राज्यपाल शासन का 5वां महीना, कोई काम नहीं होने से बोर और परेशान हैं विधायक
श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर के कंगन से विधायक मियां अल्ताफ अहमद एक ओर जहां राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर परेशान भी हैं। सस्पेंडेड असेंबली के विधायकों की चिंता यह है कि राज्य अब केन्द्र सरकार के अधीन है और वे अपनी विधानसभा में लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं। वहीं राहत की बात यह है कि लोगों को इस बारे में पता है इसलिए वे भी बहुत कुछ नहीं कहते हैं।
नैशनल कॉन्फेंस के नेता और पूर्व मंत्री ने कहा, 'मेरी निजी गुडविल के चलते मैं राज्य की नौकरशाही के साथ हूं। मैं लोगों की कुछ समस्याओं का समाधान करवा सकता हूं। अन्यथा कश्मीर के अधिकारी तो आम लोगों की पहुंच से काफी दूर हैं।' जून में राज्य में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद से विधायक काफी घबराए हुए और परेशान हैं। उन्हें यह भी नहीं पता है सूबे में फिर से चुनाव कब होंगे। पीडीपी से गुलमर्ग के विधायक मोहम्मद अब्बास वानी भी अधिकतर दिन घर पर ही रहते हैं। उन्होंने कहा, 'यहां कुछ करने को नहीं है। बिना काम, पावर और प्रभाव के विधायक होने का क्या मतलब है?'
गुरुवार को हुई भारी बर्फबारी के बाद सीपीएम नेता और कुलगाम विधायक एम युसुफ तारिगामी ने अपनी विधानसभा का दौरा किया और लोगों से मुलाकात की। तारिगामी ने कहा, 'ग्रामीणों को प्रशासन द्वारा तत्काल मदद की जरूरत है। वर्तमान परिस्थितियों में मैं बहुत कुछ नहीं कर सकता, लेकिन कम से कम मैं उनसे मिल सकता हूं।' उन्होंने बर्फ से होने वाले नुकसान से बागानों और खेतों के उत्पादन को बचाने में मदद के लिए अधिकारियों से अपील भी की। गुलमर्ग के विधायक मोहम्मद अब्बास वानी ने कहा, 'मुझे 2014 में चुना गया था। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सरकार बनाने के लिए तीन महीने ले लिए। इसके बाद उनकी मौत से लेकर उनकी बेटी के मुख्यमंत्री बनने तक हमने तीन महीने इंतजार किया। आज भी इंतजार ही कर रहे हैं।'
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां विधानसभाओं के विधायकों ने कहा कि उन्हें अपने वोटर्स से मिलने में भी डर लग रहा है। सोनवार से पीडीपी विधायक अशरफ मीर ने कहा, 'हमें अपने वोटर्स को खोने का डर है क्योंकि हमारे पास कोई ताकत नहीं है कि हम कोई पॉलिसी बना सकें।' अधिकतर विधायक चाहते हैं कि राज्य में जल्द से जल्द चुनाव हों ताकि वे काम कर सकें।