गांवों को विकास के टॉप गेयर पर डालने के लिए चयन किया गया। जिसमें मप्र के 40 सांसदों में से 37 सांसदों द्वारा गोद लिए गांव भी थे। आदर्श ग्राम योजना-दूसरा चरण: सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के दूसरे चरण में स्थिति और भी खराब है। लोकसभा के 545 सांसदों में महज 364 सांसदों ने अपने लिए एक गांव का चयन किया। वहीं 259 सांसदों ने गांव का चयन नहीं किया। वहीं राज्य सभा के 243 सांसदों में से महज 133 सांसदों ने गोद लेने वाले गांवों का चयन किया। 110 सांसदों गांव गोद नहीं ले सके। लिहाजा, आंकड़ों के मुताबिक दूसरे चरण के लिए कुल 788 सांसदों में महज 497 सांसदों ने अपने लिए एक गांव का चयन किया। वहीं 291 सांसदों ने योजना के इस चरण में गांव का चयन नहीं किया। दूसरे चरण में मप्र के महज 20 सांसदों में ही गांव गोद लिए। आदर्श ग्राम योजना-तीसरा चरण: आदर्श ग्राम योजना का तीसरा चरण पूरे आदर्श ग्राम योजना पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा के 545 सांसदों में महज 239 सांसदों ने इस चरण में अपने लिए एक गांव को गोद लिया। वहीं राज्यसभा के 243 सांसदों में महज 62 सांसदों ने जरूरी प्रक्रिया को पूरा किया। लिहाजा, आंकड़ों के मुताबिक कुल 788 सांसदों में से 487 सांसदों ने तीसरे चरण के लिए एक भी गांव का चयन नहीं किया। मप्र के 15 सांसदों ने इस चरण में रुचि दिखाई और गांव गोद लिए। आदर्श ग्राम योजना-चौथा चरण: चौथा चरण की हालत बहुत खराब रही। वर्तमान में सांसदों की संख्या 790 है जिसमें लोकसभा में 545 सांसद और राज्यसभा 245 सांसद हैं। इनमें से केवल 252 सांसदों ने रुचि दिखाई और गांव गोद लिए। इनमें 208 लोकसभा से और 44 राज्यसभा से हैं। मप्र के सांसदों की रूचि भी कम होती गई। गोद लेने वाले सांसदों का आंकड़ा 7 पर अटक गया है। 2024 तक 8 गांवों का विकास: इस योजना में 2016 तक प्रत्येक सांसद को एक-एक गांव को गोद लेकर उसे विकसित करना था। 2019 तक दो और गांवों और 2024 तक आठ गांवों का विकास किया जाना था। प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से भी अपील की थी कि वे विधायकों को इस योजना के लिए प्रोत्साहित करें, तो हर निर्वाचन क्षेत्र में 5 से 6 और गांव विकसित हो सकते हैं। 5 साल में घटी 451 सांसदों की भागीदारी: योजना शुरू होने के पांच साल बाद सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सांसदों को दिलचस्पी इसमें नहीं रही। मौजूदा संसद के दो तिहाई से ज्यादा सांसदों ने योजना के चौथे चरण में अभी तक किसी भी ग्राम पंचायत का चयन नहीं किया है। मौजूदा समय में संसद सदस्यों की संख्या 790 है। इसमें चयनित और नामांकित दोनों शामिल हैं। पीएम मोदी के संबोधन के करीब दो महीने बाद 11 अक्टूबर, 2014 को शुरू हुए सांसद आदर्श ग्राम योजना के पहले चरण में 703 सांसदों ने गांवों को गोद लिया था लेकिन दूसरे चरण में यह संख्या घटकर 497 हो गई। तीसरे चरण में 301 सांसदों ने गांवों को विकसित करने के लिए गोद लिया। चौथे चरण में यह संख्या घटकर 252 पर पहुंच गई। यानी पांच साल में 451 सांसदों की संख्या घट गई। कुल चार चरणों में अब तक मात्र 1753 ग्राम पंचायत ही गोद लिए जा सके हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2019 के अंत तक 252 सांसदों ने चौथे चरण में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत ग्राम पंचायतों को गोद लिया है। इनमें से 208 लोकसभा के सांसद हैं, जबकि 44 राज्यसभा के सांसद हैं। फंडिंग