संघर्ष के 17 साल बाद अमरीका ने तालिबान को भेजी 'Friend request', जताई  ये इच्छा

 वॉशिंगटन
 अफगानिस्तानी  आतंकियों के खिलाफ शुरू ऑपरेशन के 17 साल बाद अमरीका ने  तालिबान को 'Friend request' करते हुए  उसके साथ सीधी वार्ता की इच्छा जताई है। 11 सितंबर 2001 के बड़े आतंकी हमले के बाद अमरीका ने अफगानिस्तान में प्रवेश किया था। अब ट्रंप प्रशासन आतंकी संगठन तालिबान के साथ सीधी वार्ता के लिए दोस्ती का बढ़ाया है। 2001 में तालिबान सरकार को हटाने में अमरीका की जॉर्ज डब्ल्यू बुश सरकार को कुछ ही महीने लगे, लेकिन तालिबान ने लड़ाई जारी रखी। अफगानिस्तान के 14 से ज्यादा जिलों पर उसका पूरा नियंत्रण है जो देश का 4 फीसदी है। इतना ही नहीं अन्य 263 जिलों में भी तालिबान की सक्रियता है। 

अफगान-पाकिस्तान सीमा तो पूरी तरह से तालिबान के नियंत्रण में है। अब बॉर्डर पर दीवार बनाने के लिए पाकिस्तान ट्रंप प्रशासन का सहयोग चाहता है। दरअसल, पाकिस्तान में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं और उसका कहना है कि सीमा पार से आए आतंकियों का इसमें हाथ है। हालांकि पाकिस्तान भी खुद दूध का धुला नहीं है। उस पर तालिबान के एक धड़े को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है, जिसे हक्कानी नेटवर्क कहा जाता है। तालिबान और अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार ने ईद पर संघर्षविराम की घोषणा की थी। इस दौरान आतंकियों और सैनिकों के बीच सेल्फी लेते हुए कई दिलचस्प तस्वीरें सामने आई थीं। हालांकि बाद में संघर्ष फिर से शुरू हो गया। 

ट्रंप पुतिन पर भरोसा कर सकते हैं लेकिन उनका प्रशासन मानता है कि रूस तालिबान का सहयोग कर रहा है। गौरतलब बात यह है कि सोवियत-अफगान वॉर के दौरान अमरीका ने तालिबान का सहयोग किया था। अफगानिस्तान के हालात का भारत पर भी असर होगा। 
अफगानिस्तान और भारत मिलकर आतंकवाद पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये का विरोध कर रहे हैं। गनी ने तालिबान पर पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी सहयोग मांगा है। भारत चाहता है कि तालिबान के साथ कोई भी बातचीत अफगान सरकार करे। तालिबान के साथ किसी भी डील का भारत-पाक संबंधों पर भी असर होगा।