विश्वनाथ सिंह कुंजाम से मिल रही कडी चुनौती
भोपाल। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित अनूपपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में खाद्य नागरिक, आपूर्ति व उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बिसाहूलाल सिंह भाजपा के संभावित उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस के टिकट पर वे पिछला चुनाव जीते थे, लेकिन कांग्रेस ने इस बार बिसाहू के गौड़ समाज से ही पंचायती राजनीति के धुरंधर विश्वनाथ सिंह कुंजाम को प्रत्याशी घोषित किया है, इसलिए उनके सामने बड़ी चुनौती है।

आदिवासियों के इस गढ़ में कांग्रेस का पहले से प्रभाव रहा है। कुछ व्यक्तिगत और कुछ कांग्रेस के प्रभाव के चलते बिसाहू यह सीट जीतते रहे हैं। अबकी बार कांग्रेस ने उनकी घेराबंदी के लिए जातीय समीकरण पर ही जोर दिया है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा दावा करते हैं कि आदिवासी समाज परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ है, इसलिए बिसाहू को अबकी बार सबक मिलेगा। बिसाहूलाल ने जनता के साथ जो छल किया, उसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ेगा। बिसाहू 2018 के विधानसभा चुनाव में बिसाहूलाल सिंह कड़ी टक्कर में जीते थे। भाजपा के पूर्व विधायक रामलाल रौतेल को वे मात्र 11,561 मतों से पराजित कर सके थे। रौतेल ने 2013 में बिसाहूलाल को हरा दिया था पर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस सीट पर सर्वाधिक पांच बार विधायक रहने की वजह से बिसाहू ने जहां अपनी खुद भी जमीन तैयार की है, वहीं विरोधियों की भी संख्या बढ़ती गई।
केसरिया कांग्रेसी व गुटों में विभाजित भाजपा
भाजपा के नेताओं के साथ ही निचले स्तर के कार्यकर्ता कांग्रेसियों के गले में हार डालने को ठीक नहीं मानते। पिछले कुछ सालों में ऐसे नवांगतुकों के कारण वे घर बैठते जा रहे हैं। यही नहीं, पूरे जिले के साथ ही विधानसभा क्षेत्र में पार्टी स्पष्टत: और अभूतपूर्व ढंग से दो फांकों में बंटी नजर आने लगी है। धीरे-धीरे खांटी कार्यकर्ता का घर बैठना और गुटों में विभाजित होना भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है। क्योंकि कैडर आधारित दल होने के कारण भाजपा की शक्ति का आधार यही कार्यकर्ता और सांगठनिक अनुशासन रहे हैं। यही वजह है कि विधानसभा के आने वाले उपचुनाव में केसरिया कांग्रेसी को टिकट देने से भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मौन साध लिया है। लिहाजा पार्टी की उत्साहकारी विजय की राह में रोड़े दिखाई दे रहे हैं।
राम के भरोसे उपचुनाव की वैतरणी
आश्चर्य होता है कि 20 साल पहले रामलाल के भरोसे अपनी राजनीतिक यात्रा को उड़ान देने वाली भाजपा इतने वर्षों में स्वयं में यह भरोसा नहीं जगा पाई कि वह जनता के विकास और उसके हित में किए किसी काम के भरोसे भी चुनाव जीत सकती है। देश में आम चुनाव हों या विधानसभा चुनाव या फिर उपचुनाव, हर बार रामलाल को किसी न किसी बहाने सियासी मैदान में उतार दिया जाता है। इस बार भी उपचुनाव की वैतरणी पार करने के लिए भाजपा रामलाल के भरोसे नजर आ रही है। जाहिर है कि धोखा, बगावत और गद्दार बनाम लोकतंत्र की लड़ाई के नारों से भरे कांग्रेसियों के शोर को वोट में बदलकर चुनावी चैसर जीत लेना भाजपा का मकसद है। भाजपा के स्थानीय नेताओं को अपनी जमीन खोती दिख रही है। उन्हें लगता है कि पूरी जिंदगी जिस नेता की राजनीति का विरोध करते रहे, अब उसी की जय-जयकार करनी होगी। सूत्र बताते हैं कि भाजपा बगावती और भितरघाती साबित होने वाले तेवरों को ठंडा करने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सकता है।