का विशेष इंतजाम नहीं: आदर्श ग्राम योजना से सांसदों के मोहभंग की जब पड़ताल की गई तो यह बात सामने आई कि सिांसदों और कैबिनेट मंत्रियों के इस योजना से मुंह मोडऩे की वजह योजना के लिए बजट में किसी प्रकार के फंडिंग के इंतजामों को न होना है। इस योजना को जिस तरह से प्रचारित किया गया, उसके स्तर पर इसकी फंडिंग के इंतजाम नहीं किए गए। इसके लिए कोई नया फंड निर्धारित नहीं हुआ। सांसदों को बताया गया था कि देश में चल रही मौजूदा योजनाओं- इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मनरेगा, बैकवर्ड रीजंस ग्रांट फंड, सांसद निधि, ग्राम पंचायत की कमाई, केंद्र और राज्य वित्त आयोग निधि और कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के ही पैसे का इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा सांसदों को मिलने वाला विकास फंड भी कार्यक्रम पूरा करने में मददगार है। इस योजना के तहत स्कूल और शिक्षा के प्रति जागरूकता, पंचायत भवन चौपाल और धार्मिक स्थल, गर्भवती महिलाओं के लिए पोषक आहार की व्यवस्था व गोबर गैस के लिए सार्वजनिक प्लांट आदि शामिल हैं। बुरा हो गया आदर्श ग्रामों का हाल: सांसदों के गोद लिए कई गांवों को आदर्श गांव घोषित तो कर दिया गया, लेकिन कुछ ही दिनों में उन गांवों की हालत पहले जैसी हो गई। इन गांवों में सोशल कॉरपोरेट रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत कई काम कराए गए थे, जिनकी गुणवत्ता कुछ महीनों बाद ही सामने आने लगी। इन गांवों में से अधिकांश में सड़क, सफाई, बिजली, पानी, रोजगार और स्वास्थ्य की स्थिति खराब है। क्या कहती है संसदीय समिति की रिपोर्ट: हाल रही में शहरी विकास पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि फंडिंग और उचित कार्ययोजना के अभाव में भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं कागजों में ही सफल होंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी मोदी सरकार की छह शीर्ष योजनाओं में केवल 21 फीसदी फंड का ही इस्तेमाल हो सका। ये हाल स्मार्ट सिटी समेत उन योजनाओं का भी है जिनके लिए अतिरिक्त फंड की घोषणा की गई थी। आदर्श ग्राम योजना के लिए तो सरकार की ओर से किसी अतिरिक्त फंड का इंतजाम नहीं है। ऐसे में आदर्श गांव बनाने का पीएम का सपना सच होता नहीं दिख रहा है। योजना में तीन बातों पर जोर: योजना में गांव में बुनियादी सुविधाओं के साथ खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, रोजगार आदि पर ध्यान दिया जाना है। इसमें तीन बातों पर जोर दिया गया है। गांव के लिए जो भी योजना बनाई जाए, वह मांग पर आधारित हो, समाज द्वारा प्रेरित हो और उसमें जनता की भागीदारी हो। योजना का मुख्य उद्देश्य सांसदों की देखरेख में चुनी गईं ग्राम पंचायतों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। इस योजना के तहत ग्रामों के विकास के लिए इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास योजना और मनरेगा से फंडिंग की जाती है। न मंत्रियों ने काम किया, न सांसदों ने: सांसद आदर्श ग्राम योजना नरेंद्र मोदी की बड़ी महत्वाकांक्षी स्कीम है। जिस साल सत्ता में आए, यानी 2014 में, उसी साल इस स्कीम की लॉन्चिंग हुई और सभी सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्रों में एक-एक गांव गोद लेना था। उन गांवों को आदर्श ग्राम की तरह विकसित करना था, ताकि दूसरे गांवों के लिए ये गांव एक मिसाल बन सकें। पांच साल गए। सरकार चुनकर फिर से वापिस आ गई। दावा