कांग्रेस के सारे मुख्यमंत्री ब्राह्मण और ठाकुर क्यों रहे

कांग्रेस के सारे मुख्यमंत्री ब्राह्मण और ठाकुर क्यों रहे

1980 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 320 में से 246 सीटें जीती थीं. मुख्यमंत्री के पद के लिए अर्जुन सिंह और आदिवासी नेता शिवभानु सोलंकी में कड़ी टक्कर थी.

तीसरी दावेदारी कमलनाथ की थी.

प्रणव मुखर्जी को तब पार्टी ने पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था. तीनों के बीच कड़ा मुक़ाबला हुआ और ज़्यादातर विधायकों ने सोलंकी के पक्ष में हामी भरी, लेकिन कमलनाथ ने अपना समर्थन अर्जुन सिंह को दे दिया.

अर्जुन सिंह 9 जून 1980 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और शिवभानु सोलंकी उपमुख्यमंत्री. अगर शिवभानु सोलंकी मुख्यमंत्री बनते तो मध्य प्रदेश को पहला आदिवासी मुख्यमंत्री मिलता.

दिग्विजय सिंह के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह रहे हैं, लेकिन 1993 में अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह को नहीं बल्कि सुभाष यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे.

आख़िरकार दिग्विजय सिंह ही मुख्यमंत्री बने. अगर सुभाष यादव मुख्यमंत्री बनते तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को पहला ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय मिलता. 2003 में बीजेपी ने उमा भारती को बनाकर ये श्रेय अपने नाम किया.


42 साल के कांग्रेस राज में सवर्ण ही रहे सीएम
सुभाष यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते थे. उनके बेटे अरुण यादव इस विधानसभा चुनाव में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान हैं. कांग्रेस ने अरुण यादव को बुधनी से ग़ैर-किरार ओबीसी वोटों के देखते हुए उतारा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किरार जाति से ताल्लुक रखते हैं.

मध्य प्रदेश में दलित, आदिवासी और ओबीसी बहुसंख्यक हैं फिर भी कांग्रेस ने इस समुदाय से किसी को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया? अरुण यादव ने बीबीसी से इस सवाल के जवाब में कहा, ''निश्चित तौर पर ओबीसी की आबादी ज़्यादा है. एससी-एसटी को भी मिला दें तो कोई मुक़ाबला नहीं रह जाता. पर अब उन पुरानी बातों में जाने से क्या हासिल होगा. अब नहीं हो पाया तो क्या किया जाए. मेरे पिताजी ने भी कोशिश की थी पर सफल नहीं हो पाए.''

मध्य प्रदेश में कांग्रेस 42 सालों तक सत्ता में रही. इन 42 सालों में 20 साल ब्राह्मण, 18 साल ठाकुर और तीन साल बनिया (प्रकाश चंद्र सेठी) मुख्यमंत्री रहे. यानी 42 सालों तक कांग्रेस राज में सत्ता के शीर्ष सवर्ण रहे. एक अनुमान के मुताबिक़, मध्य प्रदेश में सवर्णों की आबादी 22 फ़ीसदी है. दलित 15.2 फ़ीसदी, आदिवासी 20.3 फ़ीसदी और बाक़ी ओबीसी और अल्पसंख्यक हैं.

डॉ कैलाशनाथ काटजू के बाद अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने जिन्होंने पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया. अर्जुन सिंह चुरहट के जागीरदार परिवार से थे, लेकिन वो अपनी प्रगतिशील नीतियों के लिए जाने जाते हैं.

'राजाओं की पार्टी'
2003 के बाद कांग्रेस सत्ता में नहीं लौटी. मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को मतदान है और शिवराज सिंह चौहान अपने हर भाषण में कह रहे हैं कि कांग्रेस राजाओं की पार्टी है. ज़ाहिर है उनका निशाना दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की ओर है.
सिंधिया और दिग्विजय सिंह का ताल्लुक़ राजघरानों से है तो कमलनाथ भी अपने इलाक़े के बड़े कारोबारी हैं. तीनों में से कोई दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति का नेता नहीं है. दूसरी तरफ़ भारतीय जनता पार्टी पिछले पंद्रह साल से सत्ता में है और उसने सारे मुख्यमंत्री पिछड़ी जाति के लोगों को बनाए.

इस बार के चुनाव में भी दोनों पार्टियों ने जातीय समीकरण का ख़ास ख़्याल रखा है. कांग्रेस नेताओं ने बीबीसी को बताया कि 148 ग़ैर-आरक्षित सीटों पर कुल 40 फ़ीसदी उम्मीदवार ओबीसी से हैं, 27 फ़ीसदी ठाकुर और 23 फ़ीसदी ब्राह्मण हैं. दूसरी तरफ़ बीजेपी ने भी 39 फ़ीसदी ओबीसी, 24 फ़ीसदी ठाकुर और 23 फ़ीसदी ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं.

बीजेपी के साथ ख़ास बात यह है कि उसका नेतृत्व भी ओबीसी के पास है जबकि कांग्रेस में शीर्ष के सारे नेता सवर्ण हैं.