अकाल भोगा नहीं इसलिये पानी की कीमत नहीं समझ रहे गंगरेल क्षेत्र के किसान

रायपुर
खेती के लिये पानी की कीमत गंगरेल के कमांड क्षेत्र में आने वाले ग्रामों के नहीं वरन् असिंचित क्षेत्रों के किसान समझते हैं जो धान की बोनी से ले फसल पकने तक बरसात के एक-एक बूंद पानी को सहेजने अपना दिन-रात एक कर देते हैं। इधर गंगरेल के कमांड क्षेत्र में आने वाले ग्रामों के किसान तो सिंचाई होने के बाद भी गैरजिम्मेदाराना रव्वैया अपनाते हुये बांध से मिल रहे सिंचाई पानी को नाला में व्यर्थ बहने देते हैं क्योंकि गंगरेल बांध क्षेत्र के किसानों ने आज तक अकाल भोगा नहीं है। इस साल भी अधिकतर ग्रामों से सिंचाई पानी बेकार नालों में जा रहा पर बांध के गेट गिराये जाने के खबर मात्र से किसान कम से कम एक सप्ताह और नहर में पानी चलते रहने की अपेक्षा कर रहे हैं।

गंगरेल के कमांड क्षेत्र में आने वाले ग्रामों के निवासी बुजुर्ग किसान  बतलाते हैं कि सन् 1964 में पड़े भयावह अकाल के दौरान भी इस बांध के कमांड  क्षेत्र में आने वाले ग्रामों में इसके सिंचाई पानी के भरोसे सोलह आने फसल किसानों ने लिया था क्योंकि तब गांवों के किसानों में एकजुटता व सहयोग की भावना थी। बरसात आने के पूर्व गांवों में मुनादी होती थी और पूरे ग्राम के किसान सिंचाई नालियों व तालाब में पानी जाने के रास्तों की? साफ - सफाई करते थे। इतना ही नहीं वरन् किसान एक - दूसरे के खेतों में व अपने ग्राम की सिंचाई पूरा हो जाने के पश्चात  दूसरे ग्राम तक पानी पहुंचाने में सहयोगरत रहते थे जिसके चलते पानी बेकार नहीं जाता था। पानी बेकार बहाने वाले किसानों को ग्रामीण व्यवस्था के तहत दंडित करने की व्यवस्था रहने की भी जानकारी ग्रामों के बड़े बुजुर्ग देते हैं। इनके अनुसार अब समय काफी बदल गया है और अब न तो किसानों में आपसी सहयोग की भावना ही रही और न ही ग्रामों के बीच सहयोगात्मक रूख की प्रवृत्ति। इसके सहित राजनीतिक दखलंदाजी के चलते अब सिंचाई पानी के व्यर्थ नालों में जाने की स्थिति को भी नजरअंदाज किये जाने की प्रवृत्ति आम होने की जानकारी देते हुये ये बुजुर्ग बतलाते हैं कि ऐसे एकजुटता व सहयोग की भावना अब काफी कम ग्रामों में बची है। इधर नहर में पानी का गेज कम होने व एक - दो दिनों के भीतर गंगरेल के पट गिरा दिये जाने की कथित खबर के चलते दीर्घावधि की धान फसल बोने वाले किसान नालों में व्यर्थ जा रहे पानी को अनदेखा कर कम से कम एक सप्ताह और नहर में पानी चलाये जाने की मांग कर रहे हैं। रायपुर जिला जल उपभोक्ता संस्था संघ के अध्यक्ष रहे भूपेंद्र शर्मा ने बड़े बुजुर्गो की बात व अनुभव को सही ठहराते हुये कहा कि इसके लिये न केवल किसान वरन् राजनीति व विभागीय अमला भी दोषी है।

उन्होंने विस्तार से इस संबंध में जानकारी देते हुते बताया कि काफी पहले नहरों के आउटलेटों से  डिमांड पर पानी तब दिया जाता था जब माइनरों व वितरक शाखाओं के कमांड एरिया में आने वाले खेतों की सिंचाई पूर्ण होने के बाद पानी बच रहता था पर शासन के सिंचाई रकबा बढ़ाने के नीति के चलते इन आउटलेटों से भी सिंचाई पानी देने एग्रीमेंट कर लिया गया और इनके कमांड क्षेत्र में आने वाले खेतों में किसानों ने शीध्र अवधि के बदले दीर्घावधि का धान फसल बोना शुरू कर दिया जिसकी वजह से नहरों में इसे पकाने  9 से 10 फीट पानी का गेज बनाना पड रहा और जिसके चलते  माइनरों व वितरक शाखाओं में पानी का अत्यधिक दबाव बनने से इनके कमांड एरिया में आने वाले खेतों के सिंचाई होते-होते काफी पानी न चाहकर भी नालों में जाता है। खेतों के भौगोलिक स्थिति के चलते भी सिंचाई करने किसानों द्वारा जगह - जगह-जगह हेडअप बनाये जाने से सिंचाई में विलंब होने व पानी व्यर्थ जाने की जानकारी देते हुये उन्होंने बतलाया कि जबकि कानूनन सिंचाई पानी के प्रवाह को अवरूद्ध किया जाना अपराध है।

माइनरों व वितरक शाखाओं के रिमाडलिग व लाइनिंग के समय भी  सिंचाई में आने वाले व्यवहारिक दिक्कतों व किसानों के अनुभवों को अनदेखा कर  निर्माण किये जाने को भी पानी की बरबादी के लिये एक कारण ठहराते हुये उन्होंने उदाहरण देते हुये बतलाया कि महानदी मुख्य नहर के वितरक शाखा 24 से निकले टेकारी माइनर से 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित अंतिम छोर के खेतों तक पानी पहुंचाने वितरक शाखा में पानी का काफी दबाव बनाना पड़ता है और इसके चलते अंतिम छोर के गांव संकरी से होते हुये काफी पानी नाला में जा बरबाद होता है। पानी की बरबादी को रोकने किसानों को प्रेरित करने के बदले अधिकांश नेताओं द्वारा अपने क्षेत्रीय राजनीतिक हितों के मद्देनजर विभागीय अधिकारियों पर पानी देने दबाव बनाने की प्रवृत्ति को भी पानी की बरबादी का एक कारण उन्होंने ठहराया है।  इसके बाद भी पानी की बरबादी रोकने अंतत: किसानों को एकजुटता दिखा सहयोगात्मक रूख अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुये उन्होंने  विभागीय मैदानी अमला को दिन-रात चौकसी कर आवश्यकतानुसार वितरक शाखाओं व माइनरों सहित क्रासरेगुलेटरो का उपयोग कर पानी की मात्रा को घटा - बढ़ा बरबादी को कम से कम करने का प्रयास में जुटे रहने का आग्रह किया है।