विधानसभा चुनाव में भाजपा व लोकसभा में कांग्रेस को दिया था करारा जवाब
प्रमुख राजनैतिक दलों से नहीं मिला टिकिट तो निर्दलीय ही मैदान में उतरने की खबर
awdhesh dandotia
मुरैना। वैश्य समाज की राजनीति का केन्द्र व हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने वाले अग्रवाल महासभा के संरक्षक रमेश गर्ग इस बार चुनावी मैदान में ताल ठोक सकते हैं। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो उन्होंने उपचुनाव में मुरैना विधानसभा से चुनाव लडऩे का मन बना लिया है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस में से किसी एक ने भी उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया तो वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी व लोकसभा में कांग्रेस को करारा जवाब देने वाले रमेश गर्ग के चुनावी मैदान में उतरने से दोनों ही दलों की मुसीबत बढ़ सकती है।
राजनीति में अभी तक बिना किसी पद के ही किंगमेकर की भूमिका में रहे रमेश गर्ग इस बार उपचुनाव में अपनी किस्मत आजमाने का मन बना रहे हैं। कौनसा राजनैतिक दल उन्हें अपना प्रत्याशी बनाएगा यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों की मानें तो केएस ग्रुप के चेयरमेन रमेश गर्ग निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भी चुनाव मैदान में ताल ठोकने से पीछे नहीं हटेंगे। यहां बता दें कि रमेश गर्ग के पास वैश्य वर्ग का एकतरफा वोट बैंक है इसके अलावा अन्य समाजों से उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए उन्हें पूरा समर्थन मिलता है। इससे साफ है कि यदि वे चुनावी मैदान में उतरते हैं तो भाजपा व कांग्रेस दोनों के ही समीकरण गडबडा सकते हैं। क्योंकि रघुराज सिंह कंषाना को भाजपा का तय उम्मीदवार माना जा रहा है साथ ही कांग्रेस से राकेश मावई, रिंकू मावई व दिनेश गुर्जर के नाम पर मंथन चल रहा है। ऐसे में दोनों ही प्रमुख दलों से गुर्जर समाज के व्यक्ति चुनाव मैदान में आ सकते हैं। इन परिस्थितियों में रमेश गर्ग के लिए निर्दलीय या बहुजन समाज पार्टी के टिकिट पर लड़कर जीतना भी आसान हो सकता है।
भाजपा व कांग्रेस दोनों को ही दे चुके हैं करारा जवाब
केएस ग्रुप के चेयरमेन रमेश गर्ग बीते विधानसभा व लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस दोनों को ही करारा जवाब दे चुके हैं। विधानसभा चुनाव में उनकी नाराजगी भारतीय जनता पार्टी से थी तो वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के बुलावे पर कांग्रेस के साथ हो लिए थे। उन्होंने जिले की सभी सीटें कांग्रेस को जितवाने का दावा किया और नतीजे सामने आए तो वाकई कांग्रेस जिले की सभी सीट जीत चुकी थी। क्योंकि मुरैना जिले के वैश्यवर्ग को रमेश गर्ग ने भाजपा के खिलाफ लामबंद कर दिया था। इसके बाद जब लोकसभा चुनाव हुआ तो रमेश गर्ग ने खुद चुनाव लडऩे की मंशा जाहिर की। बताते हैं कि पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया न उन्हें टिकिट का भरोसा भी दिला दिया था। लेकिन एन वक्त पर उनका टिकिट कटा तो रमेश गर्ग ने कांगे्रस को हराने का मन बना लिया परिणाम यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में सभी छ: सीट जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में औंधे मुंह गिरी।
शहर विकास के लिए भी प्रयासरत रहे हैं रमेश गर्ग
शहर विकास के लिए रमेश गर्ग सदैव प्रयासरत रहे हैं। आमजन को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए वह अकसर जनप्रतिनिधियों से चर्चा करते नजर आते हैं और इसी उद्देश्य को लेकर वह चुनावी दंगल में जी-जान लगाते हैं ताकि उनके द्वारा सपोर्ट करने पर जीता हुआ प्रत्याशी शहर में उस तरह विकास करा सके जैसा उन्होंने सोच रखा है। लेकिन अकसर उन्हें निराशा ही हाथ लगी है जिसका गुस्सा उन्होंने कई बार जाहिर भी किया है। अशोक अर्गल को मेयर बनाने के लिए भी रमेश गर्ग द्वारा काफी जोड़-तोड़ किया गया था ताकि मेयर द्वारा शहर के लोगों को मूलभूत सुविधाएं दी जाएं। लेकिन मेयर बनने के बाद जब अशोक अर्गल उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तो जीवाजीगंज में एक कार्यक्रम के दौरान रमेश गर्ग ने मेयर को मंच से ही खरीखोटी सुनाई थी।
जनसहयोग से विकास की क्षमता
रमेश गर्ग में जनसहयोग से शहर का विकास कराए जाने की क्षमता भी है। इसका जीता जागता उदाहरण जीवाजीगंज स्थित महाराजा अग्रसेन पार्क है। यहां चारों ओर फैली हरियाली व स्वच्छता रमेश गर्ग के प्रयासों से ही देखी जा रही है। क्योंकि व्यापारी वर्ग में उनकी अच्छी खासी पैठ होने के कारण वह आपसी सहयोग से पार्क में कई तरह के निर्माण कराते रहते हैं जिस कारण शहर के बीचोंबीच इस पार्क में रूप में हरियाली दिखाई देती है।
राजनैतिक दलों द्वारा वैश्य वर्ग की उपेक्षा का मलाल
जिला अग्रवाल महासभा के संरक्षक रमेश गर्ग को इस बात का मलाल है कि मुरैना जिले में अच्छी खासी तादाद वैश्य मतदाताओं की होने के बावजूद भाजपा अथवा कांग्रेस ने पिछले कई वर्षों से वैश्य वर्ग के किसी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया है। दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों द्वारा वैश्य वर्ग की लगातार की जा रही उपेक्षा से आहत होकर गर्ग ने स्वयं चुनाव लडऩे का मन बनाया है। ताकि दोनों ही राजनैतिक दलों को मुरैना जिले में वैश्य वर्ग की क्षमताओं का अहसास हो सके तथा जनता भी अपना निर्णय स्वविवेक से कर सके।