शहडोल संभाग में तीन साल में मर गए 5000 बच्चे, एनएचएम की व्यवस्थाएं दुरस्त

आदिवासी अंचल में हर दिन हो रही पांच बच्चों की मौत

सबसे अधिक बच्चों की मौत संभाग के भीतर शहडोल में हुई

शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में तीन साल के भीतर 4956 बच्चों की हुई मौत

गोपालदास बंसल शहडोल, सरकार द्वारा आदिवासी अंचलों के विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। बावजूद इसके अधिकांश क्षेत्र में हालात जस के तस हैं। संभाग के आदिवासी अंचल शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में हर दिन पांच बच्चों की मौत हो रही है। पिछले तीन साल में संभाग के तीनों जिलों में करीब 5 हजार बच्चों की मौत हो चुकी है। इनमे अधिकांश मासूम आदिवासी परिवार के शामिल हैं। 3200 से ज्यादा मासूम ऐसे हैं, जो दुनिया देखने से पहले ही दम तोड़ दिए। लगातार आदिवासी क्षेत्रों में मासूमों की हो रही मौत ने सरकारी योजनाओं के अलावा अफसरों की मॉनीटरिंग की कलई खोल दी है। लचर स्वास्थ्य सिस्टम के सबसे खराब हालात शहडोल जिले के हैं। तीन साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सबसे अधिक बच्चों की मौत संभाग के भीतर शहडोल में हुई है। एसएनसीयू में जन्म से 28 दिन तक शिशुओं की मौत मामले में भले ही कमी आई हो लेकिन पांच साल तक के बच्चों की मौत में लगातार इजाफा हो रहा है। विभागीय जानकारी के अनुसार, शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में तीन साल के भीतर 4956 मौतें दर्ज हुई हैं। इसमें जन्म से लेकर सिर्फ पांच साल तक के बच्चे शामिल हैं, जबकि लगभग एक सैकड़ा मासूमों की मौत रिकार्ड में दर्ज ही नहीं है। 3264 शिशु और 1692 बच्चों की मौत विभागीय आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन साल में शहडोल, उमरिया और अनूपपुर के एसएनसीयू में जन्म से लेकर 28 दिन तक के 3264 बच्चों की मौत हुई है। इसके अलावा 29 दिन से पांच साल तक के 1692 बच्चों की मौत इन तीनों जिलों में हुई है। बच्चों की मौत की संख्या जनवरी 2019 तक की हैं। गर्भावस्था और प्रसव के बाद 303 महिलाओं की मौत मातृ मृत्युदर रोकने की दिशा में भी स्वास्थ्य सिस्टम नाकाम हैं। पिछले तीन साल के आंकडों के अनुसार संभाग के तीनों जिलों में 303 प्रसूताओं की मौत हो चुकी है। इसमें कुछ प्रसूताएं गर्भावस्था के दौरान ही दम तोड़ दिया है तो कुछ प्रसूताएं जन्म के 45 दिन के भीतर मौत हुई है। प्रसूताओं की मौत संभाग में सबसे ज्यादा अनूपपुर में हुई है। 70 फीसदी से ज्यादा आदिवासी बच्चे और प्रसूताएं पिछले तीन साल में 4956 बच्चों के अलावा 303 प्रसूताओं की मौत के एनालिसिस पर यह बात भी सामने आई कि अधिकांश बच्चे और प्रसूताएं आदिवासी परिवार की शामिल हैं। कई बैगा समुदाय के बच्चे भी शामिल हैं। बच्चे और प्रसूताओं की मौत की मुख्य वजह -बच्चों में इंफेक्शन निमोनिया, दस्त और उल्टी के बाद इलाज में लेटलतीफी। -पोषण आहार न मिलना, बचपन से कुपोषित और कम वजन का होना। -झाडफूंक के अलावा झोलाछाप डॉक्टरों का सहारा और परिजनों की अनदेखी। -गांवों में नियमित मैदानी अमले की मॉनीटरिंग नहीं और समय पर टीकाकरण न होना। -प्रसव से पहले ही जन्म लेना और सांस लेने में तकलीफ होना। -बच्चों में जन्म के दौरान इंफेक्शन और अचानक झटके आना। -प्रसूताओं को पोषण आहार न मिलना और एनीमिया की चपेट में आना। -प्रसूताओं का नियमित फॉलोअप न होने के साथ जांच न होना। आंकड़े बता रहे हकीकत जिला एसएनसीयू में मौत (जन्म से 28 दिन) जिला 2016-17, 2017-18 2018-19 शहडोल 316 717 445 उमरिया 175 556 344 अनूपपुर 144 360 207 (29 दिन से पांच साल) 2016-17 2017-18 2018,19 शहडोल 208 222 282 उमरिया 210 140 202 अनूपपुर 143 101 184 मातृ मृत्यु दर 2016-17 2017-18 2018-19 शहडोल 60 67 34 उमरिया 14 25 21 अनूपपुर 12 34 36 आयोग को भेजी रिपोर्ट में कहा, व्यवस्थाएं दुरस्त कर ली मातृ-शिशु मृत्युदर की भयावह स्थिति को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने जवाब मांगा था। एनएचएम भोपाल ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को हाल ही में रिपोर्ट भेजकर वास्तविक स्थिति बताई है। इस संबंध में एनएचएम ने शहडोल जिले से जानकारी और व्यवस्थाओं को लेकर जानकारी मांगी थी। जिसमें सीएमएचओ शहडोल और सिविल सर्जन, जिला अस्पताल शहडोल ने रिपोर्ट भेजी थी। जिसमें कहा था कि व्यवस्थाओं को दुरस्त कर लिया गया है। आयोग को भेजी गई इस रिपोर्ट में सितंबर 2017 की भी निरीक्षण रिपोर्ट को शामिल किया है। पूर्व में शहडोल स्वास्थ्य विभाग की एक टीम विजिट की थी, जिसमें कई बिंदुओं पर खामियां गिनाई थी।