विधानसभा 2018 चुनाव: क्या महल राजनीति का वर्चस्व कायम रहेगा?

विधानसभा 2018 चुनाव: क्या महल राजनीति का वर्चस्व कायम रहेगा?
khemraj morya शिवपुरी। शिवपुरी जिले की राजनीति में हर चुनाव में चाहे कांग्रेस जीते या भाजपा अथवा निर्दलीय या अन्य दलों के प्रत्याशी, लेकिन अभी तक किसी भी चुनाव में महल की प्रतिष्ठा को आघात नहीं पहुंचा है। यहां से राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर माधवराव सिंधिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया अनेक बार चुनाव लड़ी हैं, लेकिन हर चुनाव में महल की विजय पताका फहराई है। ऐसा नहीं कि महल के वर्चस्व को चुनौती न मिली हो, लेकिन हर चुनौती पर अभी तक महल का अस्तित्व भारी रहा है। इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि महल समर्थकों का एक अलग वर्ग रहा है। इसमें कांग्रेस के लोग भी हैं और भाजपा के लोग भी हैं। इस कारण यहां महल समर्थकों के विषय में फूल छाप कांग्रेसी और पंजा छाप भाजपाई शब्दावली का उपयोग किया जाता है। इस बार विधानसभा चुनाव में महल विरोधियों ने महल की शिवपुरी के साथ-साथ कोलारस सीट पर भी घेराबंदी की है। इनमें से एक सीट पर महल की उम्मीद्वार शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र की भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया और दूसरी सीट कोलारस पर महल के उम्मीद्वार कांग्रेस के उम्मीद्वार महेन्द्र यादव माने जा रहे हैं। वह इसलिए क्योंकि महेन्द्र यादव को कट्टर महल विरोधी भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी जबर्दस्त चुनौती दे रहे हैं। महल विरोधियों का दावा है कि इस चुनाव में महल की दो मीनारों में से या तो दोनों अथवा कोई एक अवश्य धराशायी होगी। जबकि महल समर्थक विरोधियों के दावे को हवाहवाई बता रहे हैं और उनका दावा है कि दोनों सीटों पर महल का वर्चस्व कायम रहेगा। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में भले ही भाजपा उम्मीद्वार यशोधरा राजे सिंधिया हों, लेकिन कौन नहीं जानता कि बड़ी संख्या में महल विरोधी भाजपाई गुपचुप रूप से कांग्रेस प्रत्याशी के संपर्क में रहे और इसे कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ लढ़ा के समर्थक भी स्वीकार करते हैं। श्री लढ़ा के प्रचार अभियान की कमान संभाल रहे वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया था कि अधिकांश सिंधिया समर्थक कांग्रेसी उनके प्रत्याशी के साथ नहीं है, लेकिन इसके बाद भी उन्हें परवाह नहीं है, क्योंकि बड़ी संख्या में भाजपा के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता उनके प्रत्याशी की जीत में जीजान से जुटे हुए हैं। श्री लढ़ा के प्रचार की कमान भी मुख्य रूप से दिग्गी समर्थकों के हाथों में रही। वहीं दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया के प्रचार में सिंधिया समर्थक कई बड़े नामचीन चेहरे जुटे रहे। इनमें कतिपय कांग्रेसी पार्षद भी शामिल थे। ऐसे युवा कांग्रेसी जो सिद्धार्थ लढ़ा के शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनने से असहज महसूस कर रहे थे उन्होंने भी खुलकर यशोधरा राजे सिंधिया का साथ दिया। चुनाव के पहले चर्चा थी कि शहर में यशोधरा राजे सिंधिया को बड़ा झटका लग सकता है, लेकिन मतदान के बाद एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कांग्रेसियों के भितरघात के कारण शहर में भाजपा मजबूत हुई। शिवपुरी विधानसभा चुनाव इस मायने में प्रदेश में अनूठा रहा, क्योंकि इसमें मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच नहीं, बल्कि महल समर्थक और विरोधियों के बीच हुआ। भाजपा के महल विरोधी यशोधरा राजे की हार की और कांग्रेस के महल विरोधी सिद्धार्थ लढ़ा की हार की शर्तें लगा रहे हैं। कांग्रेस में एक महल समर्थक नेता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आ रही है तो फिर हम क्यों महल से बुराई लें। कुल मिलाकर फिर भी शिवपुरी में मुकाबला काफी खुला हुआ है और देखना यह है कि हर बार की तरह इस बार भी महल की प्रतिष्ठा कायम रहती है अथवा एक नई तस्वीर उभरकर सामने आएगी। कोलारस में महल की प्रतिष्ठा इसलिए दांव पर है, क्योंकि वहां भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी हैं जिन्होंने जिले की राजनीति में महल विरोध की राजनीति करने वाले पूर्व विधायक हरिबल्लभ शुक्ला के रिक्त स्थान को भरने का प्रयास किया है। श्री रघुवंशी भले ही कोलारस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उन्होंने सीधे-सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समक्ष सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनौती दी है और जनता से आव्हान किया है कि गुना संसदीय क्षेत्र में क्षत्रपों की राजनीति को समाप्त करने के लिए मुझे समर्थन दें। एक जमाने में वीरेन्द्र रघुवंशी महल के इतने निकटस्थ थे कि 2007 के शिवपुरी विधानसभा उपचुनाव में महल ने अपने मतभेदों को दरकिनार कर उन्हें जिताने में पूरी ताकत लगा दी थी। उस चुनाव में महल की ताकत के आगे पूरी प्रदेश सरकार बोनी साबित हुई थी और श्री रघुवंशी चुनाव जीत गए थे, परंतु पिछले विधानसभा चुनाव के बाद वीरेन्द्र रघुवंशी का महल से मोह भंग हुआ और उन्होंने आरोप लगाया कि अपनी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को जिताने के लिए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनके खिलाफ काम किया। इसके बाद श्री रघुवंशी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वॉइन की और भाजपा में वह लगातार महल विरोध की राजनीति करते रहे। भाजपा में होते हुए भी वीरेन्द्र रघुवंशी की यशोधरा राजे सिंधिया से कभी नहीं पटी। उनके प्रचार में भी यशोधरा राजे शामिल नहीं हुईं। वहीं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने वीरेन्द्र रघुवंशी के खिलाफ जिले में सर्वाधिक तीन आमसभाएं कोलारस में लीं। भाजपा के महल समर्थक भाजपाई खुलकर कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र यादव का प्रचार करने में जुटे रहे। दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी केप्रचार में कांग्रेस और भाजपा के महल विरोधी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने काम किया। कुल मिलाकर प्रदेश में सत्ता किसकी भी आए इससे भी अधिक दिलचस्प सवाल यह है कि कोलारस और शिवपुरी में कौन जीतता है और कौन हारता है। क्या महल की प्रतिष्ठा हर बार की तरह बरकरार रहेगी या इस बार एक नई शुरूआत देखने को मिलेगी।