कलेक्टर तैनाती की मांग पर अजाक्स-सपाक्स आमने-सामने

भोपाल
प्रदेश के 28 विधानसभा उपचुनावों के पहले अब जिलों में कलेक्टरों की तैनाती को लेकर अजाक्स और सपाक्स आमने-सामने आ गए है। अजाक्स ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को पत्र लिखकर आरक्षित वर्ग के हितों के संरक्षण के लिए प्रदेश में चालीस फीसदी पदों पर आरक्षित वर्ग के कलेक्टर बनाए जाने की मांग की है। वहीं सपाक्स का कहना है कि यदि जाति देखकर ही विकास और न्याय होता है तो मुख्यमंत्री के पद को भी आरक्षित वर्ग से ही भर देना चाहिए। अजाक्स के प्रांतीय महासचिव एसएल सूर्यवंशी ने मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश के 53 जिलों में से मात्र दो जिलों में अनुसूचित जाति और दो जिलों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के कलेक्टर तैनात है। जबकि प्रदेश में इस वर्ग की जनसंख्या लगभग चालीस प्रतिशत है। पत्र में उन्होंने कहा है कि मध्यप्रदेश विकसित राज्य इसलिए नहीं हो पाया है क्योंकि यहां अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग मुख्य धारा से अलग चल रहे है।
अजाक्स के प्रांतीय महासचिव सूर्यवंशी का कहना है कि जिलों में आरक्षित वर्ग के कलेक्टरों की पदस्थापना नहीं होने से इस वर्ग की उपेक्षा हो रही है। इस वर्ग की आवश्यकता और हितकारी नियम है उन्हें लागू करने में अन्य वर्ग के कलेक्टर रुचि नहीं रखते है। सूर्यवंशी का कहना है कि जिलों में यदि आरक्षित वर्ग के कलेक्टर होंगे तो इस वर्ग की मूलभूत समस्याओं को दूर करने की दिशा में समुचित निर्णय लेंगे और शासन की योजनाओं का लाभ इन तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
इधर सपाक्स पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी ने सूर्यवंशी के पत्र पर टवीट कर कहा कि शाबाश सूर्यवंशीजी शासकीय सेवा में रहते आपने अपने वर्ग के लिए लिखने की हिम्मत की। प्रदेश टुडे से चर्चा में त्रिवेदी ने कहा कि 28 उपचुनाव करीब है इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस तरह की सोच को बढ़ावा दे रहे है और वे खुद ही ऐसे पत्र लिखवा रहे है।
सपाक्स प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी शैलेन्द्र व्यास का कहना है यदि जाति देखकर कलेक्टर निर्णय लेते है तो फिर इन लोगों को प्रदेश का मुख्यमंत्री भी इसी वर्ग से तैनाती की मांग करना चाहिए। ऐसा होंने से कलेक्टर ही नहीं सारी नौकरशाही इस वर्ग के मुख्यमंत्री के अधीन होगी। उन्होंने कहा है कि यह सोच प्रदेश ही नही ंदेश की प्रगति व अखंडता के लिए भी घातक है।प्रशासनिक पदों पर बैठे लोग कानूनी नहीं जाति के आधार पर फैसले लेते है ऐसी सोच उचित नहीं है।