कबीरपंथ के पांचवें गुरु केवलमुनि ने धमधा में ली समाधि

कबीरपंथ के पांचवें गुरु केवलमुनि ने धमधा में ली समाधि

धमधा
जिस कबीर की वाणी ने दुनियाभर के लोगों में नई चेतना और दिशा दी, उस कबीरपंथ के पांचवें धर्मगुरु केवलमुनि नाम साहेब ने अपनी गद्दी की स्थापना धमधा में की थी। लगभग तीन सौ साल पहले उन्होंने धमधा में ही समाधि ली थी, जिसका मठ आज भी स्थित है और कबीरपंथ के अनुयायियों के लिए धार्मिक महत्व का स्थल है। इस विषय पर रामदेव शर्मा ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोधपत्र प्रस्तुत किया।

यह राष्ट्रीय संगोष्ठी महंत घासीदास संग्रहालय रायपुर में हुई। इसका आयोजन संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग ने किया। दो दिन तक चली इस संगोष्ठी में प्रदेशभर से 50 से अधिक शोधपत्र प्रस्तुत किये गए। राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक संत परंपरा था। इसमें धर्मधाम गौरवगाथा समिति के तीन सदस्यों ने शोधपत्र प्रस्तुत किया। जिसमें सार्वभौम सिद्धांत के स्वामी मुक्तानंद, कबीरपंथ के पांचवें गुरु केवल मुनि और मध्यस्थ दर्शन के प्रणेता अग्रहार नागराज पर धर्मधाम गौरवगाथा समिति के सदस्यों ने अलग-अलग शोधपत्र प्रस्तुत किये। रामदेव शर्मा ने अपने शोधपत्र में बताया कि पंचम गुरू वंश केवल नाम साहेब संवत 1760 में मंडला धाम में हुआ। गुरू पिता पंथ प्रमोद गुरू बालापीर ने उन्हें गद्दी प्रदान की। धर्म प्रचार करते हुए वे मंडला से धमधा पधारे और धमधा के अनुयायियों के प्रेम और उनके आग्रह के कारण आप धमधा में ही श्वते ध्वज फहराकर आपने यही अपना डेरा डाला। उनकी समाधि के पास पहले एक बावली थी, जिसे महंतीन बावली कहा जाता था। समाधि स्थल के जीर्णोद्धार के बाद उसे पाट दिया गया और विशाल समाधि का निर्माण कराया गया है। यहां हर साल कबीरपंथियों का मेला लगता है।  वर्तमान में दुष्यंत साहेब पूजा पाठ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

मुख्यमंत्री की बुआ ने छपवाई थी मुक्तानंद पर पुस्तक
धमधा की रत्ना पटेल ने अपने शोधपत्र के माध्यम से स्वामी मुक्तानंद के जीवन के बारे में विस्तार से बताया। स्वामी मुक्तानंद 24 साल की आयु में अवधूत भेष में जब पहली बार धमधा आए थे, तब लोगों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए श्मशान घाट के मंदिर में ठहराया था, जहां जंगल और सुनसान था, वहां स्थित दानी और नइया तालाब में मगरमच्छ थे। दिन में भी लोग वहां जाने से डरते थे। लेकिन अगले दिन लोगों ने जाकर देखा तो स्वामी मुक्तानंद जल में समाधि लिये हुए थे, उनके ऊपर सांप-बिच्छु चढ़े हुए थे, तब भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उसी समय से धमधा के लोगों उन्हें महात्मा माना और उनके अनुयायी हो गए। स्वामी मुक्तानंद का प्रवचन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दादाजी खोमनाथ बघेल कुरूदडीह में करवाते थे। मुख्यमंत्री की बुआ सुरजाबाई ने स्वामी मुक्तानंद पर आधारित सहज वरदान नाम की पुस्तक 1076 में प्रकाशित करवाई थी। स्वामी मुक्तानंद के मानने वाले देशभऱ में हैं। महाकवि सुमित्रानंदन पंत महर्षि मुक्त लोक सेवा मिशन के अध्यक्ष थे।

जीवन विद्या से व्यक्ति हो सकता है शिकाय़तमुक्त
गोविन्द पटेल ने मध्यस्थ दर्शन पर आधारित जीवन विद्या के बारे में बताया। इसके प्रणेता नागराज हैं, जो कर्नाटक के थे। उन्होंने अमरकंटक में साधना की और मध्यस्थ दर्शन पर 14 वांग्मय की रचना की। जिसमें अस्तित्व और मानव के बीच संबंध बताया गया है। इस मानव चेतना विकास मूल्य शिक्षा के जरिए हर व्यक्ति को शिकायतमुक्त और अभावमुक्त बेहतर जीवन जीने के लिए तैयार किया जा सकता है। बाबा नागराज के दर्शन को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने मानवता के लिए आवश्यक बताया था। अभ्युदय संस्थान अछोटी में राहुल गांधी, गोविंदाचार्य, मनीष सिसोदिया, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस वेंकट चलैया समेत अनेक हस्तियां आ चुकी हैं। देश-विदेश के 30 शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया जा चुका है।