संगठनात्मक बदलाव से भी नहीं बदली सूरत
rajesh dwivedi
सतना, बेशक कांग्रेस ने प्रदेश में कांग्रेस को चार्ज करने के लिए प्रदेश से लेकर जिलास्तर तक संगठनात्मक बदलाव किए हों, लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा इस बदलाव को स्वीकार करने से हिचक रहा है। जिस प्रकार से संगठन पदाधिकारियों की नियुक्ति के बाद उठा -पटक देखी जा रही है, उससे कांग्रेस के भीतर गुटबाजी बढ़ने की संभावना है।
विगत दिवस पन्ना जिले के गुनौर में अखिल भारतीय राष्टÑीय कांग्रेस के महासचिव व विंध्य-बुंदेलखंड प्रभारी सुधांशु त्रिपाठी की मौजूदगी में आयोजित हुई संविधान बचाओ रैली का विरोध स्थानीय संगठन ने करते हुए निंदा प्रस्ताव पारित किया उससे यह भी स्पष्ट है कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के अतिउत्साह में संगठन हड़बड़ी में चुनावी कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। सवाल यह है कि क्या गुनौर में आयोजित संविधान बचाओ रैली के कार्यक्रम को लेकर स्थानीय कांग्रेस संगठन से राय-मशविरा नहीं किया गया था? यदि नहीं तो स्पष्ट है कि कांग्रेस में संगठनात्मक तालमेल का अभाव है और यदि हां तो फिर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों की मौजूदगी में आयोजित कार्यक्रम का विरोध स्थानीय कांग्रेसियों द्वारा क्यों किया जा रहा है। पन्ना जिले के गुनौर में आयोजित कार्यक्रम तो एक बानगी है, ऐसे कार्यक्रमों की फेहरिश्त प्रदेश में लंबी होती जा रही है, जिनको लेकर ऐसे विवाद सामने आ रहे हैं। निश्चित तौर पर प्रदेश चुनाव प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया व नए प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ के सामने ऐसी विसंगतियों को दूर करने की चुनौती है। इस चुनौती से पार पाए बिना डेढ़ दशक से सत्ता की पालकी में सवार भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का सपना देखना कांग्रेस के लिए ‘मुंगेरीलाल का हसीन सपना’ बन सकता है।