हज़ारों प्रेरक कहानियों से भी दमदार है 'जादूनामा'

हज़ारों प्रेरक कहानियों से भी दमदार है 'जादूनामा'

विश्वदीप नाग 
आपने न जाने कितनी प्रेरक कहानियाँ पढ़ी-सुनी होंगी, जिनमें कामयाबी की बुलंदियों को स्पर्श करने वाली किसी जानी-मानी शख़्सियत ने किस तरह ज़िन्दगी के टेढ़े-मेढ़े, पथरीले और शुष्क रेतीले रास्तों पर चलकर अपने ख़्वाबों को हक़ीक़त में तब्दील कर दिया। मशहूर फ़िल्मकार , कवि, शायर और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर भी ऐसी ही शख़्सियत हैं, जिन्होंने बहुत मामूली पृष्ठ भूमि और अत्यंत कठिन दौर से निकल कर फ़िल्मी दुनिया में न केवल अपना ख़ास मक़ाम बनाया, बल्कि वे कई दशक से लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं, लेकिन जावेद साहब की संघर्ष भरी दास्तान हज़ारों प्रेरक कथाओं से ज़्यादा दमदार है, क्योंकि न तो वे घिसे-पिटे रास्तों पर चले,  न कभी आत्म-सम्मान की क़ीमत पर किसी से समझौता किया, उन हालात में भी जब वे भूख से लड़ रहे थे। वे ज़िन्दगी में अपनी शर्तों पर आगे बढ़ते रहे।  

जावेद साहब की इसी असाधारण यात्रा को लेखक अरविंद मण्डलोई ने अपनी कृति 'जादूनामा : जावेद अख़्तर -एक सफ़र' में इतने सलीके से शब्दों में पिरोया है कि पाठक उनकी जीवनी को पढ़ते-पढ़ते उसमें खो जाता है या स्वयं के संघर्ष का प्रतिबिंब उसमें देखने लगता है। किताब में जावेद साहब के ज़िन्दगी के हर मक़ाम को जीवंत तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने जावेद साहब की ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं पर न केवल गहन शोध करने के बाद ही उनके जीवन पर आधारित यह किताब लिखी है, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने हर जज़्बात को शिद्दत से महसूस भी किया है।

लेखक ने भूमिका ' यह किताब आपके हाथों में क्यों है' शीर्षक से लिखी है, जिसमें उन्होंने जावेद साहब के जज़्बात और इंसानियत के निराले रंगों को दिल से उकेरा है। भूमिका के साथ ही पाठक किताब से गहराई से जुड़ता चला जाता है। लेखक ने किताब की शुरुआत में जावेद साहब की पुश्तैनी जड़ों को तलाशा है। जावेद साहब के परदादा के वालिद फ़ज़्ले हक़ ग़ालिब के दौर के थे और उनके क़रीबी दोस्त भी थे। लिहाज़ा, शायरी तो जावेद साहब के ख़ून में है। जैसे-जैसे किताब आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे जावेद साहब की ज़िन्दगी के इतने अनसुने किस्से पढ़ने को मिलते हैं कि दिलचस्पी लगातार बढ़ती जाती है। किताब दुर्लभ तस्वीरों से सुसज्जित भी है।

किताब जावेद साहब की ज़िन्दगी के ऐसे ढेरों क़िस्सों से परिपूर्ण है, जिनके बारे में उनके चाहने वाले निश्चित रूप से जानना चाहेंगे। किताब में 126 छोटे-बड़े अध्याय हैं,  जिनमें जावेद साहब की ज़िन्दगी की पूरी कहानी को शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है। लगता नहीं कि उनकी ज़िन्दगी का एक भी रंग लेखक की नज़र से बच पाया है। इसलिए किताब को जावेद साहब की ज़िन्दगी का मुकम्मल झरोखा कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
किताब में जावेद साहब ने अपने संघर्ष के दिनों को साझा किया है। ख़ुद उनके लफ़्ज़ों में- ''मुम्बई आने के छह दिन बाद बाप का घर छोड़ना पड़ता है। जेब में सत्ताइस पैसे हैं। मैं खुश हूँ कि ज़िन्दगी में कभी अट्ठाइस नए पैसे भी आ गए, तो मैं फ़ायदे में रहूँगा और दुनिया घाटे में।''  यह सोच विषम हालात में भी गज़ब का आत्मविश्वास दर्शाती है। किताब में ऐसे अनेक प्रसंग हैं।

किताब में सुपर स्टार अमिताभ बच्चन, शाहरुख ख़ान, अनिल कपूर, सलीम ख़ान,  निर्देशक यश चोपड़ा, रमेश सिप्पी, और गायिका आशा भोसले जैसी फ़िल्म उद्योग की दिग्गज हस्तियों के इंटरव्यू शामिल हैं, जिनमें उन्होंने जावेद साहब के साथ अपने अनुभवों को साझा किया है। भारतीय सिनेमा और लफ़्ज़ों के जादूगर के हर प्रशंसक के लिए यह किताब किसी ख़ज़ाने से कम नहीं है। युवा पीढ़ी को भी यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए ताकि वे चुनौतियों का डटकर मुक़ाबला कर सकें और अतिरेक के माहौल में भी संतुलित विचार रख सकें। 

जावेद साहब ने कहा भी है,  ''ये देश कभी असंतुलित हो ही नहीं सकता, पॉसिबल ही नहीं है। मैं अपने ख़ून से लिखकर दे दूँ आपको। ऊँची- नीची लहरें आती रहती हैं, हमारी कश्ती डगमगाती ज़रूर है, डूब नहीं सकती। हिन्दुस्तान ने कई ज़माने देखे हैं,लेकिन वो चलता रहा।

वो  इक़बाल ने कहा है ना कि-
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )  
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस 
पृष्ठ :   358
मूल्य : ₹1,999.00

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