ये कि सांसद आदर्श ग्राम योजना सुपरहिट। लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बताया है कि योजना के अधीन दिए गए लगभग आधे प्रोजेक्ट ही पूरे हो सके हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपनी नई परफॉरमेंस और एक्शन प्लान रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर जारी की है। इस रिपोर्ट में मंत्रालय ने बताया है कि इस प्रोजेक्ट के अंदर आने वाले 35 प्रतिशत प्रोजेक्ट अभी तक शुरू नहीं हो सके हैं। इसके अलावा मंत्रालय ने खुद ही जानकारी दी है कि सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत 13 प्रतिशत प्रोजेक्ट अभी भी अधूरे हैं। गणित के हिसाब से देखें तो लगभग 52 प्रतिशत यानी लगभग आधे प्रोजेक्ट ही पूरे हो सके हैं। इसका सीधा मतलब ये भी लगाया जा सकता है कि सांसदों ने चाहे किसी भी पार्टी के हों आधा काम किया ही नहीं। सांसद आदर्श ग्राम योजना के बारे में ये बातें भी हो रही हैं कि इस योजना के पहले चरण तक सांसदों ने बहुत उत्साहित होकर काम किया। लेकिन योजना के चौथे चरण तक आते-आते सांसदों का उत्साह कम हो गया, और एक-तिहाई सांसदों ने ही गांवों को गोद लेने में रुचि दिखाई। प्लान से पीछे चल रहा स्कीम: आदर्श ग्राम योजना के तहत साल 2016 तक सभी सांसदों को अपने लोकसभा क्षेत्र के किसी एक गाँव पर विकास कार्य कर उसे आदर्श गांव का मॉडल बनाना था। साल 2016 के बाद सांसदों को किसी दो गाँव को गोद लेकर उसे आदर्श गाँव के रूप में तब्दील करना था। वहीं 2019 के बाद यानी वर्तमान में अब से पांच गांव सांसदों के झोली में हैं, जिन्हें उन्हें आदर्श ग्राम बनाना है।  सुधार के लिए तैयार किया गया खाका: नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के पिछले पांच साल के निराशाजनक प्रदर्शन को सुधारने के लिए अब चाक-चौबंद व्यवस्था की है। पीएमएजीवाई 2019-24 योजना के इस चरण में 50 फीसदी अनुसूचित जाति के गांवों को चुनना भी अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा अगले पांच साल में कम से कम तीन और अधिकतम पांच गांवों में किए गए विकास कार्य के आधार पर सांसदों के कामकाज का आकलन किया जाएगा। ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नए नियम न केवल कड़े मानकों से लैस हैं। इनमें विकास कार्यों को तय समय से पूरा करने का लक्ष्य है। 12 कमेटियों की सतत निगरानी से विकास कार्यों की सफलता को सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह योजना कई मंत्रालयों के सहयोग से चलती है, इसलिए इस बार विकास कार्यों की समय सीमा अधिकतम दो साल तय की गई है। प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना को प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में शुरू किया था। 2015-16 में लगभग 1297 गांवों को आदर्श ग्राम बनाना था, लेकिन केवल 140 गांवों में ही सौ फीसदी काम पूरा हुआ। बाकि गांवों में केवल 51 फीसदी काम पूरा होने का ब्योरा सरकार ने जुलाई 2019 में जारी किया था। इसलिए सरकार ने अब आदर्श ग्राम योजना के लिए चाक-चौबंद इंतजाम किए हैं। सांसदों के लिए आदर्श ग्राम के मानक: आदर्श ग्राम बनाने के लिए सांसदों को जिन मानकों का पालन कराना होगा, वह हैं गांव में रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए जरूरी पानी और पेयजल की व्यवस्था। प्रत्येक घर के साथ शौचालयों की अनिवार्यता। कौशल विकास केंद्र समेत सभी ग्रामीणों का बैंक खाते की अनिवार्यता। सभी स्कूलों और