सिकुड़ रहा है दिमाग, बढ़ रही है भूलने की बीमारी

मानसिक तनाव, टेंशन और स्ट्रेस थोड़ा बहुत सभी को होता है लेकिन जब यह ज्यादा हो जाता है, तो इससे गंभीर मानसिक और शारीरिक नुकसान होने लगते हैं। एक रिसर्च में सामने आया है कि दिमाग का वह हिस्सा जो चीजों को याद रखने का काम करता है, जिसे डॉक्टरों की भाषा में 'हिपोकैंपस' कहा जाता है, वह सिकुड़ता जा रहा है। यह समस्या यंग एज में ज्यादा पाई जा रही है। इससे भूलने जैसी बीमारियां भी हो रही हैं।


RML अस्पताल में हुई रिसर्च
इस बारे में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के न्यूरॉल्जिस्ट डॉ विकास धिकव बताते हैं कि पिछले साल आरएमएल के न्यूरॉलजी विभाग ने एक रिसर्च की थी। इसमें 67 मरीजों को शामिल किया गया था। इसका मकसद यह देखना था कि कितने प्रतिशत लोग तनाव में हैं? यह दिमाग पर क्या असर करता है‌? डेढ़ साल तक चली इस रिसर्च के नतीजे बेहद चिंताजनक रहे। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि इन 67 मरीजों में से 30 प्रतिशत मरीज ऐसे पाए गए जिन्हें तनाव है। इस तनाव की वजह से उनके दिमाग का हिपोकैंपस सिकुड़ता जा रहा है।

यंग एज में भूलने की बीमारी
डॉ धिकव ने बताया कि रिसर्च में सभी मरीजों के दिमाग का MRI किया गया और MRI करने के बाद उनके हिपोकैंपस को मापा गया। जिन लोगों में तनाव न के बराबर था, उनका हिपोकैंपस का साइज सामान्य था और जिन्हें तनाव था, उनका हिपोकैंपस सिकुड़ चुका था। इसकी वजह से ही यंग एज में भूलने की बीमारी हो रही है।

उदासी और अकेलापन है कारण
डॉ धिकव बताते हैं कि बहुत से लोग ऐसे हैं जो हर वक्त उदास रहते हैं। इस उदासी का कारण कुछ भी हो सकता है। इसके साथ जो लोग अकेले रहते हैं या परिवार में होते हुए भी केवल फोन पर आंखें टिकाए रहते हैं और किसी से बात नहीं करते, उनमें भी तनाव का स्तर काफी हाई देखा गया है। इसके साथ ही नकारात्मक विचार, चिड़चिड़ा होने से भी तनाव का खतरा बढ़ जाता है।

ऐसे सिकुड़ जाता है हिपोकैंपस
जब हम किसी चीज के बारे में ज्यादा सोचते हैं और उस चीज को लेकर तनाव में आ जाते हैं, तो हमारे दिमाग में सिरम कोटिसोल बढ़ जाता है। सिरम कोटिसोल तनाव का हॉर्मोन होता है, जिसके बढ़ने से तनाव भी बढ़ता है। यह हॉर्मोन लोगों को आत्महत्या करने तक मजबूर कर देता है, इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि ऐसी किसी चीज के बारे में न सोचें जिससे तनाव बढ़े।

ऐसे कर सकते हैं बचाव
तनाव को दूर करने के लिए सबसे बड़ी और अहम बात यह है कि दिल और दिमाग में यदि बात आती है, तो उसे लोगों के साथ शेयर किया जाए। यदि सब के साथ शेयर नहीं करना चाहते, तो कोई एक व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिस पर आपको विश्वास हो और अपनी बातें शेयर कर सकें। इसके साथ ही योग, मेडिटेशन और एक्सर्साइज का भी सहारा लेना चाहिए।