ईनामी नक्सली 'बादल उर्फ कोसा' गिरफ्तार हुआ या आत्म-समर्पण..?

ईनामी नक्सली 'बादल उर्फ कोसा' गिरफ्तार हुआ या आत्म-समर्पण..?

हार्डकोर नक्सली दिलीप की गिरफ्तारी पर नही मिला ''आउट आफ टर्न''

rafi ahmad ansari बालाघाट। छ.ग के कबीरधाम जिले की सीमा से लगे बालाघाट जिले के ग्राम बांधाटोला के जंगल से हॉकफोर्स के जवानो को ईनामी नक्सली बादल उर्फ कोसा को जिदां गिरफ्तार करने में सफलता तो हाथ लग गई, लेकिन इस सफलता पर टीम में शामिल जवानो को अब आउट आफ टर्न के लाभ का इंतजार है। क्योकि ईनामी या गैर ईनामी नक्सली को गिरफ्तार करने या एन्काउन्टर करने पर शासन द्वारा सुरक्षा बलो को आउट आफ टर्न दिये जाने का प्रावधान है, तो वही नक्सलियों के सदंर्भ में सुचना देने वाले तंत्र को नौकरी दिये जाने का प्रावधान है। जिसके लियें पुलिस अधिकारियों के द्वारा प्रयास शुरू कर दिया गया है। लेकिन सुत्रो से मिली खबर के अनुसार वास्तविकता यह है कि बादल मरकाम उर्फ कोसा अपने दो साथियो के साथ बांधाटोला में राशन सामाग्री लेने आया हुआ था। जिन्हे पकडने के लिये पुलिस तंत्र पूर्व से ही अपनी घेराबंदी किये हुए थे। जहां बादल पकडा गया और उसका दूसरा साथी फरार हो गया जिसकी स्वंय पुलिस अधिक्षक ने पुष्टी भी की है। दरअसल, नक्सल क्षेत्र में जुडे सुत्रो के अनुसार पुलिस तंत्र को पूर्व से ही सुचना थी कि बांधाटोला और समनापुर के जंगल में नक्सलीयों का मुमेंट है और उनके कुछ सदस्य राशन सामाग्री हेतू बांधाटोला बाजार आ सकते है और इसी सुचना तंत्र के चलते बादल को पकडने में पुलिस को सफलता हाथ लगी। लेकिन सुत्रो के अनुसार बादल उर्फ कोसा निहत्था था, जो बाजार आया हुआ था और पुलिस की घेराबंदी होने पर उसने स्वंय को आत्म समर्पण कर दिया था। यदि वह पिस्टल हथियार से लैस रहता तो स्वभाविक है कि वह पुलिस बल पर फायर करता और पुलिस भी जवाबी कार्यवाही करने से नही चूंकती। लेकिन बादल के पास पिस्टल नही होने से ऐसा कुछ नही हुआ। आपको बता दे, पहले ही दिन बादल की गिरफ्तारी की खबर जब सुर्खियो में आई थी, तब उस समय पुलिस अधिकारियों ने बताया कि बादल को पिस्टल के साथ गिरफ्तार किया गया है, लेकिन अब पुलिस का कहना है कि उसके पास से पिस्टल जप्त नही हो पाई। बादल के पास पिस्टल था और वह भागते हुए तालाब में कूद गया, जहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, किंतु उसकी पिस्टल जप्त नही कर पाई। लेकिन अब पुलिस की जुबानी और सुत्रो के दावे हमें इन दोनो तथ्यो पर संशय में डाले हुए है कि आखिर में ''बादल'' ने ''आत्मसमर्पण'' किया है या पुलिस ने उसे ''गिरफ्तार'' किया है? यदि आत्मसमर्पण होगा तो पुलिस को आउट आॅफ टर्न लाभ नही मिलेगा, यदि गिरफ्तारी होगी तो पुलिस पार्टी आउट आॅफ टर्न क लाभ से लाभान्वित होगी। क्योकि ईनामी या गैर ईनामी नक्सली को गिरफ्तार करने या एन्काउन्टर करने में सुरक्षा बलो को आउट आॅफ टर्न मिलता है जहां जवानो की पदोन्नति होती है और सुचना तंत्र को नौकरी। सुत्रो के अनुसार पुलिस बादल के आत्म समर्पण को दबाकर उसकी गिरफ्तारी बता रही है, ताकि पुलिस बल को आउट आॅफ टर्न का लाभ मिल सकें। आपको बता दे, वर्ष 2015 के मई माह में भी पुलिस ने मुखबिर की सुचना पर हार्डकोर नक्सली नेता ''दिलिप उर्फ गुहा'' को सोनगुड्डा के समीप ग्राम कुर्रेझोडी से गिरफ्तार करने का दावा किया था। जिसके उपर म.प्र सहित विभिन्न राज्य में 35 लाख रूपये का ईनाम था। उस समय भी सुत्रो से सुचना मिली थी कि दिलीप उर्फ गुहा कुर्रेझोडी निवासी अपने एक रिश्तेदार के यहां रूका हुआ था और उसका मकसद् आत्म-समर्पण करने का था। तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (नक्सल उन्मूलन) के द्वारा जब जांच करवाई गई तो उसमें यह बात सामने आई दिलिप आत्म-समर्पण करने के लिये ही आया हुआ था। जहां इसी बिदुं पर गिरफ्तार करने वाले पुलिस जवानो को आउट आॅफ टर्न का लाभ नही मिल पाया, मात्र ईनाम की राशि से ही पुलिस बल को संतोष करना पडा, जबकि वह डिसियम स्तर का नक्सली नेता था। ''बादल'' की गिरफ्तारी से जुडा यह मामला भी सुत्रो के दावो अनुसार दिलिप उर्फ गुहा की गिरफ्तारी जैसा प्रतित हो रहा है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि क्या बादल की गिरफ्तारी मामले में भी जांच होगी या फिर बिना जांच के ही अधिकारीयों की कृपा से जवानो को आउट आफ टर्न का लाभ मिलेगा?