rajesh dwivedi
सतना । चुनावी तैयारियों के तहत सेना को मजबूत करने कांग्रेस ने संगठनात्मक नियुक्तियों और दनादन सूचियों का दौर तो तेज कर दिया लेकिन अब यह सवाल बड़ी शिद्दत से कांग्रेसियों के ही बीच उठ खड़ा हुआ है कि ऐसे में कांग्रेस चुनावी मैदान में उतारने के लिए आखिर लड़ाके कहां से लाएगी। क्या कांग्रेस पार्टी अपने ही बनाये नियम कायदे तोड़ेगी या फिर चुनाव के वक्त बगावत का बिगुल सुनाई पड़ेगा।
गौरतलब है कि हर हालत में प्रदेश विधानसभा के चुनावों में जीत हासिल करने की पुरजोर कोशिशों में लगी कांग्रेस ने भाजपा के संगठनात्मक ढांचे से मुकाबला करने के लिए लम्बी चली सहमति - समन्वय की कवायद के बाद संगठनात्मक नियुक्तियां तो शुरू कर दी लेकिन संगठन के पदों के लिए दावेदारी के वक्त जारी की गई गाइड लाइन अब चिंता बढ़ा रही है। पार्टी ने तय किया था कि जिन्हे संगठन में जिम्मेदारी दी जाएगी वे चुनावी टिकट के लिए दावेदारी नहीं कर सकेंगे। नतीजा ये हुआ कि जिस रफ्तार से संगठन के पदों के लिए दावेदारों की बढ़ आई थी उसी तेजी से बादल छंटने भी लगे। संगठन चलाने में काबिल माने जाने वाले चेहरों ने भी अपने नाम वापस ले लिए और चुनाव लड़ने की अपनी महत्वाकांक्षा को जीवित रखा। लेकिन अब जब बैरियर हटा और संगठनात्मक नियुक्तियों का सिलसिला शुरू हुआ तो सूची में ऐसे तमाम नाम देखने -पढ़ने को मिले जिन्होंने टिकट के लिए पार्टी के पद से तौबा कर ली थी। किसी को संगठन की मुख्य धारा में ले आया गया तो किसी को चुनाव प्रचार की कमान सौंप दी गई। हालांकि रेवड़ी की तरह बांटे गए पदों ने पार्टी के अंदर असंतोष की चिंगारी भी सुलगा दी है जिसका बड़ा असर चुनाव के पहले उसकी तैयारियों पर भी नजर आ जाना कोई बड़ी बात नहीं होगी।
प्रदेश के कद्दावर चेहरे -
पार्टी सूत्र बताते हैं कि प्रदेश भर की सूची पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो उसमे कई ऐसे दिग्गज चेहरे हैं जिनका चुनाव लड़ना तय है। वे खुद भी पिछले काफी समय से चुनावी तैयारी में लगे थे और कार्यकतार्ओं ने भी उन्हें पहले से ही प्रत्याशी मान रखा है। ऐसे चेहरों में प्रियव्रत सिंह,राजयवर्धन सिंह,सुखदेव पांसे,मृणाल पंत, डॉ महेंद्र सिंह चौहान,सविता दीवान,पीसी शर्मा ,मीनाक्षी नटराजन,हेमंत वागद्रे,सुनील सूद ,मनोज शुक्ला और मो अलीम जैसे कई नाम शामिल हैं। पार्टी के पास भी फिलहाल इनके मुकाबले कोई और विकल्प नहीं है।
बजेगा बगावत का बिगुल -
अब अगर पार्टी गाइड लाइन को फॉलो करती है और टिकट काटती है तो सवाल यह उठता है कि फिर ऐसे लड़ाके लाये कहां से जाएंगे जो कांग्रेस के बड़े और प्रभावशाली नेताओं की जगह ले सकें। टिकट काट कर समर्थकों को किसी और नाम के लिए समझाया कैसे जाएगा ? ऐसे में असंतोष और गुटबाजी से घिरी पार्टी में क्या बगावत का बिगुल भी नहीं बज जाएगा ? और अगर पार्टी गाइड लाइन को दरकिनार करती है या उसमे कुछ चेहरों के लिए कोई रियायती स्कीम चलाती है तो क्या विपक्षी दल चुनावी समर में उसकी घेराबन्दी कर कथनी और करनी का अंतर नहीं गिनाने लगेंगे ? हालांकि जानकार भी यही मानते हैं कि कांग्रेस का संगठन अभी चाहे जो कुछ भी कहे लेकिन वक्त आने पर उसे बैकफुट पर आना ही पड़ेगा।
तो इनका क्या होगा -
सतना में ही देख लिया जाए तो जिले के अपने इकलौते बड़े समर्थक को प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने जिलाध्यक्ष तो बना दिया लेकिन अगर पार्टी द्वारा पहले ही जारी की जा चुकी गाइड लाइन को सच माना जाए तो वे अब रामपुर से टिकट का दावा नहीं कर सकेंगे। राजभान सतना से दावेदारी नहीं कर सकेंगे और सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू को भी टिकट नहीं मिल पाएगी। इसी तरह पूर्व मंत्री सईद अहमद ,विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ राजेंद्र कुमार सिंह के पूर्व जिला पंचायत सदस्य पुत्र विक्रमादित्य सिंह गिन्नी का भी पत्ता कट जाएगा।
चुनाव प्रचार अभियान समिति में महापौर पद के पूर्व प्रत्याशी मनीष तिवारी को भी जगह दे दी गई है ,वे भी सतना विधानसभा से टिकट के प्रबल दावेदार हैं।पूर्व महापौर राजाराम त्रिपाठी पिछले चुनाव में सतना सीट से मैदान में थे लेकिन इस बार वे भी चुनाव प्रचार समिति में हैं लिहाजा दावेदारी का दावा उनका भी खत्म हो जाएगा। अतुल सिंह परिहार पार्टी में प्रवक्ता है लेकिन नागौद से टिकट की चाहत वे भी रखते थे। सतना सीट से ही अनिल अग्रहरि शिवा और रविंद्र सिंह सेठी भी टिकट के लिए प्रयासरत रहने वालों में शामिल हैं। उधर ऐसे ही हालात रीवा में भी जहां मंगू सरदार,गिरीश सिंह,त्रियुगी नारायण एवं रमाशंकर पटेल को भी संगठन में जगह दे दी गई है जबकि वे भी चुनावी लड़ाकों के तौर पर इस बार मैदान में उतरने की तैयारी पिछले साढ़े 4 वर्षों से कर रहे हैं।