सतपुड़ा पार्क से हटने को तैयार नहीं ग्रामीण, घना जंगल मांग रहे

सतपुड़ा पार्क से हटने को तैयार नहीं ग्रामीण, घना जंगल मांग रहे

भोपाल
सुपलई और खामदा गांव के ग्रामीण सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से बाहर जाने (विस्थापन) को तैयार नहीं हैं। ग्रामीणों ने ऐसी शर्त रख दी है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता है। वे नई बसाहट के लिए उस स्थान की मांग कर रहे हैं, जहां सात घनत्व का घना जंगल खड़ा है। हैरत की बात यह है कि इसी जमीन के लिए पहले मना भी कर चुके हैं। इस कारण पार्क से गांवों के विस्थापन का काम अटक गया है।

सतपुड़ा पार्क में बाघों की आबादी तेजी से बढ़ी है। बाघ आकलन की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में सतपुड़ा में 47 बाघ हैं। यह आंकलन वर्ष 2017-18 में किया गया था। इसके बाद सवा दो साल में बाघों की आबादी और बढ़कर 60 के आस-पास पहुंच गई है। वन अधिकारियों का मानना है कि ऐसा पार्क से 46 गांवों के विस्थापन से संभव हुआ है, पर अब दो गांवों का विस्थापन अधिकारियों को भारी पड़ रहा है।

खामदा के 143 में से 23 परिवार तो फिर पार्क से बाहर चले गए, पर सुपलई के 100 परिवार बागड़ा के पास सामान्य वनमंडल की वनभूमि मांग रहे हैं। इस जमीन पर घना जंगल खड़ा है। इतना ही नहीं, वर्ष 2018 में इसी स्थान की बात चली थी, तो ग्रामीणों ने मना कर दिया था। इसके बदले वन विभाग सुखतवा और इटारसी क्षेत्र में भूमि देने को तैयार है, पर ग्रामीण वहां बसने को तैयार नहीं हैं।

एक परिवार को 20 लाख रुपये

संरक्षित क्षेत्र से बाहर जाकर बसने के लिए प्रत्येक परिवार को 20 लाख रुपये दिए जाते हैं। इसके अलावा जमीन भी दी जाती है। परिवार में 18 साल या उससे अधिक उम्र के युवकों को अलग परिवार मानकर राशि दी जाती है।

घास के मैदानों ने बढ़ाए बाघ
वन अधिकारी बताते हैं कि सतपुड़ा में बाघों की संख्या बढ़ने का श्रेय गांवों के विस्थापन को जाता है। पार्क से 46 गांव हटाए गए, तो वहां घास का जंगल तैयार हुआ। जिससे चीतल, सांभर सहित अन्य शाकाहारी जीवों की संख्या बढ़ी और फिर अच्छा खाना मिलने के कारण बाघ यहां आए।