राज्यसभा चुनाव: सिंधिया की चुप्पी ने बढाई कांग्रेस की बेचैनी

राज्यसभा चुनाव: सिंधिया की चुप्पी ने बढाई कांग्रेस की बेचैनी
भोपाल, मप्र में राज्यसभा की तीन सीटों पर होने वाले चुनाव ने कांग्रेस को चक्कर में डाल दिया है. दरअसल प्रदेश में तीन सीटों पर चुनाव होना है एक एक सीट भाजपा और कांग्रेस की तय मानी जा रही है. एक सीट के लिए घमासान मचा हुआ है. सूत्रों के अनुसार, राज्य की रिक्त हुई तीन राज्यसभा की सीटों के लिए मार्च में चुनाव प्रक्रिया पूरी होने वाली है. इनमें से दो सीटें कांग्रेस को मिलना लगभग तय माना जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में एक सीट जाने वाली है. कांग्रेस से इन दो सीटों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़ा दावेदार माना जा रहा है. दावेदारों में शामिल हैं.. अन्य दावेदारों में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, सुरेश पचौरी के अलावा कई और भी ऐसे लोग हैं, जो विधानसभा व लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं. सूत्रों का कहना है कि पार्टी के अंदर इस बात को लेकर मंथन चल रहा है कि आखिर राज्य से किन दो नेताओं को राज्यसभा में भेजा जाए. दूसरे राज्यों के नेता भी मध्य प्रदेश कोटे से राज्यसभा में जाने की तैयारी में है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया में से एक को ही पार्टी उच्च सदन में भेजना चाहती है, लेकिन यह कौन होगा यह बड़ा सवाल बना हुआ है. हालांकि, सिंधिया के करीबियों का कहना है कि उनकी राज्यसभा में जाने की इच्छा नहीं है. वह इस संबंध में पार्टी के कुछ नेताओं को बता चुके हैं. यह बात परोक्ष रूप से पार्टी हाईकमान तक भी पहुंचा दी गई है. अब कांग्रेस आलाकमान के सामने यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि सिंधिया राज्यसभा चुनावों में भाग क्यों नहीं लेना चाहते हैं. इसी के चलते कांग्रेस के अंदर बेचैनी है क्योंकि पिछले दिनों से यह बात हवा में तैर रही है कि सिंधिया कुछ मामलों को लेकर पार्टी के नेताओं से खुश नहीं है. इतना ही नहीं उनकी भाजपा के कुछ नेताओं से नजदीकियां भी हैं. वोटों का गणित... राज्य के विधानसभा के गणित को देखा जाए तो पता चलता है कि प्रदेश की 228 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 114, बीजेपी के 107, चार निर्दलीय, एक सपा के और दो बसपा के विधायक हैं. इस तरह एक उम्मीदवार को 58 वोट मिलने पर कांग्रेस के पास 56 वोट रह जाएंगे, एक निर्दलीय विधायक सरकार में मंत्री हैं. इस तरह कांग्रेस के पास 57 विधायक हैं और उसे सिर्फ एक विधायक की जरूरत होगी, वहीं भाजपा के पास एक उम्मीदवार को 58 वोट के बाद 49 वोट रह जाएंगे. राज्य में कांग्रेस के 114 विधायकों में से 35 से ज्यादा विधायक सिंधिया के समर्थक बताए जाते हैं. राज्य सभा की दूसरी सीट के लिए इन विधायकों की भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है. बीजेपी की नजर भी इन पर है. वर्तमान में राज्य की राजनीति के हालात पर गौर करें, तो पता चलता है कि पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के नाम का फैसला होना है. मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद कमलनाथ अध्यक्ष पद से मुक्ति के लिए पार्टी आलाकमान से कई बार अनुरोध कर चुके हैं. वहीं, राज्य में निगम और मंडलों के अध्यक्षों के चुनाव होने वाले हैं. सिंधिया के समर्थक लगाए थे उम्मीद... राजनीति के जानकारों की माने तो सिंधिया को पार्टी में वह महत्व नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वे और उनके समर्थक उम्मीद लगाए थे. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव सिंधिया और कमलनाथ का चेहरा समाने रखकर लड़ा था. कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जा चुका है. वहीं सिंधिया समर्थकों को यह लगता था कि प्रदेशाध्यक्ष की कमान उनके नेता (सिंधिया) को मिल सकती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. इसके चलते कार्यकर्ताओं में असंतोष है और सिंधिया पर उनका दबाव भी. सिंधिया के राज्यसभा में जाने में बेरुखी दिखाए जाने से कांग्रेस में बेचैनी होना लाजिमी है. इसे सिंधिया के असंतोष के तौर पर देखा जा रहा है, साथ ही इससे आशंकाओं को भी जन्म मिल रहा है.