संस्कृति के बिना समाज की कल्पना नहीं - जिष्णुदेव वर्मा
दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव सम्पन्न
Syed Javed Ali
मण्डला - संस्कृति के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। संस्कृति विहीन समाज का पतन निश्चित है। जनजातीय संस्कृति भारत की मूल संस्कृति है और जनजातियों का इतिहास भारत का इतिहास है। यह बात राम नगर में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव के समापन अवसर पर त्रिपुरा के उपमुख्यमंत्री जिष्णुदेव वर्मा ने कही।
जिष्णुदेव वर्मा ने कहा कि भाषा, धर्म, संस्कार एवं रहन-सहन आदि से मिलकर संस्कृति का सृजन होता है। संस्कृति में ज्ञान-विज्ञान, नृत्य एवं संगीत समाहित होता है। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज एक दूसरे की संस्कृतियों को पहचाने और उन्हें साझा करें। भारतीय संस्कृति की चर्चा करते हुए जिष्णुदेव वर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति वसुदेव कुटुम्बकं पर विश्वास करती है। भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है। हिन्दुस्तान ने जब भी युद्ध किया है तो अपने स्वाभिमान और संस्कृति की रक्षा के लिए किया है। राम लक्ष्मण संवाद के माध्यम से उन्होंने जन्मभूमि के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि भगवान राम ने रावण से न्याय की स्थापना के लिए युद्ध किया था। त्रिपुरा के उपमुख्यमंत्री जिष्णुदेव वर्मा ने कहा कि मंडला और त्रिपुरा के इतिहास में समानता है। मंडला में वीरांगना रानी दुर्गावती ने स्वतंत्रता के लिए संग्राम किया तो त्रिपुरा में त्रिपुरेश्री देवी ने। मंडला और त्रिपुरा दोनों के गौंड़ राजाओं ने आक्रमणकारियों से युद्ध किया है। उन्होंने कहा कि इतिहास के अलावा संस्कृति में भी अनेक समानताऐं देखने को मिलती हैं। श्री वर्मा ने अगले वर्ष त्रिपुरा में भी आदिवासी महोत्सव का आयोजन करने की बात कही।
इस अवसर पर केन्द्रीय इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि आदिवासी समुदाय के इतिहास को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि समाज के उत्थान के लिए सभी को एक मंच पर आने की आवश्यकता है। इस्पात राज्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी महोत्सव पर आयोजित संगोष्ठी के निष्कर्ष को देशभर में फैले प्रत्येक जनजातीय समाज तक पहुंचना चाहिए। इस अवसर पर राज्यसभा सांसद संपतिया उईके ने कहा कि आदिवासी महोत्सव का आयोजन आदिवासी संस्कृति के संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में किए गए विकास कार्यों पर भी प्रकाश डाला। विधायक देवसिंह सैयाम ने कहा कि गौंड़ राजाओं की राजधानी में आदिवासी महोत्सव जैसे आयोजन एक सुखद अनुभूति है। उन्होंने कहा कि जनजातीय संस्कृति संरक्षित करने की आवश्यकता है।
राजस्थान के कलाकारों ने दी मनमोहक प्रस्तुतियाँ -
रामनगर में आयोजित आदिवासी महोत्सव के समापन दिवस राजस्थान के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत आदिवासी संस्कृति पर आधारित अनेक नृत्य प्रस्तुत किये गये जो आकर्षण का केन्द्र रहे। राजस्थान के जनजातीय कलाकारों द्वारा समापन समारोह पर चकरी, चरी एवं घूमर नृत्य प्रस्तुत किये गये। मंचासीन अतिथियों द्वारा इन कलाकारों का सम्मान किया गया।
विविध प्रतियोगिताओं का हुआ आयोजन -
आदिवासी महोत्सव के अवसर पर महिलाओं की विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। विजेता प्रतिभागियों को समापन समारोह में पुरूस्कृत किया गया। 5 किलोमीटर मेराथन दौंड़ में राधा मरकाम प्रथम, राजनंदनी भलावी द्वितीय एवं सबनम उईके ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। इस दौंड़ में 60 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। रंगोली प्रतियोगिता में लक्ष्मी बरमैया को प्रथम, आसू झारिया को द्वितीय एवं रूपाली झारिया को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। इसी प्रकार मेंहदी प्रतियोगिता में विमला जंघेला को प्रथम, दुर्गा परते को द्वितीय एवं अनुसुईया मरावी को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा नेशनल एथलेटिक्स प्लेयर रामवती परते को भी सम्मानित किया गया।
ये रहे उपस्थित -
इस अवसर पर केन्द्रीय इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, राज्य सभा सांसद संपतिया उईके, विधायक देवसिंह सैयाम, जिला पंचायत अध्यक्ष सरस्वती मरावी, जिला पंचायत उपाध्यक्ष शैलेष मिश्रा, नगर पंचायत बिछिया के अध्यक्ष विजेन्द्र कोकड़िया, अपर कलेक्टर मीना मसराम सहित अन्य जनप्रतिनिधि तथा बड़ी संख्या में दर्शकगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रवीण वर्मा ने किया।
जनजातीय विषयों पर हुई संगोष्ठी -
आदिवासी महोत्सव के अंतिम दिवस डॉ. सियाशरण ज्योतिषी एवं जिला पुरातत्व अधिकारी हेमंतिका शुक्ला के संयोजन में जनजातीय विषयों पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें विषय विशेषज्ञों विभिन्न विषयों पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये गये। संगोष्ठी में डॉ. अंजुम खान द्वारा जनजातीय जीवन के संस्कारों पर अपना शोध प्रस्तुत किया गया। डॉ. आर.एस. धुर्वे द्वारा बैगा जनजाती और उनकी वर्तमान परिस्थितियों के संबंध में विस्तार से जानकारी दी गई। डॉ. कन्हैया लाल धुर्वे द्वारा जनजातीय देवपूजा एवं उनकी परंपराओं के संबंध में जानकारी दी गई। प्रशांत श्रीवास्तव ने गौंड़ जनजाती के त्यौहार एवं मान्यताओं पर प्रकाश डाला। डॉ. बी.एल. इनवाती ने आदिवासी जनजीवन में उत्सवों के महत्व के संबंध में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। डॉ. रश्मि वाजपेयी ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि आदिवासी हमारी पुरातन आस्थाओं से जुड़ी हुई जीवन्त परंपरा है। इस जनजाति का लोक वैभव हमारी प्राचीन लोक संस्कृति के सजीव चित्र के रूप में एक धरोहर के रूप में आज भी विद्यमान है। राजीव मिश्रा द्वारा गोदना परंपरा, उसके लोक विज्ञान और चिकित्सा के संबंध में विस्तार से जानकारी दी गई। डॉ. सियाशरण ज्योतिषी द्वारा बैगा जनजातियों में लुप्त होती गोदना की परंपरा पर अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। संगोष्ठी के प्रारंभ में अमरकंटक से आए हरित मीणा द्वारा विभिन्न दृष्टांतों के माध्यम से आदिवासी संस्कृति पर प्रकाश डाला गया।