भगवान जगन्नाथ के मौसी के घर से लौटते ही बंद होंगे शुभ संस्कार

रायपुर
 भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर 14 जुलाई को प्रजा को दर्शन देते हुए मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। 9-10 दिन विश्राम करने के बाद वे 22 जुलाई दशमी तिथि को वापस मूल मंदिर में लौटेंगे। इसके अगले दिन देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाएंगे। इसके साथ ही मांगलिक एवं शुभ संस्कारों पर रोक लग जाएगी। इसे चातुर्मास कहा जाता है।

चातुर्मास के दौरान पूरे चार माह यानी सावन, भादो, क्वांर, कार्तिक माह की एकादशी तक मांगलिक संस्कार नहीं किए जा सकेंगे। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु के क्षीरसागर में प्रस्थान करने के साथ ही शुभ संस्कार नहीं किए जाते। चार माह बाद देवउठनी एकादशी (तुलसी पूजा) के दिन जब देवगण जागेंग।े इसके पश्चात शुभ संस्कार किए जा सकेंगे।

चातुर्मास में कथा सुनना पुण्य फलदायी

महामाया मंदिर के सहायक पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार देवशयनी एकादशी को देवों के शयन (विश्राम) करने वाली एकादशी कहा जाता है। सभी देवगण चार माह तक विश्राम करते हैं, इसे चातुर्मास कहा जाता है।

इस दौरान साधु, संत एक ही जगह रहकर भगवान की आराधना करते हैं। चातुर्मास का काल पूजा, पाठ, भजन, कीर्तन, सत्संग व रामकथा, श्रीमद्भागवत कथा, शिव पुराण कथा, देवी भागवत कथा सहित अन्य कथाओं का श्रवण करने के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है। चातुर्मास में की गई पूजा, आराधना से पाप कटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बृज की तीर्थ यात्रा फलदायी

चातुर्मास में तीर्थ यात्रा करने की भी मनाही है। भारत के सभी तीर्थों में सिर्फ बृज क्षेत्र की यात्रा की जा सकती है। माना जाता है कि सभी देवगण चातुर्मास काल में भगवान कृष्ण की लीला स्थली बृज क्षेत्र के मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव आदि क्षेत्रों में निवास करते हैं इसलिए हजारों श्रद्धालु बृज में राधे-कृष्ण के दर्शन करने जाते हैं।

नहीं होंगे ये संस्कार

चातुर्मास काल में विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाएंगे।