कुतुब मीनार जितना ऊंचा गाजीपुर का कूड़े का ढेर, लोगों की परेशानी बढ़ी

नई दिल्ली    
यह सुनकर आप भले चौंक जाएं लेकिन बात सौ प्रतिशत सच है. पूर्वी दिल्ली स्थित गाजीपुर का कूड़े का ढेर अब ऐतिहासिक कुतुब मिनार जितना ऊंचा हो चला है. 1984 में बनी यह डंपिंग साइट तकरीबन 29 एकड़ के इलाके में फैली है.  

विज्ञान और तकनीक, पर्यावरण और वन पर आधारित एक संसदीय समिति ने अभी हाल में एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें दिल्ली की लैंडफिल साइट का पूरा विवरण है. रिपोर्ट में बताया गया है कि गाजीपुर कूड़े के ढेर की ऊंचाई तकरीबन 65 मीटर तक पहुंच गई है. कुतुब मीनार की लंबाई से यह मात्र 8 मीटर कम है. दिल्ली स्थित कुतुब मीनार दुनिया का सबसे ऊंचा मीनार है.   

लाल ईंट से बने कुतुब मीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) और गोलाई 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है. इसमें 378 सीढ़ियां हैं. मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, जिनमें से कई तो इसके निर्माण काल 1193 या उसके पहले के हैं. मीनार के परिसर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.

कूड़े के इस 'पहाड़' के कारण आसपास के कई इलाकों में लोगों की परेशानी बढ़ गई है. घरोली, खोड़ा, घरोली एक्सटेंशन, कल्याणपुरी, कौशांबी, गाजीपुर और कोंडली में रहने वाले लोगों ने काफी पहले से सेहत संबंधी अपनी शिकायतें प्रशासन के सामने रखी हैं.

साल 2017 में इस डंपिंग साइट पर अचानक एक विस्फोट हो गया जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो, इसके लिए स्थानीय प्राधिकारियों ने मुकम्मल तैयारी की. इस घटना के बाद यहां कूड़ा डालने पर रोक लगा दी गई.

हालांकि यह रोक कागजी साबित हो रही है. दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) के आदेश के बावजूद यहां कूड़े का ढेर जमा हो रहा है. विस्फोट की घटना के तत्काल बाद 2 सितंबर 2017 को गाजीपुर साइट में कूड़ा डालना मना कर दिया गया था. इसके साथ ही एलजी अनिल बैजल के दफ्तर से यह भी आदेश पारित हुआ कि आगामी दो साल में इस डंपिंग साइट से कूड़ा साफ कर दिया जाएगा. न्यूज एजेंसी पीटीआई ने इस बाबत रिपोर्ट जारी की थी. बैजल के एक अन्य आदेश में बताया गया कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ एक समझौते के तहत डंपिंग साइट से ठोस कचरा सड़कों के निर्माण में उपयोग किया जाएगा.

दिल्ली के निगम दिल्ली विकास प्राधिकरण से लगातार और डंपिंग साइट मुहैया कराने की मांग करते आए हैं ताकि कचरों के निपटान के लिए प्लांट लगाए जा सकें.  हालांकि कुछ साइट दी गई हैं लेकिन वे अबतक उपयोग के लायक नहीं हैं. निगम के कुछ अधिकारियों के मुताबिक, जो साइट दी गई हैं, वे या तो आकार में काफी छोटी हैं या डीडीए ने उन्हें सही ढंग से चिन्हित नहीं किया है.