बिसाहूलाल को वोटकटवा उम्मीदवारों से डर
2018 में अनूपपुर सीट पर 10 प्रत्याशी मैदान में थे और कुल 1,25,755 वोट पड़े थे। वोटकटवा उम्मीदवारों को 11,776 वोट मिले थे। जबकि खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बिसाहूलाल ने 11,561 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। इसलिए उपचुनाव में वोटकटवा उम्मीदवार उनके लिए खतरा बन सकते हैं। बिसाहूलाल सिंह को 62,770, भाजपा के रामलाल रतौले को 51,209 और नोटा में 2,730 वोट पड़े थे। भाजपा को आशंका है कि उपचुनाव में भितरघात बिसाहूलाल की जीत में रोड़ा न अटका दे।
जातिगत आंकड़े
अनूपपुर में 33 प्रतिशत आदिवासी मतदाता, राठौर समाज के 27 फीसदी के साथ सवर्ण मतदाताओं की प्रतिशत संख्या 24 है और 16 प्रतिशत दलित वोटर है जो कि विधान सभा चुनाव में प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते हैै। प्रदेश में भाजपा दलित, आदिवासियों और ओबीसी को साधकर 15 साल तक सत्ता पर काबिज रही है। अनूपपुर विधानसभा क्षेत्र में जातिगत आंकड़े चुनाव में महत्वपूर्ण होते हैं। विधानसभा क्षेत्र में राठौर 10.50 प्रतिशत, पटेल 12.10 प्रतिशत, क्षत्रिय व ब्राह्मण 14.20 प्रतिशत और 11.50 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। अनूपपुर विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा कोल समाज प्रभावित करता है जिसके वोट एकतरफा पड़ते हैं, जो निर्णायक होते हैं और शेष मुद्दे गौण रह जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हो, इसमें संदेह नहीं है।
मुद्दे
जहां तक स्थानीय मुद्दों और मांग की बात है तो रेलवे फ्लाई ओवर ब्रिज और जिला अस्पताल सबसे बड़ा मुद्दा था, जो अब पूरा होने की दिशा में बढ़ चुका है। इसके लिए सरकार रूपए जारी कर चुकी है। म.प्र. के अन्य जिलों की तरह यहां भी किसान की कर्जमाफी का मुद्दा गरम रहा है। स्थानीय मांग सीतापुर गांव से मुख्य सड़क जाने वाली सड़क की मरम्मत व नई सड़क निर्माण की मांग गांव में पीने के पानी की समस्या, खराब आरसीसी सड़क, प्रमुख है। खराब सड़क की बातें इस बार भी उठेंगी एवं भृस्टाचार भी चुनाव को प्रभावित कर सकता है।
बसपा ने अपना पत्ता नहीं खोला
अनूपपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार घोषित होने और भाजपा के तय होने के बावजूद अभी बसपा ने अपना पत्ता नहीं खोला है। कांग्रेस ने इस चुनाव को जीतने के लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति को प्रभार सौंपा है, जबकि भाजपा ने पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल और संजय पाठक को यहां का प्रभारी बनाया है। इस आदिवासी क्षेत्र में भाजपा की नजर ब्राह्मण मतदाताओं पर है, इसलिए शुक्ल और पाठक को जिम्मेदारी देकर जातीय समीकरण दुरुस्त करने की पहल की है। भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि कांग्रेस ने जो भ्रष्टाचार किया और कमल नाथ की 15 माह की सरकार में गरीबों की छत और रोटी छीनी, उसकी एक-एक पाई का हिसाब अनूपपुर की जनता लेगी।