बदला अंबाह का गणित, कमलेश जाटव को तिहरी चुनौती

बदला अंबाह का गणित, कमलेश जाटव को तिहरी चुनौती
भोपाल। लगातार 20 साल तक भाजपा का गढ़ रही मुरैना की अंबाह सीट से आठ साल बाद पार्टी को उम्मीदें हैं। हालांकि एससी के लिए सुरक्षित इस सीट पर सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं। 2018 में यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीते कमलेश जाटव भी उन विधायकों में शामिल हैं, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में दाखिल हुए। माना जा रहा है कि होने जा रहे उपचुनाव में वह भाजपा प्रत्याशी होंगे। मुरैना जिले की अम्बाह सीट पर कमलेश जाटव ने 2018 में 7,628 वोटों से जीत हासिल कर पहली बार विधायक बने थे। उन्होंने निर्दलीय नेहा किन्नर को 7,547 वोट से हराया था। लेकिन उन्हें उपचुनाव में तिहरी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उन्हें बसपा और निर्दलीय नेहा किन्नर के साथ ही वोटकटवा उम्मीदवारों से भी पार पाना होगा। नेहा किन्नर भाजपा में शामिल हो गई हैं लेकिन चुनाव की तैयारी कर रही हैं। यहां 2018 में वोटकटवा उम्मीदवारों को 5,883 वोट मिले थे। यहां 12 प्रत्याशी मैदान में थे और कुल 1,24,916 वोट पड़े थे। जाटव को 37,343, नेहा किन्नर को 29,796, भाजपा प्रत्याशी गब्बर सखवाल को 29,715 और बसपा प्रत्याशी सत्यप्रकाश सखवार को 22,179 वोट मिले थे। बसपा बिगाड़ेगी गणित उपचुनाव को लेकर जहां भाजपा और कांग्रेस में तैयारी चल रही है, वहीं बसपा ने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है। बसपा ने यहां भानुप्रताप सिंह सखवार को प्रत्याशी बनाया है। पिछले तीन दशक के चुनावों में सबसे अधिक वोट शेयर 44.6 प्रतिशत के साथ बसपा ने 2013 में जीत दर्ज की थी, लेकिन 2018 में उसे भारी गिरावट का सामना करना पड़ा। ऐसे में बसपा भी कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है। कांग्रेस धोखा देने के आरोप लगाकर इसे ही मुद्दा बना रही है। वैसे तो अंबाह के चुनाव में भी विकास, सियासत और जनता की मांग पर हमेशा से जातिगत समीकरण ही भारी पड़ते रहे हैं, लेकिन सभा, रैलियों और जनसंपर्क में बुनियादी सुविधाओं और विकास की बातें भी हो जाती हैं। हर बार चुनावी मुद्दा बनने के बाद भी यहां शिक्षा का स्तर निम्न है। क्षेत्र में कोई बड़ा कॉलेज नहीं है। स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो अस्पताल में डॉक्टर ही नहीं मिलते। पिछले कई चुनाव 33 किमी की उसैद घाट से अंबाह तक की सड़क के निर्माण के वादे पर हुए, लेकिन ये पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर सका है। उसैद घाट का पुल भी कागजों से बाहर नहीं आ पा रहा है। इस पुल के बन जाने से उप्र से बेहतर कनेक्टिविटी हो सकेगी। ये है जनता की मांग कमलेश जाटव ने कमलनाथ सरकार पर उनकी उपेक्षा के आरोप लगाए थे। उसका एक उदाहरण उसैद घाट सड़क भी है, जिसके लिए उन्होंने खुद भोपाल में विभागीय अधिकारियों को ज्ञापन दिया था, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। लक्ष्मणपुरा में सड़क, पानी व बिजली की मांग पुरानी है, जिसे लेकर लोगों में नाराजगी है। आरसीसी सड़क खराब हो गई है। आरोप है कि आवास योजना के अंतर्गत जो आवास मिलते