कहीं और खतरनाक न हो जाए कोरोना वायरस, रूस की वैक्सीन Sputnik V पर एक्सपर्ट्स की नई चिंता
लंदन
रूस ने अपनी कोरोना वायरस वैक्सीन Sputnik V के सारे ट्रायल पूरे करने से पहले ही इसे उपलब्ध करने का फैसला किया है जिससे मेडिकल एक्सपर्ट्स परेशान हैं। अभी तक उन्हें इस वैक्सीन के सुरक्षित होने पर चिंता थी लेकिन अब एक आशंका यह भी पैदा हो गई है कि कहीं इसकी वजह से वायरस में म्यूटेशन न होने लगे। दरअसल, कोरोना वायरस SARS-CoV-2 का म्यूटेशन, यानी जेनेटिक कोड में बदलाव, वैज्ञानिकों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। यूं तो आमतौर पर यह ज्यादा खतरनाक नहीं होता है लेकिन वैज्ञानिकों को चिंता है कि ऐसी वैक्सीन के इस्तेमाल से, जो पूरी तरह वायरस पर असरदार नहीं है, कहीं यह समस्य जटिल न हो जाए।
ऐसे हो सकता है खतरा
ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी के वायरॉलजी प्रफेसर ईयन जोन्स ने कहा है, 'संपूर्ण से कम सुरक्षा होने पर वायरस उस ऐंटीबॉडी के खिलाफ आत्मरक्षा पैदा कर सकता है जो इस वैक्सीन से बनेगी। इससे ऐसे स्ट्रेन पैदा हो सकते हैं जो किसी भी वैक्सीन प्रतिक्रिया को झेल जाएं। इसलिए कोई वैक्सीन नहीं होने से ज्यादा खतरनाक है गलत वैक्सीन होना।' अमेरिका के वॉन्डरबिट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन की पीडिऐट्रिक प्रफेसर और वैक्सीन एक्सपर्ट कैथरिन एडवर्ड्स का कहना है, 'वैक्सीन का वायरस पर क्या असर होगा- लड़ेगी, ब्लॉक करेगी या उसे और मजबूत बना देगी- यह तो चिंता का विषय है ही।'
कब, कैसे और किसको मिलेगा कोरोना का टीका, WHO ने बताया प्लान
WHO चाहता है कि वैक्सीन किस देश को मिले, इसका फैसला दो आधार पर हो। या तो दुनिया के हर देश को उसकी आबादी के हिसाब से वैक्सीन की डोज दी जाएं। दूसरा रास्ता ये है कि देशों को उनकी आबादी को खतरे के आधार पर आंका जाए और फिर प्राथमिकता के लिहाज से वैक्सीन बांटी जाए। WHO के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस का कहना कि फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को टीकाकरण में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसके अलावा 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों और ज्यादा खतरे वाली आबादी को वैक्सीन मिले। टेड्रोस के अनुसार, वैक्सीन अलॉकेशन के पहले चरण में 20% आबादी सुरक्षित हो सकती है। उन्होंने कहा कि सबसे रिस्क वाले लोगों को सुरक्षित किए बिना हेल्थ सिस्टम स्थिर नहीं किए जा सकते, न ही ग्लोबल इकनॉमी पटरी पर लौट पाएगी। WHO ने इसी हफ्ते अमीर देशों को 31 अगस्त से पहले COVAX का हिस्सा बनने का न्योता दिया है। अबतक 75 देशों ने इस कार्यक्रम में भागीदारी पर हामी भरी है। यह प्रोग्राम विकसित और विकासशील देशों में वैक्सीन मैनुफैक्चरर्स के साथ मिलकर काम कर रहा है। COVAX का मकसद है कि दुनिया के हर देश को कोरोना की वैक्सीन बनने पर समान अधिकार मिले। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वैक्सीन ट्रायल की रेस में आगे चल रही कंपनियों से विकसित देश सीधे सौदेबाजी कर रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, यूरोपियन यूनियन के कई देश सीधे मैनुफैक्चरर्स से डील कर चुके हैं। अभी तक ग्लोबली किसी वैक्सीन को WHO ने अप्रूवल नहीं दिया है। इसके बावजूद AstraZeneca, Pfizer, Johnson & Johnson और Moderna वैक्सीन की करोड़ों डोज बुक हो चुकी हैं। कोरोना के संभावित टीकों की करोड़ों डोज के सौदे हो चुके हैं। WHO इससे चिंतित है। टेड्रोस ने कहा है कि 'वैक्सीन राष्ट्रवाद से महामारी और दुनिया की असमानता और बढ़ेगी।' उन्होंने कहा कि देशों ने कोरोना महामारी की शुरुआत में जो गलतियां कीं, उसे दोहराना नहीं चाहिए। जब महामारी शुरू हुई थी तो कुछ देशों ने PPE किट्स, दवाओं और वेंटिलेटर्स वगैरह की सप्लाई पर कब्जा कर लिया था।
बैक्टीरिया में देखा जाता है ऐसा
बॉस्टन में हारवर्ड के बेथ इजरायल टिकनेस मेडिकल सेंटर के स्पेशलिस्ट डैन का कहना है कि कोरोना वायरस में म्यूटेशन का रेट HIV जैसे वायरस से कम होता है लेकिन असफल वैक्सीन इस्तेमाल करने के कई नुकसान हो सकते हैं। म्यूटेशन का रिस्क तो थिअरी में है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बैक्टीरिया में ऐसा बिहेवियर देखा जाता है जब वे ऐंटीबायोटिक्स के खिलाफ लड़कर और मजबूत हो जाते हैं और प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर लेते हैं।
अगले हफ्ते से मास टेस्टिंग
वहीं, Sputnik V का बड़ी संख्या में ट्रायल अगले हफ्ते से शुरू होगा। इसमें 40 हजार लोग शामिल होंगे। एक विदेशी रिसर्च बॉडी के तत्वाधान में ये टेस्ट होंगे। दरअसल, वैक्सीन को लेकर दुनिया के कई देशों, खासकर पश्चिम ने, रूस पर सवाल खड़े किए हैं और डेटा को लेकर असंतुष्टि जताई है। इस वैक्सीन का नाम दुनिया की पहली आर्टिफिशल सैटलाइट Sputnik पर रखा गया है और रूस के एक्सपर्ट्स ने कहा है कि जैसे तब दुनिया रूस की सफलता से हैरान थी, अब वैक्सीन पर भी उसका शक उसी वजह से है।