आंगनबाडिय़ों में पेयजल और शौचालयों का होना जरूरी। सड़कों, स्वास्थ्य सेवाओं की बहाली, पौष्टिक भोजन की उपलब्धता, विधवा व वृद्धा पेंशन को लागू करना आदि। सांसद बदले तो बदल गई प्राथमिकताएं: जहां सांसदों द्वारा विकास के लिए गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया में गिरावट आई है, वहीं जो गांव गोद लिए गए हैं उस क्षेत्र के सांसद बदले तो प्राथमिकताएं भी बदल गईं। प्रदेश में अधिकांश आदर्श ग्राम ऐसे हैं जिनकी अब कोई सुध नहीं लेता। गोद लेने की यह महत्वाकांक्षी विकास योजना दम तोड़ रही है। अब गांवों के बाहर केवल शिलान्यास का बोर्ड भर रह गया है। इसकी एक वजह है सांसद स्तर से भी जरूरी फंड नहीं दिया गया। जबकि सांसदों को अपने कार्यकाल में तीन गांवों को गोद लेकर आदर्श बनाने का लक्ष्य था। इन गांवों को दो वर्ष के अंदर आदर्श बनाने तथा तीन वर्ष तक मॉनिटरिग करने का प्रावधान है। विभागों ने नहीं दिखायी रुचि: सांसद आदर्श ग्रामों के विकास में कई विभागों ने रुचि नहीं दिखाई। लिहाजा संबंधित विभागों का अधिकांश कार्य धरातल पर उतर नहीं पाया। योजना से सांसदों की बेरुखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले सालों में जिन सांसदों ने गांव गोद लिए थे। वे भी पूरी तरह से विकास कार्य नहीं करा सके। जबकि उन्हें दो साल में गांव को पूरी तरह से तस्वीर बदलना थी। सांसद आदर्श ग्राम में फंड की कमी: केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा दो माह पहले मध्यप्रदेश के दौरे पर भेजे गए सेंट्रल रिव्यू मिशन ने अपनी रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के गांवों में चल रही चार योजनाओं पर सवाल उठाए हैं। मिशन ने ने कहा कि ग्राम पंचायत विकास योजना के बारे में ग्रामीणों को जानकारी ही नहीं है। ऐसे में गांवों को डवेलपमेंट प्लान कैसे तैयार किया जा रहा है। केंद्र की टीम ने सिफारिश की है कि जीपीडीपी के मामले में मध्यप्रदेश को लोगों केा जागरूकता और प्रशिक्षण देना चाहिए। केंद्रीय टीम ने ग्र्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरईएसटीआई) पर सबसे ज्यादा सवाल उठाए गए हैं। सीआरएम टीम ने कहा है कि मध्यप्रदेश में इन प्रशिक्षण संस्थानों में न तो व्यवस्था है और ना ही ठीक से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। टीम ने यह भी कहा कि ग्रामीणों को प्रशिक्षण के लिए लंबे समय से फंड ही जारी नहीं किया गया है। यहां तक कि बैंक भी इस मामले में प्रशिक्षण को जारी रखने के लिए तैयार नहीं है। इसके साथ ही टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में फंड की कमी से काम रुके हुए हैं। टीम ने कहा है कि हालांकि सांसद आदर्श ग्राम में कुछ काम हुए हैं, लेकिन इस समय सांसदों द्वारा गोद लिए गए गांवों को डिमांड के हिसाब से पैसा नहीं मिल रहा है। चार चरणों में राज्यवार स्थिति... राज्य कुल सांसद (लोस-रास) प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ उप्र 104 (80-31) 104 99 70 52 महाराष्ट्र 67 (48-19) 67 45 17 32 पं. बंगाल 58 (42-16) 5 2 2 0 तमिलनाडु 57 (39-18) 56 55 45 36 बिहार 56 (40-16) 53 20 9 0 मप्र 40 (29-11) 37 20 16 7 कर्नाटक 40 (28-12) 38 16 3 9 गुजरात 37 (26-11) 37 28 10 28 आंध्रप्रदेश 36 (25-11) 31 19 15 4 राजस्थान 35 (25-10) 34 31 15 20 ओडिशा 31 (21-10) 28 13 7 6 पंजाब 20 (13-7) 20 8 4 4 असम 21 (14-7) 21 10 4 0 छत्तीसगढ़ 16 (11-5) 16 16 12 9 हरियाणा 15 (10-5) 15 11 6 2