आसान नहीं कंषाना की राह, सुमावली में त्रिकोणीय मुकाबला

आसान नहीं कंषाना की राह, सुमावली में त्रिकोणीय मुकाबला

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ऐंदल सिंह कंषाना की राह रोकेगी बसपा

भोपाल। मुरैना जिले की सुमावली सीट पर उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होगा। भाजपा की तरफ से लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ऐंदल सिंह कंषाना चुनावी मैदान में होंगे, वहीं कांग्रेस की तरफ से अजब सिंह कुशवाह या बलवीर सिंह दंडोतिया चुनाव लड़ सकते हैं। जबकि बसपा ने अभी प्रत्याशी तय नहीं किया है, लेकिन वह चुनाव लडऩे की जोरदार तैयारी कर रही है। इससे संभावना जताई जा रही है कि बसपा यहां कंषाना की राह में रोड़ा अटका सकती है। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कंषाना ने मुरैना जिले की सुमावली विधानसभा सीट पर 13,661 वोटों से जीत हासिल की थी। सुमावली सीट पर चुनावी गणित हमेशा अनोखा रहता है। जहां किसी सीट पर पार्टी, तो कहीं प्रत्याशी, कहीं मुद्दे चलते हैं, लेकिन मुरैना जिले की सुमावली सीट बिलकुल अलग है। कौन प्रत्याशी किस दल से उतर जाए, कहा नहीं जा सकता। इस सीट पर पिछले तीन दशक से मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और बसपा के बीच ही रहा है, लेकिन मैदानी जंग के धुरंधर खिलाड़ी हमेशा से किसी एक दल में रहे हों, देखने में नहीं आया।

कंषाना को साधना होगा वोटकटवा को

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ऐंदल सिंह कंषाना ने मुरैना जिले की सुमावली विधानसभा सीट पर 13,661 वोटों से जीत हासिल की थी। वहां 10,439 मत वोटकटवा उम्मीदवारों को मिले थे। ऐसे में अगर उपचुनाव में भी यही गणित रहा तो मंत्री की नैय्या मझधार में फंस सकती है। इससे बचने के लिए कंषाना को वोटकटवा उम्मीदवारों को साधना होगा। 2018 में सुमावली सीट पर 1,59,367 वोट पड़े थे। एंदल सिंह कंषाना को 65,455, भाजपा प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाह को 52,142 और बसपा के गांधी मानमेंद्र सिंह को 31,331 वोट मिले थे। यहां 13 प्रत्याशी मैदान में थे।

बदला-बदला रहेगा चुनाव मैदान

हर बार की तरह उपचुनाव में भी कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों के परस्पर बदले हुए दलों से मैदान में उतरने की पूरी संभावना है। कांग्रेस छोड़ चुके एदल सिंह कंसाना भाजपा से, तो भाजपा से प्रत्याशी रहे अजब सिंह कुशवाह कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोंकने की तैयारी कर चुके हैं। बसपा के पत्ते खुलना शेष है। इस सीट पर पार्टियों या प्रत्याशियों के प्रभाव के बजाय परिवर्तन की तासीर होने की वजह है चुनावों पर जातिगत समीकरणों का हावी होना। जिसने जातिगत समीकरण साध लिया, उसका दावा मजबूत होता रहा है। पार्टी, प्रत्याशी, विकास, सरकार, सीएम का चेहरा जैसे मुद्दे दूसरे दर्जे की अहमियत रखते हैं।

जातिगत आंकड़े

सुमावली विधानसभा क्षेत्र में जातिगत आंकड़े चुनाव में महत्वपूर्ण होते हैं। विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर 18.3 प्रतिशत, कुशवाह 16.50 प्रतिशत, 15.10 प्रतिशत ठाकुर, क्षत्रिय, 14.20 प्रतिशत जाटव और 11.50 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता हैं। समझा जा सकता है कि किसी एक के बजाय दो-तीन वर्गों के निर्णायक होने की स्थिति के चलते हर बार पार्टी, प्रत्याशी बदलते रहते हैं और शेष मुद्दे गौण रह जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हो, इसमें संदेह नहीं है।

उपचुनाव के मुद्दे

जहां तक स्थानीय मुद्दों और मांग की बात है, तो ग्वालियर से श्योपुर रेलवे लाइन को ब्रॉडगेज में परिवर्तित करने का सबसे बड़ा मुद्दा था, जो अब पूरा होने की दिशा में बढ़ चुका है। ये प्रोजेक्ट चार चरणों में पूरी होना है। इस 187.53 किमी के प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार 100 करोड़ रूपए जारी कर चुकी है। इसके आगे कोटा तक 96.47 किमी की नई रेल लाइन भी तैयार होगी। मप्र के अन्य जिलों की तरह यहां भी किसान की कर्जमाफी का मुद्दा गरम रहा है। स्थानीय मांग के तहत हड़वासी गांव से मुख्य सड़क ताल जाने वाली सड़क की मरम्मत, बरौली गांव में पीने का पानी की समस्या, खराब आरसीसी सड़क, मुडिय़ा खेड़ा में खारा पानी है, लाल बास गांव से मेन रोड तक खराब सड़क की बातें इस बार भी उठेंगी। साथ ही माध्यमिक विद्यालय की मांग भी होगी।

