विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही बिहार में शुरू हुआ नेताओं का दल बदलने का सिलसिला
पटना
दल-बदल के मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में जाने वालों से अधिक संख्या आने वालों की है। पार्टी छोड़कर जाने वाले इक्के-दुक्के नेता ही हैं, जबकि आने वालों की कतार लंबी है। दूसरे दल को छोड़ भाजपा में आने वालों में अभी कुछ पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर हैं तो कोई गुमनामी में जी रहे हैं। भाजपा छोड़कर जाने वालों में बड़ा नाम शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति झा आजाद का है, जबकि हाल के वर्षों में पार्टी में आने वालों में सबसे बड़ा चेहरा राजद से रामकृपाल यादव का रहा।
2014 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले रामकृपाल ने दिल्ली में सदस्यता और फिर पाटलिपुत्र से लोकसभा का टिकट हासिल की। जीत के बाद उन्हें केंद्र में मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अभी वे पाटलिपुत्र से भाजपा से दूसरी बार सांसद बनकर सदन में पहुंचे हैं। पार्टी में आने वाले अन्य नेताओं में सम्राट चौधरी, शकुनी चौधरी, भीम सिंह, नीतीश मिश्र, वीरेन्द्र चौधरी, विश्वमोहन कुमार, नवल किशोर यादव, रविन्द्र चरण यादव, महाचंद्र सिंह जैसे दिग्गज नाम शामिल हैं। पार्टी नेताओं की मानें तो विधानसभा चुनाव के पहले अन्य दलों से 2-4 महत्वपूर्ण नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं। आलाकमान के स्तर पर यह चर्चा चल रही है। उम्मीद है कि भाजपा में भी दूसरे दलों से लोग आकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण करें।
राजद में आने के साथ ही जाने का सिलसिला भी शुरू
दुंदुभी अभी बजी नहीं है, लेकिन चुनावी रेस में उतरने वाले कई घोड़ों ने अस्तबल बदलना शुरू कर दिया है। दूसरे दलों से राजद में आने वालों की संख्या अभी अधिक है, लेकिन जाने वालों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। विधान सभा चुनाव के ठीक पहले तो राजद में आने की शुरुआत पूर्व मंत्री श्याम रजक ने कर दी, लेकिन इसके पहले भी लोकसभा चुनाव के बाद से ही कई बड़े नेताओं ने दल-बदल शुरू कर दिया था। राजद के बड़े नेता में शुमार पूर्व केन्द्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी टिकट से वंचित किए जाने के कारण लोकसभा चुनाव के दौरान ही राजद छोड़कर जदयू में चले गए थे। अब उनके पुत्र व केवटी के विधायक फराज फातमी का नाम भी राजद छोड़ने वालों की सूची में लिया जा रहा है। उम्मीद थी कि सोमवार को वह जदयू ज्वाइन कर लेंगे। मगर उन्होंने इसकी घोषणा नहीं की।
इस बीच सासाराम विधायक अशोक कुशवाहा सोमवार को राजद छोडकर जदयू में चले गए। इसके पहले पाला बदलने वाले बड़े नेताओं में पूर्व विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी और विधान परिषद के पूर्व उप सभापति सलीम परवेज और पूर्व मंत्री रमई राम का नाम शामिल हैं। इन नेताओं ने लोकसभा चुनाव के बाद ही ने जदयू को छोड़कर राजद की सदस्यता ले ली थी। बाद में वृशिण पटेल और दशई चौधरी भी रालोसपा को छोड़कर राजद में आ गए। पटना स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से राजद के उम्मीदवार आजाद गांधी जदूय में चले गए थे, लेकिन चुनाव के ठीक पहले उन्होंने फिर से राजद की सदस्यता ले ली।
इधर, विधानसभा चुनाव की चर्चा के बाद से राजद को छोड़कर जाने की शुरुआत संदेश के पूर्व विधायक विजेन्द्र यादव ने की थी। उन्होंने जदयू की सदस्यता ले ली। पूर्व मंत्री और लालू प्रसाद के समधी चंद्रिका राय ने अभी पार्टी छोड़ी नहीं है, लेकिन उन्होंने जदयू में जाने का संकेत दे दिया है। उनकी काट के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी पूर्व विधायक छोटे लाल यादव को राजद ने अपने दल में शामिल कर लिया।
कांग्रेस भी दल-बदल से अछूती नहीं
विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही नेताओं के दल-बदल का सिलसिला शुरू हो गया है। कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं हैं। पार्टी के तीन-चार विधायकों की गतिविधियां संदेह के घेरे में हैं। पार्टी संगठन भी कुछ चेहरों को लेकर सशंकित है सो उन पर नजर रखी जा रही है। हालांकि यह कोई इसी चुनाव में नहीं हो रहा। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी नेताओं की आवाजाही होती रही है। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो मनोहर प्रसाद जदयू से आए थे। मनिहारी से कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे। गोविंदपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाली पूर्णिमा यादव भी जदयू छोड़कर आई थीं। अनिल कुमार भोरे विधानसभा से पिछला चुनाव कांग्रेसी टिकट पर लड़े थे। वे भी पहले जदयू में थे। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी चार विधान पार्षदों संग जदयू में शामिल हो गए थे। वहीं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा से पप्पू सिंह कांग्रेस में शामिल हुए थे। वे पूर्णिया से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार भी कई चेहरों के इधर से उधर होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
दलबदल करने वाले नेताओं का पनाहगाह रहा हम
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने वर्ष 2015 में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का गठन किया। गठन के समय से ही जदयू एवं अन्य दलों से असंतुष्ट नेताओं का यहां आना शुरू हो गया। खास बात यह रही कि अधिकतर नेताओं ने इसे एक अस्थायी प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल किया। कुछ महीने रहे टिकट भी पाया विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी लड़े और पराजित होने के बाद से अन्य जिलों का रास्ता पकड़ लिया। कई लोग दल-बदल के बाद यहां आए और कुछ महीनों के बाद यहां से चले गए। उनमें प्रमुख नाम पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, महाचंद्र सिंह, अजीत सिंह, नितीश मिश्रा, सम्राट चौधरी और उनके पिता शकुनी चौधरी शामिल हैं। इसके अलावा पूर्व सांसद लवली आनंद भी यहां शामिल हुईं। विधायक अशोक कुशवाहा को भी पहले यही जगह मिली थी। राजद से आए उपेंद्र प्रसाद ने यहां आते ही औरंगाबाद से टिकट पा लिया। लोकसभा का चुनाव लड़ा और हारने के बाद भी अभी बने हुए हैं।