समाज के तिरस्कार से बचने मिर्ची बाबा की जलसमाधि नौटंकी

समाज के तिरस्कार से बचने मिर्ची बाबा की जलसमाधि नौटंकी
प्रदीप शर्मा हरदा, संतों के चरणों में नेताओं को लौट लगाते देखा आया है, मगर अब जमाना बदल गया है। घर , गृहस्थी और समाज को त्याग कर जंगल में ध्यान-योग और तपस्या करने वाले संत अब लुप्तप्राय प्रजाति के अंग बन गए हैं। आज के दौर में नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाकर अपना ग्लैमर चमकाने वाले साधु संतों की बाढ़ आ गई है। इसमें नित नए प्रपंच रचकर एक दूसरे से आगे निकलने की हौड़ लग गई है। इसमें मिर्ची यज्ञ कर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के भोपाल लोकसभा सीट से जीतने पर स्वयं जलसमाधि लेने का दावा करने वाले वैराग्यानंद गिरी महाराज तब एकाएक राजनीति की चर्चा में सबको पीछे छोड़कर छा गये थे। मगर उनका चुनावी दाव उलटा पड़ने से बाबा को मुंह दिखाते नहीं बन रहा। उनके अज्ञात वास दौरान भी जब पीछा नहीं छूटा तो, बाबा आपसी मश्वरा कर एक बार फिर अपने नए दिव्यास्त्रों के साथ कंदरा से बाहर निकल आए हैं। बाबा ने इस बार अपने तरकश से तीर चलकर कलेक्टर तरुण पिथोड़े पर दबाव बनाया है, ताकि प्रशासनिक स्तर पर जल समाधि की अनुमति न मिले और साफ-साफ बच जाएं। जाहिराना तौर पर मिर्ची बाबा को इस बार बिना अनुमति के मिर्चयज्ञ की परमिशन नहीं मिली। कलियुगी बाबा अब समाज के तिरस्कार से बचने जलसमाधि ले अपनी इहलीला समाप्त करने का ढोंग रचाने जा रहे हैं। बाबा के चेले चपाटी जानते हैं कि प्रशासन ऐसा भी नहीं होने देगा, सो चित-पुट दोनों के साथ अन्नी भी पास में रहेगी। ऐसे ढोंग और आडंबर रचकर वैराग्यानंद महाराज चाहे लाइम लाइट में बने रहें, मगर ऐसा करके वे सनातन हिंदू धर्म संस्कृति को अपमानित करने का काम कर रहे हैं। यदि बाबा एक सच्चे हिंदू संत की तरह इसका प्रायश्चित करें तो भी भारतीय हिंदू समाज उन्हें अकाल परलोक जाने की अनुमति नहीं देगा। जिस हिंदू धर्म संस्कृति में परम पूज्य आदि शंकराचार्य जैसे ऋषियों ने अल्पायु में अपना घर-बार त्याग कर देशाटन करते हुए विश्व को वैदिक ज्ञान दिया, आचार्य रामकृष्ण परमहंस जैसे परम ज्ञानी संत और उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद पैदा हुए हों वहां ढोंगी महात्मा आकर संत की पदवी लांछित न करें। जिस धर्म से निकली कई शाखाएं अपने ज्ञान से आज विश्व को आलोकित कर रही हैं। जिसके संतों को दुनिया में पूजा जाता ह़ो, उसके नाम पर ऐसे बाबाओं को राजनीति में दखल देकर अपने परम ज्ञान का प्रदर्शन करना शोभा नहीं देता। बेहतर होगा कि समाज की लानत मलानत से बचने के लिए ये महान पुरूष अनंत काल के अज्ञातवास पर चलें जाएं/या मौन धारण कर लें तो कोई उन्हें नहीं टोकेगा। सत्ता के लोभी ऐसे संत महंतों को यदि मिर्ची लगे तो लगे मगर उन्हें जैन मुनियों से कठिन तप की दीक्षा लेना चाहिए, जो इस कलियुग में लगातार व्रत रखते हुए अपने प्राण तजने का प्रण पूरा करने से पीछे हटकर इनकी तरह कायरों वाला बर्ताव नहीं करते। बल्कि संत की तरह महाव्रत रखकर अपने प्राण तज देते हैं । इस युग में भी जैन मुनियों का तप हो, मौन हो या अन्य हठयोग सभी वंदनीय है। कलेक्टर से जलसमाधि की अनुमति लेकर सिधारने की उनकी यह कोशिश, मिर्ची यज्ञ से किसी नेता की जीत का झूठा दावा करने से कहीं अधिक हास्यास्पद है।