पीरामल फाउंडेशन मप्र के 5 जिलों में चलाएगा जल संसाधन का पायलेट प्रोजेक्ट

पीरामल फाउंडेशन मप्र के 5 जिलों में चलाएगा जल संसाधन का पायलेट प्रोजेक्ट
भोपाल, पीरामल फाउंडेशन और मध्य प्रदेश के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) ने आज शहर में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में, प्रौद्योगिकी के अभिनव उपयोग के माध्यम से जल संसाधनों की स्थिरता को सक्षम करने के लिए प्रभावी समाधानों को लागू करने पर विचार-विमर्श किया। सम्मेलन में राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों ने ‘सोर्स सस्टेनेबिलिटी‘ पर अपने विचार रखे और मध्य प्रदेश में इन्हें लागू करने पर चर्चा की। उद्घाटन सत्र में श्री सुखदेव पानसे, माननीय मंत्री पीएचईडी; श्री संजय शुक्ला, प्रमुख सचिव पीएचईडी; श्री अनुज शर्मा, सीईओ, पीरामल सर्वजल और श्री राजेंद्र हार्डेनिया, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ने देश के अन्य प्रमुख विशेषज्ञों और जल प्रबंधन से जुड़े सरकारी अधिकारियों के साथ भाग लिया। श्री सुखदेव पानसे,  मंत्री पीएचईडी ने इस अवसर पर कहा, ‘जल संसाधनों के मामले में स्रोत स्थिरता पर प्रभावी कार्यान्वयन योग्य समाधानों पर मंथन करने वाले विशेषज्ञों के साथ यह शिखर बैठक फलदायी रही है। पीरामल फाउंडेशन ने आईओटी सक्षम स्मार्ट स्टैंड पोस्ट के साथ यह सुनिश्चित करने में हमारी मदद की है कि इस वादे को देश भर में निभाया जा सकता है। हमें विश्वास है कि हम इन पायलट प्रोजेक्ट से मिले सबक को जमीनी स्तर पर परिवर्तन लाने के लिए कार्यान्वित कर सकते हैं।’ फेडरल मिनिस्ट्री ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति की पानी की उपलब्धता क्रमशः 1700 उ3 और 1000 उ3 से कम हो जाती है, तो एक देश को पानी के तनाव और पानी की कमी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 1544 उ3 प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता के साथ, भारत पहले से ही एक जल-तनावग्रस्त देश है और पानी के संकट की ओर बढ़ रहा है। जल संसाधन उपलब्धता और भूजल पुनर्भरण के लिए जल संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देने के अलावा, स्थानीय स्तर के जल संस्थानों के प्रदर्शन के साथ एक प्रभावी जल प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है। पीरामल सर्वजल के सीईओ, अनुज शर्मा ने कहा, ‘भारत में दुनिया की आबादी का 17 फीसदी हिस्सा है और दुनिया के ताजा जल संसाधनों का केवल 4 फीसदी यहां है। एक अक्षम जल संसाधन प्रबंधन प्रणाली और जलवायु परिवर्तन के कारण, भारत को लगातार पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। समय की मांग, उन समाधानों को लागू करना है जो सभी के लिए आसानी से उपलब्ध पीने के पानी को सुरक्षित बना सकें। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी तकनीक के उपयोग से हम पानी के उपयोग को कम कर सकते हैं, पानी की बर्बादी को कम कर सकते हैं और पानी के अनधिकृत उपयोग को रोक सकते हैं। ऐसे दौर में, जब हम जल संसाधनों को रिचार्ज करने के नए तरीकों को लागू करने में जुटे हैं, ये उपाय कीमती संसाधन को समान रूप से वितरित करने में सक्षम होंगे। जल्द ही इस संबंध में एक पायलट प्रोग्राम को लागू किया जाएगा।’ पीरामल फाउंडेशन ने आज स्मार्ट स्टैंड पोस्ट भी लॉन्च किया है, जो एक स्मार्ट कार्ड आधारित स्वचालित जल वितरण इकाई है जिसे जल्द ही स्वजल निवासों में प्रदर्शित किया जाएगा। मौजूदा जल इकाइयों के विपरीत, स्मार्ट स्टैंड पोस्ट में ओवरहेड से पानी निः शुल्क वितरित करने के लिए 3 विकल्प होंगे। यह एक ही समय में कई उपयोगकर्ताओं तक पहुंच की अनुमति देगा लेकिन अनधिकृत (स्मार्ट कार्ड के बिना) उपयोग को रोकेगा। आईओटी के माध्यम से, सेंसर से डेटा कैप्चर किया जाएगा और रिमोट मॉनिटरिंग के लिए एक केंद्रीय सर्वर को भेजा जाएगा। जल वितरण के पारंपरिक तरीकों पर स्मार्ट स्टैंड पोस्ट प्रौद्योगिकी के 4 प्रमुख लाभ हैंः 1) समय क्षमताः कई उपयोगकर्ता एक ही इकाई से एक साथ पानी का उपयोग कर सकते हैं। 2) अनधिकृत पहुंच को रोकता हैः अधिकृत आरएफआईडी कार्ड धारकों तक सीमित 3) आईओटी रियल-टाइम मॉनिटरिंग सक्षमः संसाधन उपलब्धता पर पूरी नजर और पानी के बंटवारे से संबंधित रियल टाइम डेटा कलेक्शन 4) डेटा विश्लेषणः बेहतर प्रत्याशा और योजना का समर्थन करने के लिए पानी के उपयोग के पैटर्न का विश्लेषण सक्षम करता है। मप्र में पीरामल फाउंडेशन के लिए चुने गए 5 जिलेः स्वजल योजना के कार्यान्वयन के लिए खंडवा, दमोह, बड़वानी, विदिशा और सिंगरौली को चुना गया हैं। इस अवसर पर मुख्य सचिव पीएचईडी श्री संजय शुक्ला (आईएएस) ने अपने मुख्य उद्बोधन में कहा, ‘पीएचईडी, पीरामल फाउंडेशन और अन्य भागीदारों के साथ मप्र के 7 आकांक्षात्मक जिलों में स्वजल योजनाओं को लागू करने के लिए काम कर रहा है। मैं नीति निर्माताओं और प्रमुख हितधारकों से पानी की कुशल स्रोत स्थिरता को सक्षम करने के लिए स्थिरता संरचनाओं को संस्थागत बनाने का आग्रह करता हूं, जो अब तक ऐतिहासिक रूप से पेयजल कार्यक्रमों में एक चुनौती बन कर सामने आई है।’ शिखर सम्मेलन आज सरकार की स्वजल योजना में सोर्स सस्टेनेबिलिटी और आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) पर था। स्वजल, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का एक पायलट प्रोजेक्ट है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को स्थायी आधार पर सुरक्षित पेयजल तक पहुंच प्रदान करने के लिए एक मांग संचालित और सामुदायिकता केंद्रित कार्यक्रम के रूप में डिजाइन किया गया है। यह योजना वर्तमान में भारत के 112 एस्पिरेशनल जिलों में शुरू की गई है। शिखर सम्मेलन में जल स्थिरता मॉडल और उन्हें लागू करने की चुनौतियों पर 2 पैनल चर्चाओं का आयोजन भी किया गया। पैनल में डॉ. पी.के. जैन (सीजीडब्ल्यूबी), श्री अजय दिवाकर (पीएचईडी), श्री उदय पाटनकर (जीएसडीए, महाराष्ट्र) जैसे जैसे डोमेन विशेषज्ञ सहित कई लोग शामिल थे। पिरामल सर्वजल अपने अभिनव मॉडल के माध्यम से, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाता है। पीरामल सर्वजल अपने नवीन मॉडल के माध्य