हैं, सचिव और सरपंच पैसा लेकर आवंटित करते हैं। भदौरिया पुना में किसानों को खाद्य, बीज सोसाइटी द्वारा उपलब्ध कराने और गौशाला बनाने की मांग भी होती रही है। गांव से मुख्य मार्ग तक जाने के लिए सड़क जर्जर हो चुकी है। इस गांव में माध्यमिक विद्यालय नहीं है। बगियापुरा गाँव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। आंगनबाड़ी केंद्र की मांग है। अम्बाह गांव में पुराना किला राष्ट्रीय धरोहर होते हुए भी देख रेख के अभाव में क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। नगर पालिका द्वारा सड़क एवं नालियों की सफाई नहीं की जाती है। सबसे बड़ी समस्या पेयजल की है। गांव में पीने की पानी की गंभीर समस्या है। पानी की टंकी लोगों की पुरानी मांग है। लोग आईटीआई कॉलेज भी चाहते हैं। बस स्टैंड पर शौचालय, यात्री प्रतीक्षालय नहीं है। जातीय समीकरण इस सीट का जातिगत समीकरण देखें तो 28.60 प्रतिशत ठाकुर राजपूत, 16.60 प्रतिशत सकवार, 7.9 प्रतिशत कुशवाह काछी, 6.9 प्रतिशत ब्राह्मण, 6.4 प्रतिशत पाल बघेल और 5.9 प्रतिशत बनिया वर्ग के मतदाता हैं। यानी परिणाम तय करने में ठाकुर और सकवार वर्ग की बड़ी भूमिका होती है। पिछले तीन दशक के चुनावों पर नजर डालें, तो सियासी मंच पर वो बंशीलाल जाटव नहीं पड़ते, जिन्होंने 1993 से 2003 तक तीन चुनावों में एकतरफा जीत दर्ज कर इसे भाजपा का गढ़ बना दिया था। इसके बाद 2008 में भी भाजपा ने जीत दर्ज की, लेकिन टिकट कमलेश जाटव सुमन को दिया गया था। बंशीलाल हर चुनाव लंबे अंतराल से जीतते थे, जबकि कमलेश जाटव (36.52 प्रतिशत) को बीएसपी के सत्यप्रकाश कटवाल (31.60 प्रतिशत) ने कड़ी टक्कर दी थी। फैसला 4.92 प्रतिशत वोट से हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस के सुरेश जाटव(19.90 प्रतिशत) तीसरे स्थान पर रहे। 2013 में भाजपा ने एक बार फिर बंशीलाल जाटव को मौका दिया, लेकिन शायद तब तक वह अपनी जमीन खो चुके थे। इस चुनाव में बीएसपी ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की। बीएसपी के सत्यप्रकाश कटवार (44.60 प्रतिशत) ने बंशीलाल जाटव (34.50 प्रतिशत) को 10.10 प्रतिशत के अंतर से हराया। इस बार कांग्रेस के अमर सिंह जाटव (18.00 प्रतिशत) तीसरे स्थान पर रहे। 2018 में कमलेश जाटव कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे, तो 29.90 प्रतिशत हासिल किए। उनका मुकाबला निर्दल प्रत्याशी नेहा किन्नर से था, जिन्हें 23.90 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा के गब्बर सेखवार 23.80 प्रतिशत वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव के बाद हुए लोकसभा चुनाव में नेहा किन्नर ने भाजपा ज्वाइन कर ली, लेकिन इन दिनों बतौर निर्दल वह प्रचार अभियान शुरू कर चुकी हैं। इधर कांग्रेस की मुश्किल है कि वह दल बदल को धोखा बताकर इसे मुद्दा बनाने की कोशिश में है। ऐसे में वह नेहा को टिकट दे नहीं सकेगी, जबकि उसे ऐसे चेहरे की तलाश है, जो कमलेश जाटव को कड़ी टक्कर दे सके। इस बीच बीएसपी ने भी पत्ते नहीं खोले हैं, वहीं प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी भी यहां प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में आने वाला उपचुनाव बेहद दिलचस्प होना तय है।