यहां प्रत्याशी के पाला बदलने की परंपरा

तीन दशक के चुनावी इतिहास पर नजर डालनी होगी, जब यहां कांग्रेस के सामने जनता दल, भाजपा और बसपा चुनौती बनकर खड़ी हो चुकी थीं। किस दल का प्रभाव कब, कैसे और क्यों बढ़ता रहा, इसे हम इन दलों के इस सीट के सियासी सफर से समझ सकते हैं। यहां प्रत्याशियों के पाला बदल से भाजपा भी अछूती नहीं। इस बार एदल सिंह कंषाना का पार्टी प्रत्याशी होना लगभग तय है, जो कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। उनका सियासी सफर बसपा के साथ शुरू हुआ था। 1993 में जब बसपा के टिकट पर कंषाना इस सीट से पहली बार चुनाव जीते थे, तो भाजपा चौथे स्थान पर पहुंच गई थी। इससे पहले भी 1990 में भाजपा को जनता दल के गिरराज सिंह ने महज 211 वोटों से शिकस्त देकर ये सीट जीत ली थी। 1998 के चुनाव भी कंसाना के कब्जा बरकरार रखने के चलते भाजपा जीत तो नहीं सकी, हां गिरराज सिंह को टिकट देने से वह दूसरे नंबर पर जरूर पहुंच गई। सिंह जद से भाजपा में आए थे। उनके हटने से जद चौथे स्थान पर पहुंच चुकी थी। गिरराज पर भाजपा का दांव 2003 में जाकर रंग ला सका। गिरराज सिंह सिकरवार (48,690) ने कंसाना (36,295) को 12,395 (10.1 प्रतिशत) मतों से हराया। इस चुनाव में कंषाना बीएसपी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम चुके थे। इस चुनाव ने भाजपा को यहां करीब 40 प्रतिशत वोट के साथ बड़ा खिलाड़ी बना दिया था। कंषाना के जाने से बसपा के वोट 27 प्रतिशत घटकर 10.1 प्रतिशत ही रह गए थे, वहीं कांग्रेस का वोट बैंक करीब 15प्रतिशत बढ़ चुका था। हालांकि 2008 तक सिकरवार जमीन खो बैठे और इस सीट पर नया नाम सामने आया अजब सिंह कुशवाह, जो बीएसपी से मैदान में थे। चुनाव में कंसाना की सीधी टक्कर कुशवाह से रही। नतीजा सामने आया तो कंसाना ने 9,651 (8.0 प्रतिशत) के अंतर से बीएसपी को पराजित किया। कंसाना को 46,490 और कुशवाह को 36,839 वोट मिले थे। सिकरवार को 31,688 पर संतोष करना पड़ा। 2013 में प्रत्याशी बदलकर भाजपा ने वापसी की। सत्यपाल सिंह (61,557) ने बीएसीपी के अजब सिंह (47,481) को 14,076 पराजित किया। इस बार कंसाना 41,189 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गए। 2018 में स्थितियां एक बार और बदल गईं। इस बार भी मुकाबला त्रिकोणीय था, लेकिन बसपा के अजब सिंह कुशवाह भाजपा के टिकट से मैदान में थे। उन्हें कांग्रेस से कंषाना (65,455) ने 13,313 वोट से हराया। कुशवाह को 52,142 वोट मिले।

इस बार हो सकता है अजब-एंदल में मुकाबला

2018 की तरह उपचुनाव में भी सुमावली में अजब सिंह कुशवाह और एंदल सिंह कंषाना के बीच मुकाबला होने की संभावना है। भाजपा के प्रत्याशी रहे अजब सिंह कांग्रेस में, तो कंषाना भाजपा में पहुंच चुके हैं। कंषाना पांचवी जीत के साथ सीट बचाने के लिए जोर लगाएंगे, तो अंबर की कोशिश होगी कि चौथी बार भी दूसरे स्थान आने के बजाय सीधे सदन की ओर चलें। हालांकि इस सीट पर बसपा के पत्ते खुले बिना दोनों दलों की रणनीति परवान चढऩे वाली नहीं है। 2018 में बसपा के गांधी मानवेंद्र सिंह को 31,331 वोट मिले थे, जो करीब 20 प्रतिशत थे।