चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग कल, 60 दिनों की यात्रा, आखिरी 15 मिनट रोकेंगी सांसें
नई दिल्ली
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 15 जुलाई की अलसुबह 2.51 बजे चंद्रयान-2 को लॉन्च करेगा. बुधवार को इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन ने बताया कि हमारे लिए इस मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है चंद्रमा की सतह पर सफल और सुरक्षित लैंडिंग कराना. चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई से नीचे आएगा. उसे चंद्रमा की सतह पर आने में करीब 15 मिनट लगेंगे. यह 15 मिनट इसरो के लिए बेहद कठिन होगा. क्योंकि इसरो पहली बार ऐसा मिशन करने जा रहा है.
लॉन्च के बाद अगले 16 दिनों में चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ 5 बार ऑर्बिट बदलेगा. इसके बाद 6 सितंबर को चंद्रयान-2 की चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग होगी. इसके बाद रोवर को लैंडर से बाहर निकलने 4 घंटे लगेंगे. इसके बाद, रोवर 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से करीब 15 से 20 दिनों तक चांद की सतह से डाटा जमा करके लैंडर के जरिए ऑर्बिटर तक पहुंचाता रहेगा. ऑर्बिटर फिर उस डाटा को इसरो भेजेगा.
लैंडर चंद्रमा पर भूकंप की जांच करेगा
लैंडर जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं. वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है. रोवर चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा.
पहली चुनौतीः सटीक रास्ते पर ले जाना
लॉन्च के समय धरती से चांद की दूरी करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी होगी. इतने लंबे सफर के लिए सबसे जरूरी सही मार्ग (ट्रैजेक्टरी) का चुनाव करना. क्योंकि सही ट्रैजेक्टरी से चंद्रयान-2 को धरती, चांद और रास्ते में आने वाली अन्य वस्तुओं की ग्रैविटी, सौर विकिरण और चांद के घूमने की गति का कम असर पड़ेगा.
दूसरी चुनौतीः गहरे अंतरिक्ष में संचार
धरती से ज्यादा दूरी होने की वजह से रेडियो सिग्नल देरी से पहुंचेंगे. देरी से जवाब मिलेगा. साथ ही अंतरिक्ष में होने वाली आवाज भी संचार में बाधा पहुचांएंगे.
तीसरी चुनौतीः चांद की कक्षा में पहुंचना
चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाना आसान नहीं होगा. लगातार बदलते ऑर्बिटल मूवमेंट की वजह से चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाने के लिए अत्यधिक सटीकता की जरूरत होगी. इसमें काफी ईंधन खर्च होगा. सही कक्षा में पहुंचने पर ही तय जगह पर लैंडिंग हो पाएगी.
चौथी चुनौतीः चांद की कक्षा में घूमना
चंद्रयान-2 के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं होगा. इसका बड़ा कारण है चांद के चारों तरफ ग्रैविटी बराबर नहीं है. इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर पड़ता है. इसलिए, चांद की ग्रैविटी और वातावरण की भी बारीकी से गणना करनी होगी.
पांचवीं चुनौतीः चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पर चंद्रयान-2 को रोवर और लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती है. चांद की कक्षा से दक्षिणी ध्रुव पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य होगा. ये सभी काम ऑटोमैटिकली होंगी.
छठीं चुनौतीः चंद्रमा की धूल
चांद की सतह पर ढेरों गड्ढे, पत्थर और धूल है. जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी. धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे पावर सप्लाई बाधित हो सकती है. ऑनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसर्स पर असर पड़ सकता है.
सातवीं चुनौतीः बदलता तापमान
चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर होती है. इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है. इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आएगी.
चंद्रयान-2 में सभी पेलोड्स स्वदेशी हैं
चंद्रयान-2 में एक भी पेलोड विदेशी नहीं है. इसके सभी हिस्से पूरी तरह से स्वदेशी हैं, जबकि, चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर में 3 यूरोप और 2 अमेरिका के पेलोड्स थे. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो 11 साल बाद एक बार फिर चंद्रमा की सतह को खंगालने के लिए तैयार है.
दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा चंद्रयान-2
इसरो ने उम्मीद जताई है कि चंद्रयान-2 चंद्रमा पर 6 सितंबर को दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा. चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं, जिनके नाम ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं. इस प्रोजेक्ट की लागत 1000 करोड़ रुपए है. अगर मिशन सफल हुआ तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत चांद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश होगा.
सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से होगी लॉन्चिंग
चंद्रयान-2 इसरो के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ा जाएगा. फिर उसे चांद की कक्षा में पहुंचाया जाएगा. करीब 55 दिन बाद चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा. फिर लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. इसके बाद रोवर उसमें से निकलकर विभिन्न प्रयोग करेगा. चांद की सतह, वातावरण और मिट्टी की जांच करेगा. वहीं, ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर पर नजर रखेगा.