350 वोट से जीता था, चुनाव, सुवासरा में डंग की चुनावी नैय्या अधर में
भोपाल। मंदसौर जिले की सुवासरा सीट पर नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण मंत्री हरदीप सिंह डंग की चुनावी नैय्या अधर में फंसी नजर आ रही है। इसकी पहली वजह यह है कि पार्टी बदलने के कारण उनका क्षेत्र में विरोध हो रहा है। दूसरी वजह यह है कि 2018 में उन्होंने मात्र 350 वोट से यह चुनाव जीता था। जबकि इस सीट पर 10,634 मत वोटकटवा उम्मीदवारों को मिला था। मंदसौर जिले की इस सीट पर कुल 2,06,895 वोट पड़े थे और 10 प्रत्याशी मैदान में थे। डंग को 93,169, राधेश्याम पाटीदार को 92,819 तथा निर्दलीय ओमसिंह भाटी को 10,273 वोट मिले थे।
मप्र में कोरोना आपदा के बीच अघोषित विधानसभा के उपचुनाव राजनीतिक दलों की नींद हराम किए हुए हैं। कांग्रेस का दामन छोड़ दलबल सहित भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर एक ओर जहां सत्ताधारी दल को बहुमत दिलाने का दारोमदार टिका है, वहीं दूसरी ओर उनकी सबसे बड़ी चिंता मालवा बना हुआ है। इस अंचल में सात सीटों पर उपचुनाव होना है। आंकड़ों और मौजूदा परिस्थितियों पर गौर करें तो डैमेज कंट्रोल एवं पिछले चुनाव में कम मतों से जीते समर्थक उम्मीदवारों को जीत दिलवाना सिंधिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
उपचुनाव हरदीप के लिए संघर्ष भरा
अगर सुवासरा सीट की बात करें तो कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए हरदीप सिंह डंग वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मात्र 350 वोटों से जीते थे। हरदीप को 93,169 और उनके निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार राधेश्याम पाटिदार को 92, 819 मत मिले थे। जीत का इतना कम अंतर जहां उपचुनाव में हरदीप के लिए संघर्ष भरा होगा तो निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं सिंधिया के लिए भी यह सीट जिताना बड़ी चुनौती होगी। कारण भी है कि विधानसभा उपचुनाव में अकेले भाजपा और कांग्रेस ही नहीं बल्कि बहुजन समाज पार्टी भी यहां ताकत दिखाएगी। हालांकि पिछले चुनाव में बसपा यहां पर कोई खास गुल नहीं खिला पाई थी। यहां बसपा उम्मीदवार श्याम मेहर को मात्र 1688 वोट मिले थे। इस सीट पर सबसे अधिक नुकसान सपाक्स पार्टी के उम्मीदवार सुनील शर्मा ने किया था। सुनील ने 10,273 मत कबाड़ कर कांग्रेस के जीत के अंतर को कम किया था।
कांग्रेस में कई दावेदार
सुवासरा विधानसभा सीट पर दो बार कांगे्रस की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते हरदीपसिंह डंग इस बार भाजपा खेमे से चुनाव मैदान में होंगे। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ओर से कई नेता दावेदारी कर रहे है। जिनमें सुभाष सोजतिया, नरेन्द्र नाहटा, ओमसिंह भाटी, राकेश पाटीदार सहित कांग्रेस के कद्दावर नेताओं और पोरवाल समाज के कांग्रेस समर्थित लोग दावेदारी पेश कर रहे है। हमेशा देखने में आता है कि ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां अनुभवी और कद्दावर नेताओं पर ही चुनाव के समय दांव लगाना पसंद करती है, लेकिन जब भी किसी युवा और नये चेहरे को मौका मिला है जनता ने उसे पसंद ही किया। बात मंदसौर की करें तो कांग्रेस की ओर से पहली बार सांसद का चुनाव लड़ी मिनाक्षी नटराजन को जनता ने खूब पसंद किया था और क्षेत्र में कांग्रेस के वर्षो के सूखे को खत्म किया था। उसी तरह भाजपा ने जब पहली बार सुधीर गुप्ता को सांसद का टिकट दिया तो नया और फ्रेश चेहरा होने के कारण लोगों ने उन्हें भी पसंद किया और जीताया। क्योंकि सांसद के चुनाव से पहले सुधीर गुप्ता ने कोई चुनाव नहीं लड़ा था। ऐसे कई मौके आये तब जनता ने नये चेहरों को मौका दिया।
सुवासरा विधानसत्रा क्षेत्र की सियासत
मंदसौर जिले की सुवासरा विधानसभा सीट भाजपा की मजबूत गढ़ों में से रही है, लेकिन 2013 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने उलटफेर करते हुए भाजपा को मात दी। कांग्रेस के टिकट पर हरदीप सिंह डंग ने भाजपा के उम्मीदवार राधेश्याम पाटीदार को शिकस्त दी। सियासी जानकारों के मुताबिक को भाजपा को यहां आंतरिक गुटबाजी और पाटीदारों की नाराजगी के कारण हार का सामना करना पड़ा था। सुवासरा में जाति समीकरण भी चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं। सुवासरा में पाटीदार, पोरवाल और राजपूत वोटर्स का दबदबा है। ऐसे में पार्टियां इनको नाराज करने का जोखिम नहीं उठाती है। बंजारा समाज भी सुवासरा में चुनावी उलटफेर करने में माहिर मानी जाती है।
दल बदल सहित अनेक चुनावी मुद्दें होगे
सुवासरा विधानसभा में इस बार उपचुनाव साधारण उपचुनाव से बेहद अलग और रूचिपूर्ण होने वाले है क्योंकि इस बार चुनाव में मुद्दों की भरमार है। सामान्यत: उपचुनाव दो से तीन सीटों पर होते आए है जिनमें सत्ताधारी पार्टी को तवज्जों मिलती रही है लेकिन इस बार पूरे प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। भाजपा ने कांग्रेस के विधायक दल को तोड़ा था उसका असर भी इस चुनाव में दिखेगा। कांग्रेस कर्जमाफी से लेकर दल बदल, कोरोना संकट एवं श्रमिकों की समस्या को लेकर भी कांग्रेस पूरी ताकत से उतरेगी। सुवासरा विधानसभा में विकास की रफ्तार थमी सी नजर आती है। चुनाव से पहले यहां विकास के वादे और दावे तो खूब किए जाते रहे हैं, लेकिन वो सुवासरा की धरती पर कभी उतरे ही नहीं। अगर उतरते तो आज लोग बुनियादी सुविधाओं तक के लिए तरसते दिखाई नहीं देते। करीब 3 लाख की जनसंख्या वाले सुवासरा में विकास के लिए घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी की गई, लेकिन जमीनी धरातल पर वो कभी उतर ही नहीं पाई। हालात ये है कि आज भी इलाके के छात्रों को हायर सेकेंडरी शिक्षा के लिए 80 किमी दूर तक जाना पड़ता है। सुवासरा में कॉलेज की बिल्डिंग तो स्वीकृत तो हो गई है, लेकिन छात्रों के कॉलेज का सपना कब तक पूरा हो पाएगा कहना मुश्किल है। जलस्त्रोतों के सूख जाने से पूरे इलाके में सिंचाई और पेयजल की समस्या बनी रहती है। अगर किसानों की बात की जाए तो वो सरकार से खासे नाराज नजर आते हैं। क्षेत्र में अगर रोजगार की बात करें तो सुवासरा विधानसभा क्षेत्र में अब तक कोई उद्योग नहीं लग पाया। जिसकी वजह से युवा पलायन करने को मजबूर हैं।