खेत बटाई या ठेके पर देने पर केन्द्र सरकार ने लगाया १८% जीएसटी
मुरैना
मध्य प्रदेश किसान सभा ने हाल ही में खेती को बटाई या ठेके पर देने पर केंद्र सरकार द्वारा 18 परसेंट जीएसटी लगाने के आदेश का विरोध किया है। मध्य प्रदेश किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक तिवारी ने कहा है कि आजादी के बाद देश में पहली बार खेती पर टैक्स लगाया गया है। यह टैक्स ऐसे समय लगाया जा रहा है। जब देशभर में कोविड-19 का प्रकोप चल रहा है। सरकार की नव उदारवादी नीतियों के चलते खेती में छोटी जोतें लाभकारी हो गई हैं ।
भूमि का केंद्रीकरण बढ रहा है।भूमिहीनता लगातार बढ़ रही है। गरीब किसान खेत मजदूर होते जा रहे हैं। लागत बढ़ने से किसानों को फसल के वाजिब दाम नहीं मिल पारहे हैं। किसान आत्महत्या तेजी से बढ़ रही हैं ।ऐसे में खेती को कॉरपोरेट्स को सौंपने के लिए सरकार नई नई तिकड़म कर रही है। अभी हाल ही में ३ अध्यादेश जारी किए गए हैं। जिसमें कृषि उत्पादों की बिक्री व्यवस्था को यानी मंडियों को समाप्त कर निजी मंडियां खोलने व विपणन व्यवस्था का निजीकरण करने का आदेश दिया है । इसी तरह दूसरे अध्यादेश में कंपनियों को ठेका पर जमीन देने व उससे संबंधित गतिविधियों में ठेका प्रथा को लागू करने का निर्णय मोदी सरकार ने लिया है। यहां तक कि किसानों व उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए बनाए गए आवश्यक वस्तु अधिनियम को भी संशोधित करने का अध्यादेश जारी किया है।
जिसमें जमाखोरों को जमाखोरी करने व लूटने की खुली छूट दे दी है।इस तरह खेती को बर्बाद करने व कॉरपोरेट को सौंपने की तैयारी केंद्र सरकार द्वारा कर ली गई है। इतने पर भी केंद्र सरकार संतुष्ट नहीं है वह कोविड-१९ के प्रकोप को अवसर मानकर खेती को बटाई पर या ठेके पर देने पर १८त्न जीएसटी लगा रही है। नव उदारवादी नीतियों के चलते विगत ३० वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में जो परिदृश्य उभरा है। उसमें अब खेती बटाई पर या ठेके पर ज्यादातर गरीब लघु व सीमांत किसान नहीं कर पाते हैं। क्योंकि लागत अधिक होने से उनके पास लागत पूंजी नहीं होती है । क्रेडिट फैसिलिटी भी नहीं होती है। खेती का आधुनिकीकरण होने से गरीब व भूमि हीन किसानों के पास कृषि उपकरण ट्रैक्टर , हार्वेस्टर, आदि कृषि उपकरण भी नहीं होते हैं। जिसके चलते बे खेती को बटाई पर या ठेके पर लेने में असमर्थ होते हैं । अब गामीण क्षेत्रों में उलट पट्टे की स्थिति है ।
जहां पर गरीब ,लघु व सीमांत किसानों की छोटी-छोटी जूतों को भूमि स्वामी या धनी किसान बटाई पर या ठेके पर लेते हैं। ऐसी स्थिति में यह टेक्स गरीबों से जमीन छीनने का एक और जरिया बनेगा। यदि केंद्र सरकार को टैक्स लगाना ही था तो उसे धनी वह भूस्वामी किसानों पर जिनके पास ज्यादा जमीन है उनकी उपज पर लगाना चाहिए था । इसमें उल्टा यह होगा कि जो धनी किसान हैं या भूमिस्वामी है वह ज्यादातर मजदूरों से ही खेती करवाते हैं ।इसलिए वह जीएसटी की परिधि में नहीं आएंगे। उससे बच जाएंगे ,क्योंकि वे बटाई या ठेके पर जमीन नहीं करा रहे हैं। जबकि बे जिन गरीब लघु व सीमांत किसानों की जमीन बटाई या ठेके पर कर रहे हैं, उन पर टैक्स लगवाने में भी सफल होंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्ध, गरीब, असहाय ऐसी महिलाएं जिनके पति नहीं है वे भी जमीन ठेके पर या बटाई पर देती है उन पर भी जीएसटी लगेगा।
जिससे उनके लिए पहले से ही अलाभकारी बनी छोटी जोतें और ज्यादा नुकसान का सौदा साबित होंगी । यह इस तरीके से खेती का कॉरपोरेटीकरण ( नैगमीकरण) कर देने की दशा में बढ़ने का ,व उसके लिए मार्ग प्रशस्त करने का सरकार का प्रयास है । मध्य प्रदेश किसान सभा ने इसका पुरजोर विरोध करने व किसानों से विरोध में शामिल होने ,व 9 अगस्त के देशव्यापी किसानों के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी करने का आग्रह किया है ।